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पश्चिमी घाट में तितली की नई प्रजाति की खोज: ज़ोग्राफेटस मैथ्यू

चर्चा में क्यों ?

  • भारतीय वैज्ञानिकों ने केरल के पश्चिमी घाट में तितली की एक नई प्रजाति ज़ोग्राफेटस मैथ्यू (Zographetus mathewi) की खोज की है। 


प्रमुख बिंदु :-

  • यह खोज दर्शाती है कि यह क्षेत्र जैव विविधता से अत्यंत समृद्ध है और अभी भी कई रहस्यों को समेटे हुए है। 
  • यह तितली पश्चिमी घाट के निचले जंगलों में पाई जाती है और यहीं की स्थानिक (endemic) प्रजाति है।

वैज्ञानिक खोज और अध्ययन

  • इस तितली की खोज त्रावणकोर नेचर हिस्ट्री सोसाइटी, भारतीय प्राणी सर्वेक्षण, और उष्णकटिबंधीय अनुसंधान, पारिस्थितिकी एवं संरक्षण संस्थान के वैज्ञानिकों की संयुक्त टीम ने की है।
  • शुरुआत में इसे ज़ोग्राफेटस ओगियागिया नामक एक ज्ञात प्रजाति समझा गया, लेकिन इसके पंखों के पैटर्न और जननांगों की सूक्ष्म संरचना के अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ कि यह एक नई प्रजाति है। 
  • यह शोध ‘एंटोमोन’ (Entomon) नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ।

नामकरण और वर्गीकरण

  • इस प्रजाति का नाम प्रख्यात भारतीय कीटविज्ञानी डॉ. जॉर्ज मैथ्यू के सम्मान में रखा गया है। 
  • इसका सामान्य नाम "सह्याद्री स्पॉटेड फ्लिटर" रखा गया है — ‘सह्याद्री’ शब्द पश्चिमी घाट का पारंपरिक नाम है।यह ज़ोग्राफेटस सत्व समूह की सदस्य है और भारत में इस वंश की पाँचवीं प्रजाति है।

रूप, रंग और आवास

  • इसके पिछले पंख पीले-गेरू रंग के होते हैं और अग्र पंखों पर रोएँदार बनावट होती है।
  • नर तितलियों में एक विशिष्ट सूजी हुई अग्र शिरा पाई जाती है, जो इसे अन्य प्रजातियों से अलग बनाती है।
  • यह तितली 600 मीटर से नीचे की ऊँचाई वाले निचले सदाबहार जंगलों में पाई जाती है।
  • इसके लार्वा एक फलीदार बेल - अगानोप थाइर्सिफ्लोरा पर भोजन करते हैं।
  • वयस्क तितलियाँ दुर्लभ हैं, लेकिन वैज्ञानिकों ने विभिन्न क्षेत्रों जैसे कल्लर, शेंदुर्नी, एडामलायर, और नीलाम्बुर में इनके कई लार्वा और प्यूपा पाए हैं।

पर्यावरणीय महत्व और संरक्षण की आवश्यकता

  • ज़ोग्राफेटस मैथ्यू की खोज पश्चिमी घाट की अभी भी खोजी न गई जैव विविधता की ओर संकेत करती है। 
  • यह स्पष्ट करता है कि इस जैव विविधता हॉटस्पॉट क्षेत्र में अब भी कई ऐसी प्रजातियाँ हैं जो वैज्ञानिक दृष्टि से अज्ञात हैं।
  • यह खोज निम्न-ऊँचाई वाले वनों के सक्रिय संरक्षण, क्षेत्रीय अध्ययन, और स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा के महत्व को रेखांकित करती है।

पश्चिमी घाट:-

  • पश्चिमी घाट भारत की एक प्रमुख पर्वतमाला है, जिसे सह्याद्रि पर्वत (Sahyadri Hills) भी कहा जाता है। 
  • यह पर्वत श्रृंखला भारत के पश्चिमी तट के समानांतर उत्तर से दक्षिण तक फैली हुई है और विश्व के प्रमुख जैव विविधता हॉटस्पॉट्स (Biodiversity Hotspots) में से एक है।

भौगोलिक स्थिति (Geographical Extent)

  • प्रारंभ: तापी नदी के दक्षिण से (गुजरात-महाराष्ट्र सीमा)
  • अंत : कन्याकुमारी (तमिलनाडु)
  • राज्य: महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु
  • लंबाई: लगभग 1600 किमी
  • औसत ऊँचाई: 900–1600 मीटर
  • सबसे ऊँचा शिखर: अनैमुदी (2695 मीटर), केरल

जैव विविधता और पारिस्थितिकी (Biodiversity & Ecology)

  • पश्चिमी घाट में 7000+ पौधों की प्रजातियाँ, जिनमें से करीब 2000 स्थानिक (endemic) हैं।
  • यह क्षेत्र भारत के कुल जैव विविधता का लगभग 27% हिस्सा समेटे हुए है।
  • यहाँ पाए जाने वाले प्रमुख जीव:
    • जानवर: शेर, हाथी, गौर (भारतीय बाइसन), नीलगिरी तहर, मलाबार गिलहरी
    • पक्षी: ग्रेट हॉर्नबिल, मालाबार ट्रोगन
    • उभयचर: बड़ी संख्या में स्थानिक मेंढक प्रजातियाँ
  • युनेस्को ने इसे 2012 में विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site) घोषित किया।

पर्यावरणीय महत्व (Environmental Significance)

भूमिका

विवरण

जल स्रोत

यह भारत की कई प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल है: गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, तापी आदि।

मॉनसून नियंत्रण

दक्षिण-पश्चिम मानसून की बारिश को नियंत्रित करने में सहायक।

मिट्टी संरक्षण

ढलानों पर वनस्पति मृदा अपरदन (soil erosion) को रोकती है।

कार्बन अवशोषण

घने जंगल वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड सोखते हैं।

प्रमुख संरक्षित क्षेत्र (Important Protected Areas)

नाम

राज्य

साइलेंट वैली राष्ट्रीय उद्यान

केरल

पेरियार टाइगर रिजर्व

केरल

भद्र वन्यजीव अभयारण्य

कर्नाटक

कुद्रेमुख राष्ट्रीय उद्यान

कर्नाटक

मोल्लेम राष्ट्रीय उद्यान

गोवा

महाबलेश्वर संरक्षित क्षेत्र

महाराष्ट्र

इरविकुलम राष्ट्रीय उद्यान

केरल

खतरे और चुनौतियाँ (Threats & Challenges)

खतरा

प्रभाव

अंधाधुंध वनों की कटाई

जैव विविधता का ह्रास

बाँध और खनन

प्राकृतिक आवास का विनाश

शहरीकरण और सड़क निर्माण

वनों का टुकड़ों में बँट जाना

कृषि विस्तार और प्लांटेशन

मूल वनस्पति को नुकसान

जलवायु परिवर्तन

स्थानिक प्रजातियों पर प्रभाव

संरक्षण के प्रयास (Conservation Efforts)

  1. गाडगिल समिति (WGEEP) – 2011
    • पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान की
    • विकास गतिविधियों पर नियंत्रण की सिफारिश की
  2. कस्तूरीरंगन समिति – 2013
    • अपेक्षाकृत व्यवहारिक सिफारिशें दीं
    • 37% क्षेत्र को इको-सेंसिटिव ज़ोन घोषित करने का सुझाव
  3. UNESCO World Heritage Status – 2012
    • जैव विविधता संरक्षण को अंतर्राष्ट्रीय पहचान 

प्रश्न :-निम्न में से कौन-सा क्षेत्र ज़ोग्राफेटस मैथ्यू तितली के प्राकृतिक आवास के रूप में वर्णित है?

(a) ऊँचे हिमालयी क्षेत्र

(b) मरुस्थलीय क्षेत्र

(c) पश्चिमी घाट के निचले सदाबहार जंगल

(d) पूर्वी घाट की पर्वतमाला

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