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मैकाले की शिक्षा नीति और औपनिवेशिक मानसिकता: भारत में ज्ञान, संस्कृति और शासन का पुनर्गठन

GS-1: (Modern History), GS-2:  (Education), Essay, Prelims

1835 में थॉमस बैबिंगटन मैकाले द्वारा प्रस्तुत ‘Minute on Indian Education’ भारतीय इतिहास का वह मोड़ है जिसने भारतीय शिक्षा, भाषा, संस्कृति और सामाजिक संरचना पर गहरा प्रभाव डाला।  यह केवल शिक्षा सुधार का दस्तावेज नहीं था, बल्कि एक संपूर्ण औपनिवेशिक मानसिक परियोजना थी—जिसका उद्देश्य भारत के सांस्कृतिक आधार को कमजोर कर एक ऐसा वर्ग तैयार करना था, जो भारतीय होकर भी मानसिक रूप से अंग्रेज़ हो।2025 में प्रधानमंत्री द्वारा “औपनिवेशिक मानसिकता समाप्त करने के लिए 10-वर्षीय प्रतिज्ञा” का आग्रह इसी विरासत की प्रतिक्रिया है।

औपनिवेशिक मानसिकता समाप्त करने के लिए प्रधानमंत्री का 10-वर्षीय प्रतिज्ञा आह्वान

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत को मैकाले द्वारा 1835 में शुरू किए गए औपनिवेशिक अभियान के 200 वर्ष पूर्ण होने तक-अर्थात अगले 10 वर्षों में—ऐसी मानसिकता से मुक्त करना होगा जो:

  • अंग्रेजी को श्रेष्ठ मानती है,
  • भारतीय भाषाओं को हीन समझती है,
  • पश्चिमी संस्कृति को ‘आधुनिक’ बताती है,
  • और भारतीय ज्ञान प्रणालियों को अप्रासंगिक।

उनके अनुसार, यह केवल शिक्षा सुधार नहीं बल्कि मानसिक पुनरुत्थान (Cognitive Renaissance) का अभियान है।

1835 का Macaulay Minute: भारत पर एक निर्णायक प्रहार

मैकाले के Minute के मुख्य बिंदु:

  • संस्कृत, अरबी, फारसी, हिंदी तमिल,तेलगु  जैसी भारतीय भाषाओं को निरर्थक घोषित किया गया।
  • अंग्रेजी भाषा को “उच्च ज्ञान” का एकमात्र माध्यम बताया गया।
  • सरकारी धन केवल अंग्रेजी शिक्षा पर खर्च करने का प्रस्ताव।
  • भारतीय साहित्य, दर्शन, चिकित्सा, गणित आदि को पश्चिमी विज्ञान से निम्न साबित करने की कोशिश।
  • एक “मध्यस्थ वर्ग” तैयार करने की योजना: “Indian in blood and colour, but English in tastes, opinions, morals and intellect.”

यह शिक्षा नीति भारत की सांस्कृतिक, भाषाई और बौद्धिक आत्मा पर सीधा हमला थी।

कौन थे Macaulay ?

  • पूरा नाम: थॉमस बैबिंगटन मैकाले
  • भारत की गवर्नर-जनरल की परिषद के प्रथम विधि सदस्य (1834–1838)
  • चार्टर एक्ट 1833 के तहत नियुक्त
  • भारतीय दंड संहिता (IPC) और शिक्षा नीति पर गहरा प्रभाव।

गांधी का दृष्टिकोण: ‘सुंदर वृक्ष’ का विनाश

महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शिक्षा नीति पर प्रहार करते हुए कहा: “भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली एक सुंदर वृक्ष थी, जिसे उखाड़कर नष्ट कर दिया गया।”

गांधी का तात्पर्य था कि भारत की गुरुकुल/पाठशाला प्रणाली ने:

  • नैतिकता,
  • चरित्र,
  • कारीगरी,
  • सामुदायिक भावना,
  • और स्थानीय ज्ञान को बढ़ावा दिया था।

मैकाले की नीति ने इसे समाप्त कर अंग्रेजी आधारित मानसिक गुलामी की नींव रखी।

भारत में औपनिवेशिक मानसिकता: पाँच मुख्य आयाम

औपनिवेशिक मानसिकता केवल भाषा का प्रश्न नहीं है—यह सामाजिक संरचना, प्रशासन, संस्कृति और सोच तक फैला है।

(1) भाषा पर आधारित औपनिवेशिकता

  • अंग्रेजी अदालतों, विश्वविद्यालयों और नौकरियों की प्रमुख भाषा बन गई।
  • अंग्रेजी को “सफलता का टिकट” माना जाने लगा।
  • इससे भारतीय भाषाएँ—विशेषकर संस्कृत, तमिल, पाली, बांग्ला, हिंदी—शैक्षिक प्रतिस्पर्धा से बाहर हो गईं।
  • गैर-अंग्रेजी भाषी भारतीय अक्सर अवसरों से वंचित रह गए।

(2) सांस्कृतिक औपनिवेशिकता

पश्चिमी संस्कृति को “श्रेष्ठ” घोषित कर भारतीय जीवनशैली को नीचे दिखाया गया:

  • वस्त्र, भोजन, कला, साहित्य, संगीत, वास्तुकला—सब पर प्रभाव।
  • परिणामस्वरूप भारतीय सांस्कृतिक गर्व में कमी और ‘अनुकरण’ की मानसिकता विकसित हुई।
  • भारतीय ज्ञान प्रणालियों को अवैज्ञानिक कहा गया।

(3) कानून और संस्थागत औपनिवेशिकता

बहुत-से कानून ब्रिटिश नियंत्रण बनाए रखने के लिए बनाए गए, जैसे:

  • IPC (1860)
  • राजद्रोह कानून (Sedition)
  • पुलिस कानून (1861)
  • वन कानून
  • भूमि और राजस्व कानून

उनका मूल उद्देश्य था नागरिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि प्रशासनिक नियंत्रण

(4) आर्थिक औपनिवेशिकता

  • भारत को कच्चा माल देने वाला और ब्रिटेन का बाज़ार बनाने वाला मॉडल थोपना।
  • स्थानीय उद्योगों (जैसे हथकरघा, लोहा, जहाज़ निर्माण) का विनाश।
  • धन का भारी बहिर्वाह (Drain of Wealth)।
  • परिणाम: व्यापक गरीबी और आर्थिक पिछड़ापन।

(5) ज्ञान और शोध का औपनिवेशिक मॉडल

  • पश्चिमी शोध पद्धतियाँ थोपना।
  • भारतीय विज्ञान, गणित, चिकित्सा, योग, कृषि ज्ञान को “अवैज्ञानिक” बताना।
  • भारतीय विश्वविद्यालयों में भी पश्चिमी प्रतिमानों का प्रभुत्व।

संज्ञानात्मक विऔपनिवेशीकरण (Cognitive Decolonisation):

आगे की राह

भारत अब उस चरण में है जहाँ मानसिक स्वतंत्रता आवश्यक है। इसके तीन स्तर हैं-नीतिगत, सांस्कृतिक, व्यवहारिक।

(1) नीतिगत विऔपनिवेशीकरण

प्रमुख कदम:

  • NEP 2020: मातृभाषा आधारित शिक्षा, भारतीय ज्ञान प्रणाली (IKS), कौशल आधारित शिक्षण।
  • औपनिवेशिक कानूनों का संशोधन/निरसन।
  • प्रशासनिक ढांचे में भारतीय मूल्यों का पुनर्संयोजन।

उदाहरण:

  • राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ—शक्ति प्रदर्शन से सेवा और कर्तव्य की ओर बदलाव।
  • IPC को नए भारतीय न्याय संहिताओं से बदलने की पहल।

(2) सांस्कृतिक पुनरुद्धार

भारतीय सांस्कृतिक स्मृति का पुनरुत्थान:

  • योग को वैश्विक पहचान — अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस
  • शिल्प, लोककला, त्योहारों का पुनरोत्थान
  • नए संसद भवन में सेंगोलभारतीय राज्य परंपरा का प्रतीक

(3) व्यवहारिक परिवर्तन

  • आत्मनिर्भर भारत: स्वदेशी नवाचार, स्थानीय उत्पादन।
  • भारतीय मॉडल पर आधारित सतत विकास।

उदाहरण: मिशन LIFE (Lifestyle for Environment): भारतीय जीवनशैली पर आधारित पर्यावरणीय जिम्मेदारी।

निष्कर्ष 

1835 का मैकाले मिनट केवल शिक्षा नीति नहीं था—यह मानसिक दासता की एक सुविचारित रणनीति थी। इस नीति ने भारतीय भाषाओं, संस्कृति और ज्ञान परंपराओं को कमजोर किया और अंग्रेज़ी-केन्द्रित अभिजात्य वर्ग का निर्माण किया।

प्रधानमंत्री का 10-वर्षीय प्रतिज्ञा आह्वान संकेत देता है कि भारत अब अपनी सांस्कृतिक आत्मा को पुनर्जीवित करने के दौर में है। संज्ञानात्मक विऔपनिवेशीकरण—यानी सोच, शिक्षा, कानून और संस्कृति को भारतीय दृष्टिकोण के अनुसार पुनर्परिभाषित करना—21वीं सदी के भारत के लिए अत्यावश्यक है।

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