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गैर-संचारी रोग

मुख्य परीक्षा

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे)

संदर्भ

  • हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में वर्ष 1995 से 2018 तक राज्यों में रुग्णता संक्रमण (Morbidity Transition) की स्थिति का आकलन किया गया है। इस अध्ययन में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) के आंकड़ों पर आधारित भारत में स्व-रिपोर्ट की गई रुग्णता की जांच की गई है। 
  • प्रत्येक एन.एस.एस.ओ. सर्वेक्षण में विभिन्न प्रकार की बीमारियों एवं विकलांगताओं को एकत्र किया गया था और स्व-रिपोर्ट की गई रुग्णता को चार व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया था- संक्रामक एवं संचारी रोग, गैर-संचारी रोग, विकलांगता और चोट व अन्य बीमारियाँ।
  • यह अध्ययन PLOS ONE जर्नल में प्रकाशित किया गया है। 

गैर-संचारी रोग (NCD)

  • गैर-संचारी रोग (NCD) को दीर्घकालिक रोग भी कहा जाता है। ये लंबे समय प्रभावित करने वाला रोग हैं। ये रोग आनुवंशिक, शारीरिक, पर्यावरणीय एवं व्यवहारगत कारकों के संयोजन का परिणाम होते हैं।
  • एन.सी.डी. में मुख्यत: निम्नांकित रोग शामिल हैं- हृदय संबंधी रोग (जैसे-दिल का दौरा एवं स्ट्रोक), कैंसर, दीर्घकालिक श्वसन रोग (जैसे- क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज एवं अस्थमा) और मधुमेह।

गैर-संचारी रोग संबंधी सर्वेक्षण के निष्कर्ष 

  • निरंतर वृद्धि की प्रवृति : रुग्णता (Morbidity) की व्यापकता में लगातार वृद्धि हुई है। इसकी दर वर्ष 1995 में प्रति हजार जनसंख्या पर 56 से बढ़कर 2014 में प्रति हजार जनसंख्या पर 106 हो गई। हालांकि, वर्ष 2018 में इसमें काफी गिरावट आई है। 
  • संक्रमण दर में वृद्धि : वर्ष 1995 की तुलना में रिपोर्ट की गई रुग्णता जोखिम संक्रमण क्रमिक दशकों में काफी बढ़ गया है। यह वर्ष 2004 में 1.81 गुना, 2014 में 2.16 गुना और 2018 में 1.44 गुना हो गया है। 
  • बड़ी समस्या के रूप में गैर-संचारी रोग : वर्ष 1995 से 2018 तक संपूर्ण भारत में रुग्णता के रुझानों में गैर-संचारी रोग एक प्रमुख कारक रहा है। इसकी व्यापकता वर्ष 2018 में प्रति हजार जनसंख्या पर 30 के साथ वर्ष 1995 की तुलना में (प्रति हजार जनसंख्या पर 8.6) से तीन गुना से भी अधिक बढ़ गई है।
    • केरल में इसकी दर सर्वाधिक रही है। इसके बाद आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल एवं पंजाब का स्थान रहा है।
  • आयु एवं लिंग का प्रभाव : वृद्धजनों (60 वर्ष और उससे अधिक) में संक्रामक, गैर-संचारी रोग, विकलांगता एवं चोट के सर्वाधिक मामले दर्ज किए गए। गैर-संचारी रोगों का बोझ पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर अधिक रहा है। 1995 और 2014 के बीच गैर-संचारी रोगों का बोझ पुरुषों और महिलाओं दोनों में तीन गुना बढ़ गया है।
  • राज्य आधारित अंतर : पूर्वोत्तर राज्यों में गैर-संचारी रोगों का प्रसार न्यूनतम है। उदाहरण के लिए, मेघालय में वर्ष 1995 में प्रति हजार व्यक्तियों पर केवल 1.7 और वर्ष 2018 में प्रति हजार व्यक्तियों पर 0.2 मामले सामने आए। इसके बाद नागालैंड, असम, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश एवं बिहार का स्थान है।
  • सूक्ष्म स्वास्थ्य परिदृश्य : ये भिन्नताएँ प्रत्येक राज्य की विशिष्ट एवं भिन्न-भिन्न जनसांख्यिकीय, सामाजिक एवं आर्थिक निर्धारकों के कारण हैं, जो पूरे देश में स्वास्थ्य चुनौतियों का सूक्ष्म परिदृश्य प्रदान करते हैं।

जोखिम के मुख्य कारक 

  • जीवनशैली आधारित कारक : तंबाकू का सेवन, शारीरिक निष्क्रियता, अस्वास्थ्यकर आहार और शराब का उपयोग जैसे परिवर्तनीय व्यवहार एन.सी.डी. के जोखिम को बढ़ाते हैं।
    • तंबाकू के कारण प्रतिवर्ष 8 मिलियन से अधिक मौतें होती हैं जिसमें अन्य व्यक्ति से होने वाले धुएं के संपर्क में आने के प्रभाव भी शामिल हैं।
    • प्रतिवर्ष 1.8 मिलियन मौतें अत्यधिक नमक/सोडियम सेवन के कारण होती हैं।
    • शराब के सेवन के कारण होने वाली 3 मिलियन वार्षिक मौतों में से आधे से अधिक मौतें कैंसर सहित गैर-संचारी रोगों से होती हैं ।
    • प्रतिवर्ष 830,000 मौतें अपर्याप्त शारीरिक गतिविधि के कारण होती है।
  • पर्यावरणीय कारक : कई पर्यावरणीय जोखिम कारक भी एन.सी.डी. के लिए उत्तरदायी हैं। वायु प्रदूषण इनमें सबसे प्रमुख है। यह वैश्विक स्तर पर 6.7 मिलियन मौतों के लिए जिम्मेदार है, जिनमें से लगभग 5.7 मिलियन एन.सी.डी. के कारण हैं : 
    • इनमें स्ट्रोक, इस्केमिक हृदय रोग, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज एवं फेफड़ों का कैंसर शामिल है।

गैर-संचारी रोग (NCD) की रोकथाम के लिए सुझाव  

  • जोखिम कारकों पर विचार करना : एन.सी.डी. को नियंत्रित करने का एक महत्वपूर्ण तरीका इन बीमारियों से संबद्ध जोखिम कारकों को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना है। 
    • सरकारों एवं अन्य हितधारकों के लिए सामान्य परिवर्तनीय जोखिम कारकों को कम करने के लिए निम्न लागत वाले समाधान मौजूद हैं। नीति एवं प्राथमिकताओं को निर्देशित करने के लिए एन.सी.डी. का विकास, प्रवृत्ति तथा जोखिम की निगरानी महत्वपूर्ण है।
  • समग्र हस्तक्षेप की आवश्यकता : व्यक्ति एवं समाज पर गैर-संचारी रोगों के प्रभाव को कम करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें स्वास्थ्य, वित्त, परिवहन, शिक्षा, कृषि, योजना एवं अन्य सहित सभी क्षेत्रों को गैर-संचारी रोगों से जुड़े जोखिमों को कम करने तथा उन्हें रोकने व नियंत्रित करने के लिए हस्तक्षेप को बढ़ावा देने के लिए सहयोग आवश्यक है।
  • बेहतर एन.सी.डी. प्रबंधन : एन.सी.डी. प्रबंधन में इन बीमारियों का पता लगाना, जांच करना और उनका उपचार करना तथा ज़रूरतमंद लोगों को उपशामक देखभाल तक पहुँच प्रदान करना शामिल है। 
    • प्रारंभिक स्तर पर पहचान और समय पर उपचार के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल दृष्टिकोण के माध्यम से उच्च प्रभाव वाले आवश्यक एन.सी.डी. हस्तक्षेप प्रदान किए जा सकते हैं। 
  • आर्थिक निवेश : एन.सी.डी. के बेहतर प्रबंधन में निवेश करना महत्वपूर्ण है। प्रारंभिक हस्तक्षेप के लिए उत्कृष्ट आर्थिक निवेश आवश्यक है। यदि रोगियों को प्रारंभिक स्तर पर उपचार प्रदान किए जाते हैं, तो वे अधिक महंगे उपचार की आवश्यकता को कम कर सकते हैं। 
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