New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 22nd August, 3:00 PM Independence Day Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 15th Aug 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 24th August, 5:30 PM Independence Day Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 15th Aug 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 22nd August, 3:00 PM GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 24th August, 5:30 PM

सैटेलाइट इंटरनेट: डिजिटल दुनिया की नई क्रांति

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव)

संदर्भ

आज की डिजिटल दुनिया में इंटरनेट कनेक्टिविटी हर क्षेत्र में जरूरी है, चाहे वह सैन्य हो, आपदा प्रबंधन हो या रोजमर्रा का जीवन। सैटेलाइट इंटरनेट (जैसे- एलन मस्क का स्टारलिंक) भारत में जल्द शुरू होने वाला है, जो इंटरनेट ढांचे को बदल देगा। यह तकनीक ग्रामीण एवं सुदूर क्षेत्रों में कनेक्टिविटी प्रदान कर सकती है जहाँ पारंपरिक नेटवर्क अव्यवहारिक हैं।

सैटेलाइट इंटरनेट : एक अवलोकन

  • सैटेलाइट इंटरनेट एक ऐसी तकनीक है जो उपग्रहों के जरिए इंटरनेट कनेक्शन प्रदान करती है।
  • यह जमीन पर बिछे केबल या टावरों पर निर्भर नहीं होती है, इसलिए यह सुदूर और दुर्गम क्षेत्रों में भी काम करती है।
  • यह प्राकृतिक आपदाओं (जैसे- बाढ़ या भूकंप) के दौरान भी कनेक्टिविटी प्रदान करती है जो इसे एक विश्वसनीय विकल्प बनाती है।

कार्यप्रणाली

  • सैटेलाइट इंटरनेट दो हिस्सों से मिलकर बनता है: अंतरिक्ष खंड (सैटेलाइट्स) और स्थलीय खंड (ग्राउंड स्टेशन एवं यूजर टर्मिनल)।
  • उपग्रह, डाटा को पृथ्वी पर मौजूद यूजर टर्मिनल तक भेजते हैं, जैसे कि स्टारलिंक डिश।
  • डाटा सिग्नल उपग्रह से ग्राउंड स्टेशन तक और फिर यूजर तक पहुंचते हैं।
  • निम्न भूकक्षीय ऑर्बिट (LEO) सैटेलाइट्स में ऑप्टिकल इंटर-सैटेलाइट लिंक का उपयोग होता है जो उपग्रहों को आपस में जोड़ता है और डाटा को तेजी से रूट करता है।

विभिन्न कक्षीय पथ 

  • जियोस्टेशनरी अर्थ ऑर्बिट (GEO)
    • ऊंचाई: 35,786 किमी.
    • विशेषता: पृथ्वी के साथ तालमेल में घूमते हैं, एक स्थान पर स्थिर रहते हैं।
    • कवरेज: पृथ्वी का एक-तिहाई हिस्सा (ध्रुवीय क्षेत्रों को छोड़कर)
    • कमी: उच्च विलंबता (लेटेंसी), जो वीडियो कॉलिंग जैसे रीयल-टाइम उपयोग के लिए उपयुक्त नहीं
    • उदाहरण: वायासैट का ग्लोबल एक्सप्रेस (GX)
  • मीडियम अर्थ ऑर्बिट (MEO):
    • ऊंचाई: 2,000-35,786 किमी.
    • विशेषता: GEO से कम विलंबता, लेकिन वैश्विक कवरेज के लिए कई उपग्रहों की जरूरत
    • उदाहरण: O3b MEO कॉन्स्टेलेशन (20 उपग्रह)
  • लो अर्थ ऑर्बिट (LEO):
    • ऊंचाई: 2,000 किमी. से कम
    • विशेषता: निम्न विलंबता, छोटे एवं सस्ते उपग्रह किंतु कवरेज क्षेत्र छोटा
    • उदाहरण: स्टारलिंक (7,000+ उपग्रह, 42,000 की योजना)

टेरेस्ट्रियल ब्रॉडबैंड से तुलना

  • टेरेस्ट्रियल ब्रॉडबैंड:
    • केबल और टावरों पर निर्भरता तथा शहरी क्षेत्रों में प्रभावी
    • सुदूर क्षेत्रों में लागत अधिक और प्राकृतिक आपदाओं में समस्या 
    • सस्ता किंतु स्थिर बुनियादी ढांचे की जरूरत
  • सैटेलाइट इंटरनेट:
    • वैश्विक कवरेज, सुदूर क्षेत्रों और आपदा प्रभावित स्थानों में उपयोगी
    • अधिक महंगा (टर्मिनल: ~$500, मासिक शुल्क: ~$50)
    • तेजी से तैनात और गतिशील कनेक्टिविटी (जैसे- हवाई जहाज, जहाज)

मेगा कॉन्स्टेलेशन की कार्य प्रणाली 

  • मेगा कॉन्स्टेलेशन में सैकड़ों या हजारों LEO उपग्रह शामिल होते हैं (जैसे- स्टारलिंक के 7,000+ उपग्रह)
  • ये छोटे उपग्रह ऑन-बोर्ड सिग्नल प्रोसेसिंग करते हैं जो डाटा ट्रांसमिशन को तेज व कुशल बनाता है।
  • ऑप्टिकल इंटर-सैटेलाइट लिंक उपग्रहों को आपस में जोड़ते हैं, जिससे ग्राउंड स्टेशन पर निर्भरता कम होती है।
  • स्टीयरेबल एंटीना कनेक्शन को एक उपग्रह से दूसरे में निर्बाध रूप से स्थानांतरित करते हैं क्योंकि LEO उपग्रह 27,000 किमी./घंटा की गति से चलते हैं।

सैटेलाइट इंटरनेट के अनुप्रयोग

  • संचार : सुदूर क्षेत्रों में इंटरनेट, इंटरनेट ऑफ एवरीथिंग (IoE)
  • परिवहन : स्वचालित वाहन, नेविगेशन, लॉजिस्टिक्स
  • आपदा प्रबंधन : स्मार्ट सिटी, आपातकालीन समन्वय, प्रारंभिक चेतावनी
  • स्वास्थ्य : टेलीमेडिसिन, रिमोट मॉनिटरिंग
  • कृषि : सटीक खेती, फसल स्वास्थ्य विश्लेषण
  • रक्षा : ड्रोन संचालन, सैन्य संचार
  • पर्यावरण : निगरानी, ऊर्जा अन्वेषण, पर्यटन

चुनौतियाँ

  • उच्च लागत : यूजर टर्मिनल और मासिक शुल्क अभी महंगे हैं।
  • सुरक्षा जोखिम : अवैध उपयोग और डेटा गोपनीयता की चिंताएं।
  • अंतरिक्ष मलबा : हजारों LEO उपग्रहों से मलबे का खतरा।
  • नियामक मुद्दे : वैश्विक नियमों और राष्ट्रीय नीतियों में समन्वय की कमी।
  • कनेक्टिविटी निरंतरता : LEO उपग्रहों की तेज गति के कारण कनेक्शन हैंड-ऑफ की जटिलता।

आगे की राह

  • लागत में कमी : डायरेक्ट-टू-स्मार्टफोन सेवाएं शुरू करना, जैसे- AST स्पेसमोबाइल और स्टारलिंक की योजना
  • नियामक ढांचा : भारत को सैटेलाइट इंटरनेट के लिए स्पष्ट नीतियां और अंतर्राष्ट्रीय शासन में भागीदारी की आवश्यकता 
  • डिजिटल डिवाइड को कम करना : ग्रामीण एवं सुदूर क्षेत्रों में कनेक्टिविटी बढ़ाकर डिजिटल समावेशन को बढ़ावा देना
  • सुरक्षा उपाय : अवैध उपयोग को रोकने के लिए सख्त निगरानी और साइबर सुरक्षा उपाय 
  • अंतरिक्ष प्रबंधन : मलबे को कम करने के लिए उपग्रह डिजाइन और कक्षा प्रबंधन में सुधार

निष्कर्ष

सैटेलाइट इंटरनेट भारत के डिजिटल भविष्य को बदलने की क्षमता रखता है, खासकर सुदूर क्षेत्रों और आपदा प्रबंधन में। स्टारलिंक जैसे मेगा कॉन्स्टेलेशन इसे और सुलभ बनाएंगे किंतु लागत एवं सुरक्षा चुनौतियों का समाधान जरूरी है। भारत को इस तकनीक को राष्ट्रीय रणनीति में शामिल कर डिजिटल डिवाइड को कम करना चाहिए और वैश्विक कनेक्टिविटी में अग्रणी बनना चाहिए।

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR
X