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‘ग्वाडा नेगेटिव’ रक्त समूह की खोज

22 जून, 2025 को फ्रांस की रक्त आपूर्ति एजेंसी ‘फ्रेंच ब्लड एस्टैब्लिशमेंट (EFS) ने कैरिबियाई द्वीप ग्वाडेलूप की एक महिला में एक नए रक्त समूह ‘ग्वाडा नेगेटिव’ की खोज की घोषणा की है। इसे इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन (ISBT) ने 48वें रक्त समूह प्रणाली के रूप में मान्यता दी है। यह खोज चिकित्सा विज्ञान एवं रक्ताधान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण प्रगति है।

नए रक्त समूह से संबंधित प्रमुख बिंदु 

  • नामकरण : नए रक्त समूह को ‘ग्वाडा नेगेटिव’ (Gwada Negative) नाम दिया गया है। यह महिला की ग्वाडेलूप उत्पत्ति को दर्शाता है।
  • प्रारंभिक खोज : वर्ष 2011 में पेरिस में एक 54 वर्षीय महिला के रक्त नमूने में एक असामान्य एंटीबॉडी पाई गई थी, जो नियमित सर्जरी से पहले की जा रही जांच का हिस्सा था। हालाँकि, उस समय संसाधनों की कमी के कारण आगे की जांच नहीं हो सकी थी।
  • वैज्ञानिक प्रगति : वर्ष 2019 में हाई-थ्रूपुट डी.एन.ए. सीक्वेंसिंग तकनीक ने एक जेनेटिक म्यूटेशन को प्रदर्शित किया, जो इस नए रक्त समूह का आधार है। यह म्यूटेशन महिला के माता-पिता दोनों में मौजूद था, जिनसे उन्हें यह रक्त समूह विरासत में मिला।
  • विश्व में एकमात्र वाहक : वर्तमान में यह महिला दुनिया की एकमात्र व्यक्ति है जो इस रक्त समूह की वाहक है। वह केवल अपने ही रक्त के साथ संगत है, जिससे रक्ताधान के लिए विशेष चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।

चिकित्सा विज्ञान में महत्व

  • रक्त आधान में सुधार : नए रक्त समूहों की खोज दुर्लभ रक्त प्रकार वाले मरीजों के लिए बेहतर चिकित्सा देखभाल सुनिश्चित करती है।
  • जेनेटिक अनुसंधान : डी.एन.ए. सीक्वेंसिंग की प्रगति ने रक्त समूहों की पहचान में क्रांति ला दी है जिससे चिकित्सा अनुसंधान में नई संभावनाएँ खुली हैं।
  • वैश्विक प्रभाव : यह खोज अन्य व्यक्तियों में इस रक्त समूह की खोज के लिए प्रेरित कर सकती है, जिससे रक्त बैंकों की क्षमता बढ़ेगी।

बॉम्बे रक्त समूह

अत्यधिक दुर्लभ ‘बॉम्बे रक्त समूह’ वाले मरीज का भारत में पहला किडनी प्रत्यारोपण मुंबई के जसलोक अस्पताल में किया गया। यह प्रत्यारोपण ‘क्रॉस-ब्लड ट्रांसप्लांट’ (Cross-blood Transplant) के माध्यम से किया गया।  

 बॉम्बे रक्त समूह (Bombay Blood Group) के बारे में 

  • इस दुर्लभ रक्त समूह को पहली बार वर्ष 1952 में मुंबई में वाई.एम. भेंडे ने खोजा था।
    • इसे ‘hh’ रक्त समूह भी कहा जाता है।
  • सामान्य रक्त समूहों के विपरीत इस रक्त समूह के लोगों में H एंटीजन की कमी होती है, जिससे वे O-नेगेटिव सहित सभी मानक रक्त प्रकारों के साथ असंगत हो जाते हैं और उनमें रक्त आधान व अंग प्रत्यारोपण दोनों प्रक्रिया जटिल हो जाती हैं।
    • इस रक्त समूह के लोग किसी अन्य बॉम्बे रक्त समूह दाता से ही रक्त प्राप्त कर सकते हैं।
  • बॉम्बे रक्त समूह वाले व्यक्तियों में H एंटीजन उत्पन्न करने के लिए जिम्मेदार जीन अनुपस्थित होते हैं, इसलिए इसमें न तो A और न ही B एंटीजन का निर्माण हो सकता है।
    • H एंटीजन ABO रक्त समूह प्रणाली में A एवं B एंटीजन के लिए आधार संरचना है।
  • यह भारत में लगभग 10,000 व्यक्तियों में से 1 में और वैश्विक स्तर पर दस लाख में से केवल 1 में व्यक्ति में पाया जाता है

इसे भी जानिए!

  • क्रॉस-ब्लड ट्रांसप्लांट : यह उस प्रत्यारोपण को संदर्भित करता है जो तब किया जाता है जब दाताओं एवं प्राप्तकर्ताओं का रक्त प्रकार अलग-अलग होता है। 
  • पैरा बॉम्बे रक्त समूह (Para Bombay Blood Group) : यह बॉम्बे ब्लड ग्रुप का एक दुर्लभतम  प्रकार (Rarest Phenotype) है जो सामान्यतः जनसंख्या के लगभग 0.0004% (लगभग चार प्रति दस लाख) में पाया जाता है।
  • गोल्डन रक्त समूह : यह दुनिया का सबसे दुर्लभ रक्त प्रकार है, जिसके वैश्विक स्तर पर अब तक 50 से भी कम मामले रिपोर्ट किए गए हैं। इसमें सभी प्रकार के एंटीजन अनुपस्थित होते हैं।  
  • इसे आरएच-शून्य (Rh-null) रक्त समूह भी कहा जाता है।
  • रक्त की दुर्लभता व इसके अद्वितीय गुणों के कारण यह वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए अत्यंत मूल्यवान है जिसके कारण इसे ‘गोल्डन ब्लड’ नाम दिया गया है।
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