प्रारम्भिक परीक्षा – भारत की नदी जोड़ो योजना, जल संकट मुख्य परीक्षा - सामान्य अध्ययन, पेपर-1और 3 |
संदर्भ
- जर्नल नेचर पत्रिका के अनुसार, बाढ़ और सूखा की समस्या का स्थायी समाधान ढूंढने के लिए भारत की महत्त्वाकांक्षी 'नदी जोड़ो योजना' से जल संकट और बढ़ सकता है एवं मानसून की प्रवृत्ति भी प्रभावित हो सकती है।
- इस रिपोर्ट में जलवायु माडल और आंकड़ों का पुनर्विश्लेषण सहित कई तकनीकों का उपयोग करके भारत में स्थित नदी जोड़ो परियोजनाओं द्वारा उत्पन्न होने वाले जल एवं मौसम संबंधी परिणामों के जटिल तंत्र पर प्रकाश डाला गया है।

प्रमुख बिंदु
नदी जोड़ो योजना से जल संकट कैसे उत्पन्न होगा?
- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) मुंबई, भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) पुणे सहित अन्य अनुसंधान में शामिल वैज्ञानिकों ने अध्ययन के दौरान जलवायु परिस्थितियों का आकलन किया जो अल नीनो-दक्षिणी दोलन जैसी परिस्थितियों को प्रभावित करते हैं।
- अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, नदी जोड़ो योजना पूर्ण होने के बाद अंतर बेसिन जल स्थानांतरण स्थल-वायुमंडल अंतरसंबंध को बिगाड़ सकता है एवं इससे वायु में नमी का स्तर प्रभावित हो सकता है। इससे देश में बारिश की प्रवृत्ति बदल सकती है। जिससे भारत की विशाल नदी जोड़ो परियोजनाओं पर प्रभाव पड़ेगा।
- इस रिपोर्ट के अनुसार, परियोजना में अति जल वाली नदी बेसिन से कम जल वाली नदी बेसिन में जलाशय और नहरों द्वारा जल का स्थानांतरण बिना जलीय मौसमी असर के विस्तृत समझ से किया जाएगा।
- चिंताजनक पहलू यह है कि स्थानांतरित पानी से सिंचित क्षेत्र बढ़ने से पहले ही पानी की कमी का सामना कर रहे इलाकों में सितंबर में होने वाली बारिश में करीब 12 प्रतिशत तक कमी आ सकती हैं।

उद्देश्य
- नदी जोड़ो परियोजना एक सिविल इंजीनियरिंग परियोजना है, जिसका उद्देश्य भारतीय नदियों को जलाशयों और नहरों के माध्यम से आपस में जोड़ना है। इससे किसानों को खेती के लिए मानसून पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा और साथ ही बाढ़ या सूखे के समय पानी की अधिकता या कमी को दूर किया जा सकेगा।
- विश्व में जितना भी पानी उपलब्ध है उसका केवल चार फीसदी ही भारत के पास है और भारत की आबादी विश्व की कुल आबादी का लगभग 18 फीसदी है।
- हर साल करोड़ों क्यूबिक क्यूसेक पानी बह कर समुद्र में चला जाता है और भारत को केवल 4 फीसदी पानी से ही अपनी जरूरतों को पूरा करना पड़ता है।
नदी जोड़ो परियोजना क्या हैं?
- इस परियोजना के तहत भारत की 60 नदियों को जोड़ा जाएगा जिसमें गंगा नदी भी शामिल हैं।
- इस परियोजना को तीन भागों में विभाजित किया गया है: उत्तर हिमालयी नदी जोड़ो घटक; दक्षिणी प्रायद्वीपीय घटक और 2005 से शुरू, अंतरराज्यीय नदी जोड़ो घटक।
- इस परियोजना को भारत के राष्ट्रीय जल विकास प्राधिकरण (NWDA), जल संसाधन मंत्रालय के अन्तर्गत प्रबंधित किया जा रहा है।
नदी जोड़ो परियोजना का इतिहास
- सबसे पहले नदियों को जोड़ने का विचार 150 वर्ष पूर्व 1919 में मद्रास प्रेसीडेंसी के मुख्य इंजीनियर सर आर्थर कॉटन द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
- 1960 में फिर तत्कालीन ऊर्जा और सिंचाई राज्यमंत्री K.L. राव ने गंगा और कावेरी नदियों को जोड़ने के विचार को प्रस्तुत किया था।
- पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने 1982 में नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी का गठन किया था।
- सुप्रीम कोर्ट ने 31 अक्टूबर, 2002 में एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को इस योजना को शीघ्रता से पूरा करने को कहा और साथ ही 2003 तक इस पर प्लान बनाने को कहा और 2016 तक इसको पूरा करने पर ज़ोर दिया।
- 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने फिर से केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि इस महत्वकांक्षी परियोजना को समयबद्द तरीके से अमल करके शुरू किया जाए ताकि समय ज्यादा बढ़ने की वजह से इसकी लागत और न बढ़ जाए।
- 2017 में सबसे पहले केन-बेतवा परियोजना लिंक जिसमें उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के हिस्से शामिल है को जोड़ा जाएगा ।
- इस परियोजना के तहत मध्य प्रदेश से केन नदी के अतिरिक्त पानी को 231 किमी लंबी एक नहर के जरिये उत्तर प्रदेश में बेतवा नदी तक लाया जाएगा।
- इससे बुंदेलखंड के एक लाख 27 हजार हेक्टेयर ज़मीन की सिंचाई की जा साकेगी क्योंकि यह सबसे ज्यादा सूखा ग्रस्त क्षेत्र है।
नदी जोड़ने परियोजना से लाभ
- इस परियोजना से सूखे तथा बाढ़ की समस्या से राहत मिल सकती है क्योंकि जरूरत पड़ने पर बाढ़ वाली नदी बेसिन का पानी सूखे वाले नदी बेसिन को दिया जा सकता है।
- गंगा और ब्रह्मपुत्र क्षेत्र में हर साल आने वाली बाढ़ से समाधान मिल सकता है।
- सिंचाई करने वाली भूमि भी तकरीबन 15 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी।
- 15000 किलोमीटर नहरों का और 10000 किलोमीटर नौवाहन का विकास होगा, जिससे परिवहन लागत में कमी आएगी।
- बड़े पैमाने पर वनीकरण होगा और तकरीबन 3000 टूरिस्ट स्पॉट बनेंगे।
- इस परियोजना से पीने के पानी की समस्या दूर होगी और आर्थिक रूप से भी समृद्धि आएगी।
नदी जोड़ो परियोजना से हानि
- नदी जोड़ो परियोजना को पूरा करने हेतु कई बड़े बाँध, नहरें और जलाशय बनाने होंगे जिससे आस-पास की भूमि दलदली हो जाएगी और कृषि योग्य नहीं रहेगी।
- इससे खाद्यान्न उत्पादन में भी कमी आ सकती है।
- नदी को जोड़े बिना भी बाढ़ और सूखे की समस्या से निजात पाया जा सकता है।
परियोजना से उत्पन्न विवाद
- भारतीय राज्यों में पानी को लेकर काफी विवाद है जैसे- कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच में कावेरी जल विवाद या राजस्थान और मध्यप्रदेश में चम्बल नदी को लेकर विवाद।
- इतनी बड़ी परियोजना के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सहमति जरुरी हो जाती है।
निष्कर्ष
- भारत जैसे भू-सांस्कृतिक विविधता वाले देश में जहां पर सिंचाई और पानी पीने के लिए प्रबंध अलग-अलग स्रोतों से होता आ रहा हो, तथा इतनी बड़ी जनसंख्या हो वहां नदी को जोड़ो परियोजना के लिए केंद्र सरकार अथवा शोध कर्ताओं को विचार कर लेना आवश्यक है ताकि बाद के दुष्परिणामों से बचा जा सके।
- जहां सूखा ग्रस्त और बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र हों वहां सरकार को कोई न कोई समाधान निकालना पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए भी अनिवार्य है।
- समाज को पानी के महत्व से समय रहते अवगत कराना और नदियों की विशेषता बताना कि कैसे पानी को इस्तेमाल किया जाए भी जरूरी है। अर्थात यह देश हमारा है सरकार के साथ-साथ हमें भी पानी के महत्व को समझना होगा।
प्रारंभिक परीक्षा प्रश्न:- निम्नलिखित में से केन-बेतवा लिंक परियोजना किन राज्यों से संबंधित है?
(a) उत्तर प्रदेश और राजस्थान
(b) उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश
(c) मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़
(d) मध्य प्रदेश और झारखण्ड
उत्तर : (b)
मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न - भारत में नदी जोड़ो परियोजना के लाभ और हानि की व्याख्या कीजिये।
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