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विवाह की न्यूनतम आयु संबंधी मुद्दे 

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, जनसांख्यिकी व सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1 व 2 : महिलाओं की भूमिका, जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र व विधि)

संदर्भ

हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महिलाओं के विवाह की न्यूनतम कानूनी आयु 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष करने का निर्णय लिया है। ध्यातव्य है कि पहले से ही पुरुषों के विवाह की न्यूनतम कानूनी आयु 21 वर्ष है। नए नियम को लागू करने के लिये पूर्व के अधिनियमों में संशोधन की आवश्यकता होगी।

विवाह के लिये न्यूनतम आयु की आवश्यकता क्यों?

  • भिन्न-भिन्न धर्मों में विवाह से संबंधित अलग-अलग मानक हैं, जो प्राय: रुढ़िवादिता प्रदर्शित करते हैं। इनमें एकरूपता की आवश्यकता है। 
  • बाल विवाह को अनिवार्य रूप से गैर-कानूनी घोषित करने और नाबालिगों के साथ दुर्व्यवहार को रोकने के लिये विवाह की न्यूनतम आयु का निर्धारण किया गया है।

भारत में विवाह प्रक्रिया

  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अंतर्गत महिलाओं के लिये विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और पुरुषों के लिये 21 वर्ष है, जबकि इस्लाम धर्म के पर्सनल लॉ में युवावस्था प्राप्त कर चुके नाबालिग के विवाह को वैध माना जाता है।
  • विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 में भी महिलाओं और पुरुषों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु क्रमशः 18 और 21 वर्ष निर्धारित है।

परिवर्तन की आवश्यकता क्यों?

  • सरकार ने लिंग-तटस्थता सहित अन्य कारणों को ध्यान में रखते हुए महिलाओं की विवाह की न्यूनतम आयु में वृद्धि का फैसला किया है।
  • कम आयु में विवाह और शीघ्र गर्भधारण से माताओं व उनके बच्चों के पोषण स्तर के साथ-साथ शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। साथ ही, इससे ‘शिशु मृत्यु दर’ और ‘मातृ मृत्यु दर’ पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।
  • शीघ्र विवाह होने से महिलाओं का सशक्तिकरण भी प्रभावित होता है क्योंकि शिक्षा तक महिलाओं की पहुँच कम हो जाती है और वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं हो पाती हैं।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, वर्ष 2019-20 में बाल विवाह की दर 23% है। सरकार इसे कम करने के लिये प्रयासरत है।

आलोचकों के तर्क

  • महिला एवं बाल अधिकार कार्यकर्ताओं के साथ-साथ जनसंख्या एवं परिवार नियोजन विशेषज्ञ महिलाओं की विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाने के पक्ष में नहीं हैं क्योंकि इससे अवैध विवाह में वृद्धि हो सकती है। 
  • महिलाओं के लिये विवाह की कानूनी आयु सीमा 18 वर्ष रखे जाने के बावजूद भी भारत में बाल विवाह जारी है।
  • वर्तमान में महिलाओं के विवाह की आयु में वृद्धि का कारण कानून नहीं बल्कि शिक्षा और रोज़गार के अवसरों में बढ़ती भागीदारी है।
  • नए कानून का नकारात्मक प्रभाव अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति जैसे हाशिए पर रहने वाले समुदायों पर अधिक पड़ेगा क्योंकि शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ेपन के कारण उनके द्वारा इसके उल्लंघन की संभावना अधिक होगी।

जया जेटली समिति

  • जून 2020 में महिला और बाल विकास मंत्रालय ने जया जेटली के नेतृत्व में एक टास्क फोर्स का गठन किया।
  • इसने शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर, कुल प्रजनन दर, जन्म के समय लिंगानुपात व बाल लिंगानुपात सहित महिलाओं के पोषण एवं स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों और विवाह की आयु के बीच संबंधों का मूल्यांकन किया। 
  • इस समिति ने विवाह की आयु और महिलाओं व बाल स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव के साथ-साथ महिलाओं की शिक्षा तक पहुँच बढ़ाने की व्यवहार्यता का भी अवलोकन किया।

समिति की सिफारिशें

विभिन्न विश्वविद्यालयों, धर्मों तथा ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों से प्राप्त फीडबैक के आधार पर समिति की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित है :

  • महिलाओं की विवाह की आयु को बढ़ाकर 21 वर्ष करना। 
  • बालिकाओं के लिये स्कूलों और कॉलेजों तक पहुँच बढ़ाना। 
  • कौशल और व्यावसायिक प्रशिक्षण के साथ-साथ स्कूलों में यौन शिक्षा देना। 
  • विवाह की आयु के संबंध में बड़े पैमाने पर जागरूकता फैलाना।
  • नए कानून की सामाजिक स्वीकृति को प्रोत्साहित करना।
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