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माइक्रोप्लास्टिक पर नया शोध

मुख्य परीक्षा

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ

एक शोध के अनुसार, भारत में फेस वॉश एवं शॉवर जेल जैसे व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों (PCP) में काफी मात्रा में हानिकारक माइक्रोप्लास्टिक होते हैं। ये माइक्रोप्लास्टिक मानव मस्तिष्क, रक्त, फेफड़े, बृहदान्त्र, प्लेसेंटा, अंडकोष और मल में भी पाए गए हैं। इससे संबंधित अध्ययन इमर्जिंग कंटामिनेंट्स जर्नल में प्रकाशित किया गया है। 

माइक्रोप्लास्टिक के बारे में

  • माइक्रोप्लास्टिक, माइक्रोबीड्स के रूप में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण होते हैं जिनका आकार 5 मिलीमीटर से भी कम होता है (मुख्य रूप से 1-1,000 माइक्रोमीटर की रेंज में)। 
  • कॉस्मेटिक्स एवं अन्य उत्पादों में उपयोग के लिए प्लास्टिक को सूक्ष्म कणों के रूप में परिवर्तित किया जाता है। इस प्रक्रिया को प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक निर्माण कहा जाता है।
  • इसके अतिरिक्त माइक्रोप्लास्टिक बड़े प्लास्टिक सामग्री से भी प्राप्त होते हैं जो समय के साथ विखंडित हो जाते हैं। इस प्रक्रिया को द्वितीयक माइक्रोप्लास्टिक निर्माण कहा जाता है। 
  • चूँकि ये अति सूक्ष्म कण होते हैं, इसलिए आसानी से वायु, जल एवं मृदा में मिल सकते हैं, जहाँ वे वन्यजीवों को नुकसान पहुँचा सकते हैं और संभावित रूप से मानव स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकते हैं।

नए शोध के निष्कर्ष

  • इस शोध में भारतीय बाजार में उपलब्ध और वर्ष 2022 में निर्मित चार श्रेणियों- फेस वॉश, फेस स्क्रब, शॉवर जेल एवं बॉडी स्क्रब में पी.सी.पी. के नमूनों का विश्लेषण किया गया है।
  • इनकी वैधता की जांच के लिए अध्ययन में विशेष रूप से ‘पर्यावरण-अनुकूल’, ‘प्राकृतिक’ एवं ‘जैविक’ के रूप में अंकित किए गए उत्पादों का उपयोग किया गया।
  • इसमें से लगभग 23.33% उत्पादों में सेल्यूलोज माइक्रोबीड्स थे, जिनकी बायोडिग्रेडेबिलिटी भी स्पष्ट नहीं थी। 
    • इनमें से अधिकांश माइक्रोबीड्स सफेद रंग के थे, जिनको आसानी से पहचानने में समस्या आती है।
  • पी.सी.पी. में माइक्रोबीड्स का उपयोग व्यापक रूप से शल्कस्खलन (Exfoliation) के साथ-साथ सक्रिय तत्वों (Active Ingredients) की डिलीवरी और बेहतर सौंदर्य तथा अन्य के लिए किया जाता है।
    • पी.सी.पी. में प्रयुक्त माइक्रोबीड्स प्राय: पॉलीइथाइलीन, पॉलीप्रोपाइलीन एवं पॉलिएस्टर जैसी सामग्रियों से बने होते हैं। पी.सी.पी. से उत्सर्जित होने वाले माइक्रोप्लास्टिक में पॉलीथीन (PE) प्रमुख बहुलक है।
    • शल्कस्खलन या एक्सफोलिएशन त्वचा की सतह से मृत चर्म कोशिकाओं एवं गंदगी को हटाने की प्रक्रिया है। 
  • विश्लेषण में शामिल किए गए प्रत्येक नमूने में कुल उत्पाद का औसतन 1.34% माइक्रोबीड्स था और ज़्यादातर माइक्रोबीड्स अनियमित आकार के थे। 
    • अनियमित आकार के माइक्रोबीड्स अधिक खतरनाक होते है क्योंकि यह अन्य पर्यावरणीय प्रदूषकों के अवशोषण के लिए अधिक सतही क्षेत्र प्रदान करते हैं। 
  • शोध के कुछ नमूनों में बायोप्लास्टिक पॉलीकैप्रोलैक्टोन भी पाया गया है। 
    • पॉलीकैप्रोलैक्टोन का उपयोग दवाइयों की पैकेजिंग और एंटी-एजिंग व जीवाणुरोधी घटकों के रूप में किया जाता है, लेकिन यह जलीय जीवों में भ्रूण के विकास में देरी और अन्य विकृतियों का कारण बनता है।
  • यह रिपोर्ट भारत के पी.सी.पी. बाजार में ऑर्गेनिक, प्राकृतिक और पर्यावरण अनुकूल जैसे लेबल के मामले में ग्रीनवाशिंग का भी संकेत देती हैं।

माइक्रोबीड्स  

  • माइक्रोबीड्स प्लास्टिक से बने छोटे, गोलाकार कण होते हैं, जिनका व्यास आमतौर पर 5 मिमी. से कम होता है। इनका इस्तेमाल अक्सर पर्सनल केयर उत्पादों जैसे एक्सफ़ोलीएटिंग स्क्रब, टूथपेस्ट और शॉवर जैल में उनके घर्षण गुणों के कारण किया जाता है। 
  • अपने छोटे आकार के कारण, माइक्रोबीड्स आसानी से अपशिष्ट जल उपचार प्रणालियों से गुज़र सकते हैं तथा प्राकृतिक जल निकायों में प्रवेश कर प्लास्टिक प्रदूषण बढ़ाते हैं और समुद्री जीवन को नुकसान पहुँचा सकते हैं।

ग्रीनवाशिंग

  • यह एक भ्रामक प्रथा है, जिसमें कोई कंपनी या संगठन पर्यावरण के प्रति जागरूक उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए खुद को पर्यावरण के अनुकूल होने का झूठा प्रचार करता है।
  • अनिवार्य पर्यावरणीय सुधार करने के बजाय, संस्थाएँ संधारणीय दिखने के लिए भ्रामक दावों, मार्केटिंग या ब्रांडिंग का उपयोग करती हैं। 
  • जिसमें उनके पर्यावरण प्रयासों के बारे में अतिरंजित या अस्पष्ट बयान शामिल हो सकते हैं, जो मामूली सकारात्मक कार्यों को उजागर करते हैं जबकि अधिक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय प्रभावों को अनदेखा करते हैं।
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