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शिक्षा को राज्य सूची में शामिल करने के निहितार्थ

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ, स्थानीय स्तर पर शक्तियों व वित्त का हस्तांतरण और उसकी चुनौतियाँ, विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण)

संदर्भ

हाल के समय में परीक्षा में अनियमितताओं और विभिन्न परीक्षाओं के स्थगित होने के कारण शिक्षा व्यवस्था विवादों में घिरी हुई है। ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए विभिन्न विशेषज्ञों ने शिक्षा को राज्य सूची में शामिल करने के पक्ष में मत व्यक्त किया है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि  

  • ब्रिटिश शासन के दौरान भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत पहली बार संघीय ढांचे का निर्माण किया गया।
  • विधायी विषयों को संघीय विधायिका (वर्तमान संघ) और प्रांतों (वर्तमान राज्यों) के बीच वितरित किया गया। शिक्षा को प्रांतीय सूची में रखा गया। स्वतंत्रता के बाद भी यह जारी रहा और शक्तियों के वितरण के तहत शिक्षा 'राज्य सूची' का हिस्सा बन गई।

शिक्षा को समवर्ती सूची में शामिल करना 

  • आपातकाल के दौरान कांग्रेस पार्टी ने संविधान संशोधन के लिए सिफारिशें देने के लिए स्वर्ण सिंह समिति का गठन किया था। इस समिति की सिफारिशों में 'शिक्षा' को समवर्ती सूची में रखना भी शामिल था ताकि इस विषय पर अखिल भारतीय नीतियाँ विकसित की जा सकें।
  • 42वें संविधान संशोधन (1976) के माध्यम से 'शिक्षा' को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया। हालाँकि, इस बदलाव के लिए कोई विस्तृत तर्क नहीं दिया गया और बिना पर्याप्त बहस के विभिन्न राज्यों द्वारा संशोधन की पुष्टि कर दी गई थी।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा व्यवस्था

  • अमेरिका में राज्य व स्थानीय सरकारें समग्र शैक्षिक मानक निर्धारित करती हैं, मानकीकृत परीक्षण अनिवार्य करती हैं और कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों की निगरानी करती हैं। संघीय शिक्षा विभाग के कार्यों में मुख्यत: वित्तीय सहायता के लिए नीतियां बनाना, प्रमुख शैक्षिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना और समान पहुंच सुनिश्चित करना शामिल है।
  • कनाडा में शिक्षा का प्रबंधन पूरी तरह से प्रांतों द्वारा किया जाता है। जर्मनी का संविधान शिक्षा के लिए विधायी शक्तियों को लैंडर्स (राज्यों के समकक्ष) के पास रखता है।
  • दक्षिण अफ्रीका में शिक्षा को स्कूल एवं उच्च शिक्षा से संबंधित दो राष्ट्रीय विभागों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। देश के प्रांतों के पास राष्ट्रीय विभागों की नीतियों को लागू करने और स्थानीय मुद्दों से निपटने के लिए अपने स्वयं के शिक्षा विभाग हैं।

राज्य सूची में शामिल करने के पक्ष में तर्क 

  • समवर्ती सूची में 'शिक्षा' के पक्ष में तर्कों में एक समान शिक्षा नीति, मानकों में सुधार और केंद्र व राज्यों के बीच तालमेल शामिल हैं। हालांकि, देश की विशाल विविधता को देखते हुए 'एक आकार सभी के लिए उपयुक्त' दृष्टिकोण न तो संभव है और न ही वांछनीय है। इसलिए सामूहिक रूप से इसके दोनों पक्षों पर विचार किया जाना चाहिए। 
  • वर्ष 2022 में शिक्षा मंत्रालय द्वारा तैयार 'शिक्षा पर बजटीय व्यय का विश्लेषण' रिपोर्ट के अनुसार, भारत में शिक्षा विभागों द्वारा कुल राजस्व व्यय अनुमानत: 6.25 लाख करोड़ (2020-21) का है। इसमें से 15% केंद्र द्वारा व्यय किया जाता है जबकि 85% राज्यों द्वारा व्यय किया जाता है।  
  • राज्यों द्वारा वहन किए जा रहे व्यय के बड़े हिस्से को देखते हुए स्वायत्तता की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए 'शिक्षा' को राज्य सूची में पुन: शामिल करने की दिशा में एक सार्थक चर्चा की आवश्यकता है।
  • उच्च शिक्षा के लिए विनियामक तंत्र के रूप में राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद जैसे केंद्रीय संस्थानों को जारी रखा जा सकता है।
    •  ये चिकित्सा एवं इंजीनियरिंग जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों सहित उच्च शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम, परीक्षण एवं प्रवेश के अनुरूप नीतियां तैयार करने में सक्षम होंगे।
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