(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास) |
संदर्भ
15 जुलाई, 2025 को Axiom-4 मिशन के तहत ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) से वापसी के बाद भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (IIST) के शोधकर्ता ISS पर भेजे गए कृषि बीजों का पोस्ट-फ्लाइट (उड़ान पश्चात्) अध्ययन करेंगे।
‘क्रॉप सीड्स ऑन ISS’ परियोजना के बारे में
- क्या है : यह एक वैज्ञानिक प्रयोग है जिसका उद्देश्य अंतरिक्ष के सूक्ष्म गुरुत्व, कॉस्मिक विकिरण एवं अत्यधिक तापमान जैसे वातावरण में फसल बीजों के अंकुरण, विकास व उपज पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करना है।
- डिज़ाइन : इस परियोजना को IIST के स्पेस बायोलॉजी लैब द्वारा डिज़ाइन किया गया था।
- शामिल संगठन : इसे यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA), इसरो के मानव अंतरिक्ष उड़ान केंद्र (HSFC) और केरल कृषि विश्वविद्यालय (KAU) के बीच बहु-स्तरीय समझौता ज्ञापनों (MoUs) के माध्यम से लागू किया गया।
प्रमुख बिंदु
- इस प्रयोग में सूखे बीजों को ISS पर भेजा गया, जहाँ इन्हें माइक्रोग्रैविटी की स्थिति में रखा गया।
- पृथ्वी पर लौटने के बाद इन बीजों को कई पीढ़ियों तक उगाया जाएगा ताकि उनके आनुवंशिक, सूक्ष्मजैविक एवं पोषण प्रोफाइल में बदलावों का विश्लेषण किया जा सके।
- तुलनात्मक अध्ययन तीन नमूनों पर किए जाएंगे: अंतरिक्ष से लौटे बीज, पृथ्वी पर नियंत्रित परिस्थितियों में रखे गए बीज और प्रयोगशाला में विकिरण के अधीन रखे गए बीज।
- इस परियोजना का लक्ष्य अंतरिक्ष में खाद्य उत्पादन के लिए उपयुक्त फसलों की पहचान करना और पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन के अनुकूल फसलों को विकसित करना है।
शामिल फसलों की किस्में
इस परियोजना के लिए KAU द्वारा विकसित छह उच्च-उपज वाली स्थानीय फसल किस्मों को चुना गया, जो भारतीय आहार एवं कृषि के लिए महत्वपूर्ण हैं:
- ज्योति एवं उमा (धान की किस्में) : ये दोनों उच्च-उपज वाली चावल की किस्में हैं जो दक्षिण भारत में व्यापक रूप से उगाई जाती हैं।
- कनकमणि (कुलथी/चना) : यह पौष्टिक दाल सूखा-सहिष्णु एवं प्रोटीन से भरपूर है।
- वेल्लायनी विजय (टमाटर) : केरल में विकसित टमाटर की यह लोकप्रिय किस्म अपनी गुणवत्ता एवं उपज के लिए जानी जाती है।
- तिलकथारा (तिल) : तेल उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण तिल की यह किस्म पोषक तत्वों से भरपूर है।
- सूर्या (बैंगन) : एक स्वादिष्ट एवं उच्च-उपज वाली बैंगन की किस्म भारतीय व्यंजनों में लोकप्रिय है।
ये स्व-परागण वाली फसलें हैं, जो अंतरिक्ष में नियंत्रित प्रयोगों के लिए उपयुक्त हैं क्योंकि इनके आनुवंशिक गुण स्थिर रहते हैं।
महत्व
- अंतरिक्ष में खाद्य उत्पादन : यह प्रयोग अंतरिक्ष में स्थायी खाद्य उत्पादन की संभावनाओं को खोलता है जो गगनयान, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन और भविष्य के चंद्र या मंगल मिशनों जैसे दीर्घकालिक अंतरिक्ष मिशनों के लिए महत्वपूर्ण है।
- जलवायु परिवर्तन के लिए अनुकूलन : अंतरिक्ष में कॉस्मिक विकिरण और माइक्रोग्रैविटी के प्रभावों से उत्पन्न आनुवंशिक बदलाव पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन के लिए अधिक लचीली एवं उच्च-उपज वाली फसलों के विकास में मदद कर सकते हैं। यह वैश्विक खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देगा, विशेष रूप से वर्ष 2050 तक 10 अरब की अनुमानित विश्व जनसंख्या के संदर्भ में।
- पारिस्थितिकीय लाभ : अंतरिक्ष में उगने वाली फसलें कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करती हैं और ऑक्सीजन उत्पादन करती हैं जिससे अंतरिक्ष यान में हवा की गुणवत्ता एवं आर्द्रता नियंत्रण में सुधार होता है।
- वैज्ञानिक प्रगति : यह परियोजना अंतरिक्ष जीव विज्ञान एवं उत्परिवर्तन प्रजनन में भारत की विशेषज्ञता को प्रदर्शित करती है जो FAO व IAEA जैसे संगठनों द्वारा पहले किए गए प्रयोगों के अनुरूप है।
- शैक्षिक प्रेरणा : इस परियोजना से STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग एवं गणित) क्षेत्रों में छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए प्रेरणा उत्पन्न होती है, जो भारत की अंतरिक्ष अनुसंधान क्षमता को अधिक मजबूत करती है।
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ISS पर भेजे गए चावल की दो किस्मों, कुल्थी, टमाटर, तिल और बैंगन के बीज
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