| (प्रारंभिक परीक्षा: महत्त्वपूर्ण सम्मलेन एवं आयोजन) |
संदर्भ
नई दिल्ली के रोहिणी में प्रधानमंत्री मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन 2025 को संबोधित किया। यह सम्मेलन महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती और आर्य समाज के 150 वर्षों की सेवा के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया।
अंतर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन के बारे में
- परिचय : यह अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन “ज्ञान ज्योति महोत्सव” का हिस्सा है, जिसमें भारत और विदेशों में स्थित आर्य समाज की शाखाओं के प्रतिनिधि शामिल हुए।
- उद्देश्य : आर्य समाज की 150 वर्षों की समाजसेवा का उत्सव मनाना और महर्षि दयानंद सरस्वती के सुधारवादी विचारों को वैश्विक स्तर पर पुनः प्रसारित करना।
- इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी किया, जो आर्य समाज की गौरवशाली विरासत का प्रतीक है।
इतिहास और पृष्ठभूमि
- आर्य समाज की स्थापना वर्ष 1875 में स्वामी दयानंद सरस्वती ने मुंबई में की थी।
- यह उस समय की सामाजिक, धार्मिक और बौद्धिक जड़ता के विरुद्ध एक वैचारिक आंदोलन था।
- औपनिवेशिक शासन के दौरान जब भारतीय समाज अंधविश्वास, पाखंड और जातिगत भेदभाव में जकड़ा हुआ था, तब आर्य समाज ने “वेदों की ओर लौटो” का संदेश देकर आत्मगौरव और तार्किक सोच को पुनः जीवित किया।
- 150 वर्षों में आर्य समाज ने शिक्षा, स्त्री-शिक्षा, स्वदेशी आंदोलन और सामाजिक सुधार के अनेक क्षेत्रों में गहरा योगदान दिया है।
सम्मलेन के मुख्य बिंदु
- प्रधानमंत्री ने कहा कि आर्य समाज की 150वीं वर्षगांठ केवल किसी समुदाय का नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र की वैदिक पहचान से जुड़ा उत्सव है।
- उन्होंने कहा कि आर्य समाज ने सदैव भारत की अस्मिता, भारतीयता और आत्मगौरव को संरक्षित रखा।
- स्वामी दयानंद के विचारों ने लाला लाजपत राय, रामप्रसाद बिस्मिल जैसे क्रांतिकारियों को प्रेरित किया।
- प्रधानमंत्री ने “कृण्वन्तो विश्वमार्यम्” के वैदिक श्लोक का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत की प्रगति वैश्विक कल्याण में योगदान दे रही है।
- उन्होंने आर्य समाज को ज्ञान भारतम मिशन, प्राकृतिक खेती, और जल संरक्षण अभियानों में सक्रिय भागीदारी का आग्रह किया।
स्वामी दयानंद सरस्वती और उनका दर्शन

स्वामी दयानंद सरस्वती (1824–1883) एक महान समाज-सुधारक, वेदज्ञ और वैदिक पुनर्जागरण के अग्रदूत थे। उनकी विचारधारा के प्रमुख बिंदु –
- वेदों की ओर लौटो : उन्होंने अंधविश्वास और मूर्तिपूजा का विरोध करते हुए सत्य ज्ञान को वेदों में निहित बताया।
- सामाजिक समानता और स्त्री शिक्षा : उन्होंने स्त्रियों के अधिकारों और शिक्षा पर बल दिया।
- जातिगत भेदभाव का विरोध : उन्होंने जन्म आधारित भेदभाव को अस्वीकार किया और कर्म आधारित सम्मान की बात की।
- राष्ट्रवाद और आत्मनिर्भरता : स्वामी जी ने विदेशी प्रभावों से मुक्त होकर स्वदेशी मूल्यों पर आधारित राष्ट्रनिर्माण का संदेश दिया।
- सादा जीवन, श्रेष्ठ विचार : वे सादगी, अनुशासन और परोपकार के पक्षधर थे।