(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय) |
संदर्भ
बैंकिंग ऑन क्लाइमेट किओस कोएलिशन द्वारा जारी फॉसिल फ्यूल फाइनेंस रिपोर्ट, 2025 के अनुसार, विश्व के शीर्ष 65 बैंकों ने वर्ष 2024 में जीवाश्म ईंधन कंपनियों को 869 बिलियन डॉलर का वित्तपोषण प्रदान किया है। भारत का स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) भी उन 48 बैंकों में शामिल है जिन्होंने अपने जीवाश्म ईंधन वित्तपोषण में वृद्धि की है।
बैंकों द्वारा जीवाश्म ईंधन वित्तपोषण : वैश्विक परिदृश्य
- वित्तपोषण में वृद्धि : वर्ष 2024 में शीर्ष 65 बैंकों ने जीवाश्म ईंधन क्षेत्र (कोयला, तेल, और गैस) में 869 बिलियन डॉलर का वित्तपोषण किया, जो 2023 के 707 बिलियन डॉलर की तुलना में 23% अधिक है।
- यह वर्ष 2021 से 2023 तक वित्तपोषण में कमी के रुझान के उलट है।
- प्रमुख बैंक : जेपी मॉर्गन चेज़ ने 53.5 बिलियन डॉलर के साथ शीर्ष स्थान बनाए रखा है जो वर्ष 2023 की तुलना में 15 बिलियन डॉलर अधिक है।
- अन्य प्रमुख बैंकों में बैंक ऑफ अमेरिका (46 बिलियन डॉलर), सिटीग्रुप (44.7 बिलियन डॉलर) और मिज़ुहो फाइनेंशियल (40.3 बिलियन डॉलर) शामिल हैं।
- विस्तार पर ध्यान : 429 बिलियन डॉलर जीवाश्म ईंधन उत्पादन एवं बुनियादी ढांचे के विस्तार में व्यय हुए, जो वर्ष 2023 की तुलना में 84.4 बिलियन डॉलर की वृद्धि है।
- वर्ष 2021 से बैंकों ने विस्तार करने वाली कंपनियों को 1.6 ट्रिलियन डॉलर प्रदान किए हैं।
- पेरिस समझौते के बाद : वर्ष 2016 में पेरिस समझौते के लागू होने के बाद से इन बैंकों ने जीवाश्म ईंधन क्षेत्र में 7.9 ट्रिलियन डॉलर का वित्तपोषण किया है जिसमें 3.3 ट्रिलियन डॉलर विस्तार के लिए है।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की भूमिका
- वित्तपोषण में मामूली वृद्धि : SBI ने वर्ष 2024 में जीवाश्म ईंधन वित्तपोषण में 65 मिलियन डॉलर की वृद्धि की है जो 2023 के 2.55 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2.62 बिलियन डॉलर हो गया।
- यह वृद्धि वैश्विक स्तर पर मामूली है किंतु इससे SBI 65 बैंकों में 47वें स्थान पर आ गया, जो 2023 में 49वें स्थान पर था।
- कुल वित्तपोषण : वर्ष 2021 से 2024 तक SBI का कुल जीवाश्म ईंधन वित्तपोषण 10.6 बिलियन डॉलर रहा है जो जेपी मॉर्गन चेज़ के 2024 के वित्तपोषण (53.5 बिलियन डॉलर) से काफी कम है।
- जलवायु प्रतिबद्धताएँ : फरवरी 2025 में SBI के चेयरमैन ने वर्ष 2055 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन एवं वर्ष 2030 तक घरेलू सकल अग्रिमों का 7.5% ग्रीन अग्रिमों के रूप में लक्षित करने की घोषणा की।
- मार्च 2025 तक SBI के घरेलू अग्रिम 36.02 लाख करोड़ रुपए थे और बैंक ने संधारणीय वित्तीय गतिविधियों के लिए 20,558 करोड़ रुपए की स्वीकृति दी थी।
जीवाश्म ईंधन वित्तपोषण के प्रभाव
- जलवायु लक्ष्यों पर खतरा : इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) के अनुसार, वर्ष 2050 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए 2030 तक तेल, गैस एवं कोयले में निवेश को आधे से अधिक कम करना होगा।
- नए जीवाश्म ईंधन बुनियादी ढांचे से दशकों तक निर्भरता बढ़ती है जो 1.5 ℃ के लक्ष्य को खतरे में डालता है।
- सबसे गर्म वर्ष के रूप में 2024 : विश्व मौसम संगठन ने वर्ष 2024 को 175 वर्षों में सबसे गर्म वर्ष घोषित किया है जिसमें वैश्विक सतह का तापमान औद्योगिक-पूर्व औसत से 1.5 ℃ अधिक था।
- जीवाश्म ईंधन वित्तपोषण में वृद्धि इस संकट को अधिक गंभीर करती है।
- विलय एवं अधिग्रहण : वर्ष 2024 में अधिग्रहण के लिए वित्तपोषण 19.2 बिलियन डॉलर बढ़कर 82.9 बिलियन डॉलर हो गया।
- हालाँकि, यह नए बुनियादी ढांचे का निर्माण नहीं करता है किंतु यह जीवाश्म ईंधन कंपनियों की शक्ति एवं प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाता है।
चुनौतियाँ एवं नीतिगत बदलाव
- नीतिगत छूट : कई बैंकों की जलवायु प्रतिबद्धताएँ कमज़ोर हुई हैं।
- उदाहरण के लिए, वेल्स फार्गो ने 2050 तक नेट-ज़ीरो का लक्ष्य छोड़ दिया है और अमेरिका के छह सबसे बड़े बैंकों (जेपी मॉर्गन, सिटीग्रुप, बैंक ऑफ अमेरिका, मॉर्गन स्टेनली, वेल्स फार्गो और गोल्डमैन सैक्स) ने नेट-ज़ीरो बैंकिंग गठबंधन छोड़ दिया।
- अमेरिका की नीतियाँ : जनवरी 2025 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत अमेरिका वर्ष 2026 में पेरिस समझौते से बाहर हो जाएगा।
- अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने ग्रीनिंग द फाइनेंशियल सिस्टम के लिए नेटवर्क ऑफ सेंट्रल बैंक्स एंड सुपरवाइजर्स से भी सदस्यता वापस ले ली।
- भारतीय बैंकों की कमियाँ : बेंगलुरु स्थित थिंक-टैंक क्लाइमेट रिस्क होराइजन्स के अनुसार, भारतीय बैंकों में कोयला वित्तपोषण एक बड़ा ब्लाइंड स्पॉट (Blind Spot) है।
- मार्च 2024 तक केवल फेडरल बैंक और RBL बैंक ने स्पष्ट कोयला बहिष्करण नीतियां अपनाई थीं।
- आर्थिक बदलाव : नवीकरणीय ऊर्जा एवं भंडारण अब कोयले की तुलना में सस्ती बिजली प्रदान कर सकते हैं। फिर भी, भारतीय बैंक टिकाऊ वित्त में पीछे हैं।
भारत के संदर्भ में निहितार्थ
- SBI की दोहरी भूमिका : हालांकि SBI का जीवाश्म ईंधन वित्तपोषण वैश्विक स्तर पर मामूली है किंतु यह भारत में नवीकरणीय ऊर्जा और टिकाऊ वित्त की ओर तेजी से बदलाव की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- SBI की वर्ष 2055 तक नेट-ज़ीरो की प्रतिबद्धता दीर्घकालिक है किंतु वर्ष 2030 तक 7.5% ग्रीन अग्रिमों का लक्ष्य एक सकारात्मक कदम है।
- कोयला निर्भरता : भारत की ऊर्जा मांग का एक बड़ा हिस्सा कोयले पर निर्भर है। कोयला वित्तपोषण में कमी के बिना भारत के वर्ष 2070 तक नेट-ज़ीरो के लक्ष्य को प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण होगा।
- विनियामक ढांचा : भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने जलवायु जोखिम प्रबंधन के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं किंतु बैंकों के लिए जीवाश्म ईंधन वित्तपोषण को चरणबद्ध रूप से समाप्त करने के लिए सख्त नीतियों की आवश्यकता है।
आगे की राह
- सख्त नीतियाँ : बैंकों को जीवाश्म ईंधन विस्तार के लिए वित्तपोषण पर प्रतिबंध लगाना चाहिए, विशेष रूप से नए कोयला, तेल एवं गैस परियोजनाओं के लिए।
- नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश : SBI जैसे बैंकों को ग्रीन अग्रिमों को बढ़ाने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश बढ़ाना चाहिए।
- विनियामक हस्तक्षेप : सरकारों को बैंकों के लिए बाध्यकारी उत्सर्जन कटौती लक्ष्य एवं जीवाश्म ईंधन बहिष्करण नीतियाँ लागू करनी चाहिए।
- जागरूकता एवं प्रशिक्षण : भारतीय बैंकों को जलवायु जोखिम मूल्यांकन व टिकाऊ वित्त के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग : भारत को पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वैश्विक वित्तीय संस्थानों के साथ सहयोग बढ़ाना चाहिए।
निष्कर्ष
वर्ष 2024 में जीवाश्म ईंधन वित्तपोषण में वैश्विक वृद्धि जलवायु संकट से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित करती है। SBI का मामूली वृद्धि वाला योगदान भारत में टिकाऊ वित्त की ओर तेजी से बदलाव की आवश्यकता को दर्शाता है। भारतीय बैंकों, विशेष रूप से SBI, को कोयला वित्तपोषण को चरणबद्ध रूप से समाप्त करना चाहिए और नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश बढ़ाना चाहिए।