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नेपेंथेस एटनबरोइ  (Nepenthes Attenboroughi)

प्रारम्भिक परीक्षा – नेपेंथेस एटनबरोइ , वीनस फ्लाइ ट्रैप  तथा सनड्यू ,कीटभक्षी पौधों
मुख्य परीक्षा - सामान्य अध्ययन, पेपर- 3

संदर्भ

  • यह दुनिया का सबसे बड़ा मांसाहारी या कीटभक्षी पौधा है, जिसे अब गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • इस पौधे की खोज वर्ष 2009 में फिलीपींस के पलावन में स्थित माउंट विक्टोरिया पर किया गया था।

Nepenthes-attenboroughi

प्रमुख बिंदु 

  • ये पौधे उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
  • ऐसे पौधे हरे या अन्य किसी रंग के हो सकते हैं। घड़े (घट) के समान दिखाई देने के कारण इन पौधों को घटपर्णी (Pitcher) कहा जाता है। 
  • इसकी घड़े (घट) के समान दिखाई देने वाली संरचना उसकी पत्ती का रूपांतरित भाग है। 
  • पत्ते का शीर्ष भाग घड़े का ढक्कन होता है। घड़े के अंदर अनेक रोम होते हैं, जो नीचे की ओर ढलके रहते हैं अर्थात् अधोमुखी होते हैं। 
  • इस पौधे के घड़े में एक विषम तरल मिश्रण पदार्थ होता है, जो मच्छरों के लार्वा जैसे कीड़ों को पनपने देता है।
  • जब कोई कीट घड़े में प्रवेश करता है, तो यह उसके रोमों के बीच फँस जाता है। उसके पश्चात् घड़े में उपस्थित पाचक रस द्वारा कीटों का पाचन हो जाता है। 
  • ये अपने विशाल आकार के कारण छछूंदर या चूहे जैसे छोटे आकार के स्तनधारियों को भी खा सकते हैं।
  • कीटों का भक्षण करने वाले ऐसे पादप कीटभक्षी पादप  कहलाते हैं। 
  • वीनस फ्लाइ ट्रैप  तथा सनड्यू कीटभक्षी  पादपों के दो अन्य उदाहरण हैं। 
  • यह पौधा उत्पादक एवं उपभोक्ता दोनों प्रकार की श्रेणी में आता है।
  • ये पौधे शिकार की उपस्थिति के बिना भी जीवित रह सकते हैं। 
  • प्राकृतिक और मानवजनित प्रभावों जैसे- अवैध शिकार, जलवायु परिवर्तन और निवास स्थान के विनाश के कारण,यह पौधा विलुप्त होने के कगार पर है।
  • इस मांसाहारी पौधे का मूल्यांकन 2007 में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN)  की संकटग्रस्त प्रजातियों की लाल सूची के लिए किया गया था। लेकिन इसके विलुप्त होने के प्रभाव को देखते हुए इसे वर्ष  2012 में दुनिया की 100 सबसे खतरे (Most Dangerous) वाली प्रजातियों की सूची में शामिल कर लिया गया।

भारत में पाए जाने वाले प्रमुख कीटभक्षी पौधे

  • भारत में कीटभक्षी पौधों के तीन वर्ग पाए जाते हैं - ड्रोसेरेसी (Droseraceae)  की 3 प्रजाति; नेपेन्थेसी (Nepanthaceae) की 1 प्रजाति; लेंटिबुलरियासी (Lentibulariaceae) की 36 प्रजाति।

ड्रोसेरेसी (Droseraceae) वर्ग :

  • ड्रोसेरेसी वर्ग के पौधे नम/आर्द्र अनुपजाऊ या दलदली क्षेत्र, तालाब, झील आदि क्षेत्र में पाये जाते हैं। 
  • इस वर्ग के अंतर्गत ड्रोसेरा एवं एल्ड्रोवांडा (Drosera And Aldrovanda) पौधे आते हैं।

एल्ड्रोवांडा (Aldrovanda):

  • यह बिना जड़ वाला जलीय पौधा है जो सुंदरवन डेल्टा के लवणीय जल में पाया जाता है। 
  • भारत में इनकी एक ही प्रजाति पायी जाती है।
  • इन पौधों के पत्तों के मध्य भाग पर सूक्ष्म प्रकार के लम्बे-लम्बे लटें पाए जाते हैं।ये कीटों का शिकार इन्ही लटों में फंसाकर करते हैं। 

ड्रोसेरा (Drosera):

  • यह कांटेदार पत्तों वाला पौधा है ये कीटों को खाने के लिए अपने कांटेदार पत्तों में चिपचिपा पदार्थ छोड़ते हैं।
  • ये चिपचिपा पदार्थ सूर्य की रोशनी में ओस की तरह चमकते हैं, इसलिए इन पौधों को Sundew पौधा भी कहा जाता है।

घटपर्णी (Pitcher) पौधे नेपेंथेसी (Nepenthaceae) वर्ग:

  • इस वर्ग के अंतर्गत घटपर्णी (Pitcher) पौधे आते हैं। इन पौधे के पत्तों के साथ एक मटकी जैसी संरचना होती है। 
  • यह भारत के उत्तर पूर्वी भाग मेघालय के गारो, खासी एवं जैयन्तिया पहाड़ों आदि में पाए जाते हैं।
  • ये पौधे कीटों का भक्षण करने के लिए अपने घटपर्णी (Pitcher) में शहद के समान  चिपचिपा पदार्थ प्रोटोलाइटिक नामक एंजाइम स्रावित करते हैं।  
  • यह एंजाइम कीड़ों के पोषक तत्वों को सोख कर उन्हें पचाने में मदद करता है।

यूट्रीकुलेरिया और पिंगुइकुला (Utricularia And Pinguicula) लेंटिबुलरियासी (Lentibulariaceae):

  • इस वर्ग के अंतर्गत यूट्रीकुलेरिया और पिंगुइकुला (Utricularia And Pinguicula) पौधे आते हैं।
  • ये पौधे हिमालय के अल्पाइन भागों जैसे- कश्मीर से सिक्किम के मध्य दलदली क्षेत्रों में पाए जाते हैं। 

कीटभक्षी पौधों से लाभ  

  • ड्रोसेरा पौधे : इससे निकलने वाले एक विशेष प्रकार के दूध का प्रयोग मुहं के छालों को ठीक करने तथा कपड़ों को डाई करने में किया जाता है।
  • नेपेंथेस (Nepenthes): इस पौधे का प्रयोग हैजा के इलाज में तथा इससे निकलने वाले द्रव्य का उपयोग पेशाब संबंध बीमारियों को ठीक करने एवं आँखों के ड्रॉप बनाने के रूप में किया जाता है।
  • यूट्रीकुलेरिया (Utricularia): इस पौधे का प्रयोग खांसी तथा घाव को ठीक करने में किया जाता है।

कीटभक्षी पौधों के विलुप्त होने का कारण :

  • इनकी चिकित्सकीय विशेषताओं के कारण इनका अत्यधिक मात्रा में प्रयोग।
  • शहरी और गांव के विकास के कारण आवासों का विखंडन/विनाश।
  • मिट्टी में प्रयुक्त हानिकारक खाद्य तथा डिटर्जेंट, पेस्टिसाइड आदि के कारण जल एवं मिटटी के प्रदूषण की अत्यधिक मात्रा बढ़ने के कारण भी इनका पतन हो रहा है। 
  • प्रदूषित पानी के कारण जंगली घास बहुत उगते हैं, जो कीटाहारी पौधों को ख़त्म कर देते हैं।

प्रारंभिक परीक्षा प्रश्न : निम्नलिखित कीटभक्षी पौधों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

  1. यूट्रीकुलेरिया (Utricularia) पौधे का प्रयोग खांसी तथा घाव को ठीक करने में किया जाता है।
  2. नेपेंथेस (Nepenthes) पौधे का द्रव्य पेशाब संबंधी बीमारियों को ठीक करने एवं आँखों के ड्रॉप बनाने के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  3. ड्रोसेरा पौधों से निकलने वाले दूध का प्रयोग मुहं के छालों को ठीक करने तथा कपड़ों को डाई करने में किया जाता है।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से सही हैं ?

(a) केवल एक

(b) केवल दो

(c) सभी तीन

(d) कोई भी नहीं

उत्तर : (c)

मुख्य परीक्षा प्रश्न :कीटभक्षी पौधों से क्या तात्पर्य है ? इसके महत्त्व की व्याख्या करें?

स्रोत : THE HINDU

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