(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक मुद्दे) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष, नागरिक चार्टर, पारदर्शिता एवं जवाबदेही व संस्थागत तथा अन्य उपाय) |
संदर्भ
सर्वोच्च न्यायालय में लंबित एक मामले के दौरान केंद्र सरकार ने ऑनलाइन कंटेंट में ‘अश्लीलता’ (Obscenity) की परिभाषा तय करने के लिए नए दिशा-निर्देश प्रस्तावित किए हैं। ये दिशा-निर्देश समस्त डिजिटल सामग्री (सोशल मीडिया, OTT प्लेटफॉर्म और डिजिटल न्यूज़) पर लागू होंगे। यह कदम तब आया है जब न्यायालय ने सरकार से स्पष्ट नियम बनाने को कहा है ताकि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बढ़ते विवादित, अश्लील व सामाजिक रूप से आपत्तिजनक कंटेंट को नियंत्रित किया जा सके।
क्या हैं नए प्रस्तावित दिशा-निर्देश
- सरकार ने सूचना एवं प्रौद्योगिकी (IT) नियम, 2021 में संशोधन का प्रस्ताव रखा है जिसके तहत डिजिटल अश्लीलता की स्पष्ट परिभाषा जोड़ी जाएगी।
- यह संशोधन सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT Act, 2000) की धारा 67; केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 और IPC (अब BNS) के आधार पर होगा।
- यह डिजिटल कंटेंट के लिए ‘अश्लीलता आचार संहिता’ (Obscenity Code of Ethics) तैयार करेगा।
- OTT प्लेटफॉर्म को सिनेमैटोग्राफ एक्ट, 1952 के मानकों के अनुरूप सामग्री प्रस्तुत करनी होगी।
- दिशा-निर्देशों को सर्वोच्च न्यायालय और सार्वजनिक परामर्श के बाद ही आगे बढ़ाया जाएगा।
मुख्य बिंदु
- सरकार ने सोशल मीडिया और OTT पर प्रतिबंधित कंटेंट को लेकर विशिष्ट व विस्तृत नियम प्रस्तावित किए।
- सूचना प्रौद्योगिकी नियम में पहले से मौजूद प्रतिबंध, जैसे- अश्लीलता, पोर्नोग्राफी, बाल यौन सामग्री, गोपनीयता का उल्लंघन, नस्लीय या लैंगिक भेदभाव को अब अधिक स्पष्ट किया जाएगा।
- प्रस्ताव में 17 प्रकार की आपत्तिजनक सामग्री को वर्जित किया गया है, जैसे-
- अश्लील, अभद्र, भद्दा या उत्तेजक प्रदर्शन
- अपराध को आकर्षक रूप में दिखाना
- जातीय–भाषाई समूहों का अपमानजनक चित्रण
- सामाजिक मानकों के विरुद्ध ‘गलत मानकों’ वाला कंटेंट
- सामग्री की जांच में सर्वोच्च न्यायालय का सामुदायिक मानक परीक्षण (Community Standards Test) लागू किया जाएगा।
- उच्च न्यायालयों द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी नियम के कुछ हिस्से (नियम 9) पर लगाए गए स्टे (रोक) को ध्यान में रखते हुए यह प्रस्ताव तैयार किया गया है।
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सर्वोच्च न्यायालय का सामुदायिक मानक परीक्षण
- यह सर्वोच्च न्यायालय का एक ऐसा परीक्षण है जिसका उपयोग यह तय करने के लिए किया जाता है कि कोई सामग्री अश्लील है या नहीं।
- यह परीक्षण ‘अवीक सरकार बनाम पश्चिम बंगाल राज्य’ जैसे मामलों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपनाया गया था जिसमें हिकलिन परीक्षण (Hicklin Test) को बदल दिया गया था।
- हिकलिन परीक्षण सामग्री को संदर्भ से बाहर देखता था और सबसे संवेदनशील पाठक को उसके प्रभाव के आधार पर निर्णय लेता था।
विशेषताएँ
- समग्र मूल्यांकन: सामग्री का मूल्यांकन उसके संदर्भ और विषय-वस्तु के समग्र रूप में किया जाता है, न कि केवल कुछ आपत्तिजनक अंशों को अलग करके।
- समकालीन मानकों पर आधारित: निर्णय आधुनिक समाज के समकालीन और राष्ट्रीय मानकों के आधार पर लिए जाते हैं।
- संवेदनशील पाठकों को नजरअंदाज करना: परीक्षण सबसे संवेदनशील या अति-संवेदनशील व्यक्तियों के मानकों के बजाय ‘औसत व्यक्ति’ के दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करता है।
- अनुचित लाभ: यह निर्धारित करने के लिए कि क्या किसी सामग्री में सामाजिक लाभ है, जैसे कि कलात्मक, वैज्ञानिक, या शैक्षिक मूल्य, यह भी देखा जाता है।
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नियमों में स्पष्ट परिवर्तन
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67 कहता है कि इलेक्ट्रॉनिक माध्यम पर अश्लील या कामुक सामग्री प्रकाशित या प्रसारित करना दंडनीय है।
- अब सरकार इस प्रावधान को डिजिटल प्लेटफॉर्म के नैतिक संहिता में लागू करना चाहती है।
- प्रस्तावित बदलावों में शामिल हैं:
- अश्लीलता की स्पष्ट परिभाषा:
- ऐसा डिजिटल कंटेंट जो सामाजिक मानकों के अनुसार अभद्र है।
- ऐसा विजुअल/संवाद जो यौन उत्तेजना उत्पन्न करे।
- जातीय–सांस्कृतिक समूहों के अपमान पर रोक
- क्राइम को आकर्षक या रोमांचक रूप में दिखाने पर नियंत्रण
- अश्लील एवं असभ्य सामग्री पर व्यापक रोक; ठीक वैसा ही जैसा केबल टेलीविज़न कार्यक्रम सहिंता (Cable TV Programme Code) में है।
OTT प्लेटफॉर्म के लिए
- उन्हें सिनेमैटोग्राफ एक्ट, 1952 के अनुसार सामग्री ‘सार्वजनिक प्रदर्शनी’ लायक बनानी होगी।
- अर्थात OTT कंटेंट को फिल्मों जैसे सेंसर मानकों के निकट लाया जाएगा।
- नेटफ्लिक्स, अमेज़ॅन प्राइम, हॉटस्टार जैसे प्लेटफॉर्म ‘क्यूरेटेड सामग्री (Curated Content)’ के अंतर्गत आएंगे।
- क्यूरेटेड सामग्री उच्च गुणवत्ता वाली प्रासंगिक सामग्री होती है जो दूसरों (प्लेटफ़ॉर्म से इतर) द्वारा बनाई जाती है जिसे एकत्रित, व्यवस्थित एवं दर्शकों के साथ साझा किया जाता है।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए
- प्लेटफॉर्म्स को ऐसा कंटेंट हटाना होगा जो:
- अश्लील हो
- लैंगिक/जातीय रूप से अपमानजनक हो
- अपराध या हिंसा को प्रोत्साहित करे
- समाज में घृणा फैलाए
- डीपफेक पहचान व लेबलिंग पर अलग से चर्चा चल रही है।
नए नियमों की आवश्यकता
- सोशल मीडिया और OTT पर अश्लीलता, बदज़ुबानी, हिंसक, सामाजिक रूप से उत्तेजक कंटेंट तेजी से बढ़ा।
- कंटेंट मॉडरेशन के नियम अस्पष्ट थे, जिससे भ्रम पैदा होता था।
- समय रैना विवाद जैसे मामलों में सरकार पर सख्त नियम बनाने का दबाव बढ़ा।
- सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं सरकार को संतुलित और व्यावहारिक नियम बनाने के लिए कहा।
- डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की बढ़ती पहुंच के कारण बच्चों और संवेदनशील समूहों पर प्रभाव बढ़ गया है।
आलोचना
- डिजिटल अधिकार समूहों का कहना है कि इससे सरकारी सेंसरशिप बढ़ सकती है।
- व्यापक व अस्पष्ट परिभाषाओं के कारण स्वतंत्र अभिव्यक्ति कमजोर हो सकती है।
- विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रस्ताव ‘केबल टीवी प्रोग्राम कोड’ की नकल है जबकि डिजिटल मीडिया की प्रकृति बिल्कुल अलग है।
- नियम-9 जैसे प्रावधानों को न्यायालय पहले ही अवैध ठहरा सकता है, फिर उनसे मिलता-जुलता प्रस्ताव लाना उचित नहीं माना जा रहा है।
- ‘Everything under the sun’ यानी कोई भी असहमति वाला कंटेंट भी प्रतिबंध के दायरे में आ सकता है।
चुनौतियाँ
- अश्लीलता की परिभाषा समाज एवं संस्कृति के अनुसार अलग-अलग होती है और कानूनी रूप से इसे निश्चित करना मुश्किल है।
- OTT कंटेंट पर सिनेमैटोग्राफ एक्ट लागू करने से रचनात्मक स्वतंत्रता सीमित हो सकती है।
- सोशल मीडिया पर करोड़ों पोस्ट की निगरानी करना व्यावहारिक रूप से कठिन है।
- न्यायालयों में सूचना एवं प्रौद्योगिकी (IT) नियम पहले से विवादित हैं और नए नियम कानूनी अड़चनों का सामना करेंगे।
- ‘सामुदायिक मानक परीक्षण’ का प्रयोग कंटेंट मॉडरेशन में समय एवं जटिलता में वृद्धि करेगा।
आगे की राह
- स्पष्ट परिभाषाओं और पारदर्शी सार्वजनिक परामर्श की आवश्यकता है।
- सरकार को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक संवेदनशीलता के बीच संतुलन बनाना होगा।
- डिजिटल प्लेटफॉर्म को स्व-नियमन में सुधार करने चाहिए, ताकि सख्त सेंसरशिप से बचा जा सके।
- AI आधारित मॉडरेशन टूल्स का उपयोग सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए।
- नियमों को लागू करते समय बच्चों की सुरक्षा, उपयोगकर्ता अधिकार और अभिव्यक्ति तीनों को बराबर महत्त्व दिया जाना चाहिए।