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भारत में प्रारंभिक शिक्षा : विशेषताएँ, महत्व एवं कार्यान्वयन

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2
: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)

संदर्भ

दिल्ली सरकार ने कक्षा 1 में प्रवेश के लिए छह वर्ष की एक समान न्यूनतम आयु लागू करने और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 तथा शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 के अनुरूप स्कूली शिक्षा के ‘आधारभूत चरण’ का पुनर्गठन करने का निर्णय लिया है जो वर्ष 2026-27 शैक्षणिक सत्र से शुरू होगा।

शिक्षा के प्रारंभिक स्तर के बारे में

  • NEP 2020 ने स्कूली शिक्षा की पारंपरिक 10+2 संरचना को 5+3+3+4 के नए ढांचे में परिवर्तित किया है।
  • इस नई संरचना में प्रारंभिक स्तर (Foundational Stage) शिक्षा का पहला चरण है जो 3 से 8 वर्ष की आयु के बच्चों को कवर करता है।
  • यह स्तर निम्नलिखित दो भागों में विभाजित है:
    • पूर्व-प्राथमिक शिक्षा (3 वर्ष) : इसमें 3 से 6 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए नर्सरी (बाल वाटिका 1), लोअर किंडरगार्टन (बाल वाटिका 2) एवं अपर किंडरगार्टन (बाल वाटिका 3) शामिल हैं।
    • प्रारंभिक प्राथमिक शिक्षा (2 वर्ष) : इसमें कक्षा 1 व कक्षा 2 शामिल हैं जो 6 से 8 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए हैं।

NEP 2020 के तहत प्रारंभिक स्तर की प्रमुख विशेषताएँ 

  • खेल-आधारित एवं गतिविधि-आधारित शिक्षा : इस स्तर पर शिक्षा का जोर रटने के बजाय खेल, गतिविधियों एवं इंटरैक्टिव शिक्षण पर है। यह बच्चों में रचनात्मकता, जिज्ञासा व सामाजिक-भावनात्मक कौशल को बढ़ावा देता है।
  • मातृभाषा में शिक्षा : मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा को प्राथमिकता दी गई है,
    (विशेष रूप से कक्षा 5 तक) ताकि बच्चे बेहतर ढंग से समझ सकें और सीख सकें।
  • प्रारंभिक साक्षरता एवं संख्यात्मकता : नीति का लक्ष्य 2025 तक सभी बच्चों में प्रारंभिक साक्षरता (बुनियादी पढ़ना-लिखना) और संख्यात्मकता (बुनियादी गणितीय कौशल) सुनिश्चित करना है। इसके लिए राष्ट्रीय प्रारंभिक साक्षरता एवं संख्यात्मकता मिशन की स्थापना की गई है।
  • आंगनवाड़ी व स्कूलों का एकीकरण : प्रारंभिक शिक्षा को औपचारिक स्कूली शिक्षा का हिस्सा बनाने के लिए आंगनवाड़ी केंद्रों को प्राथमिक स्कूलों के साथ जोड़ा जा रहा है।
  • बाल-केंद्रित दृष्टिकोण : पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियां बच्चों की संज्ञानात्मक, सामाजिक व भावनात्मक जरूरतों के अनुरूप डिज़ाइन की गई हैं।
  • लचीली संरचना : नर्सरी, लोअर किंडरगार्टन एवं अपर किंडरगार्टन के नामकरण में लचीलापन प्रदान किया गया है ताकि स्कूल अपनी आवश्यकताओं के अनुसार इन्हें संशोधित कर सकें।

प्रारंभिक शिक्षा स्तर का महत्व

  • मस्तिष्क विकास का आधार : वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, 85% मस्तिष्क विकास 6 वर्ष की आयु तक हो जाता है। इस स्तर पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा बच्चों के संज्ञानात्मक एवं भावनात्मक विकास को मजबूत करती है।
  • शैक्षिक असमानता को कम करना : प्रारंभिक शिक्षा को औपचारिक स्कूली ढांचे में शामिल करने से ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के बीच शैक्षिक अंतर को कम करने में मदद मिलेगी।
  • ड्रॉपआउट दर में कमी : उचित आयु में औपचारिक शिक्षा शुरू करने से बच्चों पर शैक्षिक दबाव कम होता है जिससे ड्रॉपआउट दर में कमी आ सकती है।
  • सामाजिक व भावनात्मक कौशल : खेल-आधारित शिक्षा बच्चों में सहयोग, नेतृत्व व संचार जैसे सामाजिक-भावनात्मक कौशल विकसित करती है जो जीवनभर उपयोगी होते हैं।
  • दीर्घकालिक शैक्षिक लाभ : यूके के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय जैसे अध्ययनों से पता चलता है कि 5 वर्ष की आयु से पहले औपचारिक शिक्षा शुरू करने से दीर्घकालिक शैक्षिक लाभ नहीं मिलते हैं। 6 वर्ष की आयु में कक्षा 1 की शुरूआत करने से बच्चों की समझ और सीखने के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बढ़ता है।

कार्यान्वयन के लिए आवश्यक कदम

  • बुनियादी ढांचे का विकास : दिल्ली जैसे शहरों में प्री-प्राइमरी कक्षाओं के लिए अतिरिक्त कक्षाओं, शिक्षकों और संसाधनों की आवश्यकता होगी। स्कूलों को नए ढांचे के लिए तैयार करना होगा।
  • शिक्षक प्रशिक्षण : प्रारंभिक शिक्षा के लिए विशेष प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षकों की नियुक्ति और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को छह महीने का ECCE (Early Childhood Care and Education) प्रमाणन प्रदान करना।
  • जागरूकता एवं भागीदारी : अभिभावकों, शिक्षकों एवं स्कूल प्रबंधन को नए ढांचे व आयु मानदंडों के बारे में जागरूक करना।
  • आंगनवाड़ी का सशक्तिकरण : आंगनवाड़ी केंद्रों को प्री-प्राइमरी शिक्षा के लिए उन्नत करना और इन्हें प्राथमिक स्कूलों के साथ एकीकृत करना।
  • निगरानी एवं मूल्यांकन : प्रारंभिक साक्षरता व संख्यात्मकता के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक राष्ट्रीय भंडार (DIKSHA मंच पर) और निगरानी तंत्र स्थापित करना।
  • वित्तीय निवेश : स्कूलों में संसाधनों, शिक्षक प्रशिक्षण एवं बुनियादी ढांचे के लिए पर्याप्त वित्तीय आवंटन सुनिश्चित करना।

दिल्ली में कार्यान्वयन की स्थिति

  • दिल्ली सरकार ने NEP 2020 के अनुरूप प्रारंभिक स्तर की संरचना को लागू करने का निर्णय लिया है, जो 2026-27 सत्र से प्रभावी होगा। 
  • इससे पहले दिल्ली में नर्सरी के लिए 3 वर्ष, किंडरगार्टन के लिए 4 वर्ष और कक्षा 1 के लिए 5 वर्ष की आयु सीमा थी।
  • नई नीति के तहत:
    • नर्सरी (बाल वाटिका 1): 3 वर्ष से अधिक
    • लोअर किंडरगार्टन (बाल वाटिका 2): 4 वर्ष से अधिक
    • अपर किंडरगार्टन (बाल वाटिका 3): 5 वर्ष से अधिक
    • कक्षा 1: 6 वर्ष से अधिक
  • दिल्ली के शिक्षा निदेशालय (DoE) ने सभी सरकारी, सरकारी-सहायता प्राप्त एवं मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों को इस आयु मानदंड का पालन करने का निर्देश दिया है। 
  • हालांकि, बुनियादी ढांचे की कमी और लॉजिस्टिक चुनौतियों के कारण दिल्ली में अब तक इस संरचना को लागू नहीं किया गया था। कई अन्य राज्यों ने पहले ही इस मॉडल को लागू कर लिया है।

निष्कर्ष

दिल्ली सरकार का 2026-27 से कक्षा 1 में 6 वर्ष की आयु लागू करने का निर्णय इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, इसके सफल कार्यान्वयन के लिए बुनियादी ढांचे, शिक्षक प्रशिक्षण, और जागरूकता अभियानों में निवेश आवश्यक है। यह नीति न केवल बच्चों के शैक्षिक भविष्य को मजबूत करेगी, बल्कि भारत को एक समावेशी और ज्ञान-आधारित समाज बनाने की दिशा में भी योगदान देगी।

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