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भारत में अनौपचारिक ऋण की बढ़ती प्रवृत्ति

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय)

संदर्भ 

केंद्र सरकार के वित्तीय समावेशन कार्यक्रम के तहत लगभग 96% आबादी के पास बैंक खाते होने के बावज़ूद भारत के गरीब एवं निम्न-आय वाले परिवारों के एक बड़े हिस्से को ऋण के लिए अनौपचारिक व महंगे स्रोतों का सहारा लेना पड़ रहा है।

अनौपचारिक ऋण की स्थिति 

  • सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) से प्राप्त आँकड़ों के विश्लेषण के अनुसार वर्ष 2018-19 से 2022-23 के बीच समाज के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के उन उधारकर्ताओं की संख्या में 4.2% की कमी आई है जिन्होंने बैंकों एवं गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) जैसे औपचारिक माध्यमों से ऋण लिया था।
  • इसी दौरान इस वर्ग के लोगों में साहूकार, चिट फंड, दोस्तों या दुकानदारों सहित अनौपचारिक या गैर-संस्थागत ऋण स्रोतों से ऋण लेने वाले परिवारों की संख्या में 5.8% की वृद्धि देखी गई।
  • यह प्रवृत्ति निम्न-आय वर्ग (2-5 लाख प्रति वर्ष) के उधारकर्ताओं में भी देखी गई जहाँ इस श्रेणी में संस्थागत ऋण लेने वाले उधारकर्ताओं की संख्या में 10.4% की वृद्धि देखी गई, वहीं गैर-संस्थागत ऋण लेने वाले उधारकर्ताओं की संख्या में और भी तेज़ (12.6%) वृद्धि हुई।
  • मध्यम आय वर्ग (5-10 लाख) में भी गैर-संस्थागत उधारकर्ताओं की संख्या में वृद्धि, संस्थागत उधारकर्ताओं की संख्या की वृद्धि से अधिक रही।

अनौपचारिक ऋण में वृद्धि के लिए उत्तरदायी कारक 

  • निम्न-आय वर्ग के पास ऋण लेने के लिए पर्याप्त क्रेडिट स्कोर का अभाव 
  • कामकाज की अनौपचारिक प्रकृति : महामारी के बाद रिवर्स माइग्रेशन और कृषि व दिहाड़ी मज़दूर ऐसे तरीक़े से कमा रहे हैं जो बैंकों को जोखिम भरे लगते हैं। ऐसे में संस्थागत ऋणदाताओं के निम्न आय वर्ग के ग्राहकों के प्रति जोखिम से बचने की प्रवृत्ति होती है। 
  • दस्तावेज़ों की कमी : कई गरीब उधारकर्ताओं के पास पहचान पत्र, वेतन पर्ची या क्रेडिट फ़ाइलें नहीं होती हैं जिससे औपचारिक संस्थानों तक उनकी पहुँच बाधित होती है।
  • सुविधा एवं विश्वास : अनौपचारिक ऋण प्राय: परिचित दुकानदारों या पड़ोसियों से तेज़, सरल एवं व्यक्तिगत विश्वास पर आधारित होता है, भले ही यह महँगा हो।

आगे की राह 

  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों तथा सूक्ष्म वित्त ऋण संस्थान को मज़बूत बनाना : लक्षित सूक्ष्म वित्त हाशिए पर स्थित समुदायों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है। इसके लिए नियामक एवं वित्तीय सहायता महत्वपूर्ण है।
  • ऋण प्रक्रियाओं को सरल बनाना : वैकल्पिक डाटा, के.वाई.सी. मानदंडों में ढील एवं डिजिटल जाँच (जैसे- लेनदेन डाटा के माध्यम से क्रेडिट जाँच) का उपयोग करके पहुँच आसान हो सकती है।
  • वित्तीय साक्षरता एवं आउटरीच : समुदाय-आधारित बातचीत, सरकारी योजनाओं के बारे में जागरूकता और औपचारिक ऋण विकल्प उधारकर्ता की प्राथमिकताएँ बदल सकते हैं।
  • स्वयं सहायता समूहों का समर्थन : स्वयं सहायता समूह और संयुक्त देयता समूह (विशेष रूप से महिलाओं में) कम ब्याज दर पर सहकर्मी-समर्थित ऋण प्रदान करने में प्रभावी साबित हुए हैं।
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