New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 28th Sept, 11:30 AM Hindi Diwas Offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 15th Sept. 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 25th Sept., 11:00 AM Hindi Diwas Offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 15th Sept. 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 28th Sept, 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 25th Sept., 11:00 AM

भारत में अल्पसंख्यक : एक विस्तृत परिदृश्य

संदर्भ

  • हाल ही में, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया है कि राज्य सरकारें राज्य के भीतर एक धार्मिक या भाषाई समुदाय को ‘अल्पसंख्यक समुदाय’ के रूप में भी घोषित कर सकती हैं।
  • अल्पसंख्यकों की पहचान के लिये उपयुक्त दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार लक्षद्वीप (2.5%), मिजोरम (2.75%), नगालैंड (8.75%), अरुणाचल प्रदेश (29%), मणिपुर (31.39%), और पंजाब (38.40%), मेघालय (11.53%) और जम्मू-कश्मीर (28.44%) में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, किंतु फिर भी अल्पसंख्यक लाभ से वंचित हैं, जो वर्तमान में इन स्थानों पर संबंधित बहुसंख्यक समुदायों द्वारा प्राप्त किये जा रहे हैं।

भारतीय कानूनों के तहत अल्पसंख्यक की परिभाषा

  • भारतीय संविधान के कुछ लेखों में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द का उल्लेख मिलता है, किंतु कहीं भी विशिष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है।
  • वर्तमान में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एन.सी.एम.) अधिनियम, 1992 की धारा 2(c) के तहत केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित समुदायों को अल्पसंख्यक माना जाता है।

संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 29, जो ‘अल्पसंख्यकों के हितों के संरक्षण’ से संबंधित है, के अनुसार भारत के क्षेत्र या उसके किसी हिस्से में रहने वाले नागरिकों के किसी भी वर्ग को अपनी एक अलग भाषा, लिपि या संस्कृति रखने का अधिकार होगा। और किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमें से किसी के आधार पर राज्य द्वारा संचालित या राज्य निधि से सहायता प्राप्त किसी भी शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश से वंचित नहीं किया जाएगा।
  • अनुच्छेद 30, ‘अल्पसंख्यकों का शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार’ से संबंधित है। विदित है कि बाल पाटिल मामले (2005) में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत ‘अल्पसंख्यक’ शब्द के अंतर्गत भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों को शामिल किया है।
  • अनुच्छेद 350A के अनुसार, राष्ट्रपति द्वारा भाषाई अल्पसंख्यकों के लिये एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति की जाएगी। विशेष अधिकारी का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान के तहत भाषाई अल्पसंख्यकों के लिये प्रदान किये गए सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जाँच करें और राष्ट्रपति को उन मामलों पर रिपोर्ट करें जो राष्ट्रपति निर्देशित कर सकते हैं। यह रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखी जाएगी और बाद में संबंधित राज्य सरकारों को भेजी जाएगी।
  • संविधान के तहत, संसद और राज्य विधानसभाओं दोनों को अल्पसंख्यकों और उनके हितों की सुरक्षा प्रदान करने के लिये कानून बनाने की समवर्ती शक्तियाँ हैं।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 

गौरतलब है कि 23 अक्टूबर, 1993 को एन.सी.एम. अधिनियम की धारा 2(c) के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्र ने पाँच समूहों- मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी को ‘अल्पसंख्यक’ समुदायों के रूप में अधिसूचित किया। वर्ष 2014 में जैन समुदाय को भी इस सूची में जोड़ा गया।

विद्यमान चुनौतियाँ

  • चूँकि भारत में राज्यों का पुनर्गठन भाषाई आधार पर हुआ है, इसलिये अल्पसंख्यकों के निर्धारण के उद्देश्य से इकाई राज्य होनी चाहिये न कि संपूर्ण देश। इस प्रकार, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों पर राज्यवार विचार करने की आवश्यकता है।
  • राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान का राजनीतिक प्रभाव होगा, विशेषकर उन राज्यों में जहाँ केंद्र को जम्मू-कश्मीर, पंजाब और कई उत्तर-पूर्वी राज्यों में हिंदुओं और अल्पसंख्यक दर्जे वाले छोटे समूहों के बारे में निर्णय करना होगा, ऐसे राज्य जहाँ वर्तमान में संबंधित बहुसंख्यक समुदायों के पास अल्पसंख्यक अधिकार हैं। 

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य 

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2020 में भारत सरकार द्वारा ‘अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिये प्रधानमंत्री का नवीन 15 सूत्रीय कार्यक्रम’ की शुरूआत की गई थी। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विभिन्न सरकारी योजनाओं के लाभों तक अल्पसंख्यक समुदायों के वंचित वर्गों की उचित पहुँच हो। साथ ही, इसके माध्यम से अल्पसंख्यकों के लिये बुनियादी सुविधाओं को उपलब्ध कराते हुए उन्हें शैक्षिक व रोज़गार के दृष्टिकोण से कौशलयुक्त करना है।

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR
X