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ओबीसी और उपश्रेणियाँ: लंबे समय से एक गर्म मुद्दा क्यों

प्रारंभिक परीक्षा- अनु. 15(4), अनु. 16(4), अनु. 29, ओबीसी आयोग
मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन, पेपर-2

संदर्भ-

  • आंध्र प्रदेश के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री ने 18 अक्टूबर,2023 को कहा कि राज्य 15, नवंबर,2023 के आस-पास पिछड़ा वर्ग की जनगणना शुरू करेगा। सी. श्रीनिवास वेणुगोपाला कृष्णा ने कहा कि राज्य में 139 पिछड़े वर्ग के समुदाय अपनी संख्यात्मक ताकत से अनजान हैं और जनगणना से प्राप्त डेटा सरकार को उन्हें बेहतर सेवा देने में मदद करेगा।

मुख्य बिंदु-

  • अक्टूबर में बिहार में जाति सर्वेक्षण के नतीजों के प्रकाशन से यह संभावना बढ़ गई थी कि अन्य राज्य भी इसी तरह की घोषणा करेंगे, क्योंकि देश चुनाव के एक नए चरण में प्रवेश कर रहा है। 
  • आरक्षण के लाभों के वितरण में समानता सुनिश्चित करने के लिए जातियों की गणना साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का उप-वर्गीकरण लंबे समय से गर्म मुद्दा रहा है।

अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) कौन हैं-

  • 'ओबीसी' शब्द पिछड़े/हाशिये पर मौजूद समुदायों और जातियों का पता करने के लिए दिया गया था, जो अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल नहीं थे। 
  • यह माना जाता है कि भारत में सामाजिक पिछड़ापन परंपरागत रूप से जाति व्यवस्था का प्रत्यक्ष परिणाम रहा है, और अन्य प्रकार के पिछड़ेपन इस प्रारंभिक बाधा से उत्पन्न हुए हैं।
  • ओबीसी के लिए सकारात्मक प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 15(4) तथा अनुच्छेद 29 के खंड (2) में किया गया है
  • अनु. 15(4) के अनुसार, राज्य को इसकी अनुमति है कि वह सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान कर सकता है।
  • अनु. 29 के खंड (2) के अनुसार, राज्य द्वारा वित्त पोषित किसी भी शिक्षण संस्थान में धर्म, जाति, आदि के आधार पर प्रवेश के संबंध में कोई भेदभाव नहीं होगा ।
  • अनुच्छेद 16(4) राज्य को "नागरिकों के किसी भी पिछड़े वर्ग के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिए कोई भी प्रावधान करने की अनुमति देता है, जिसका राज्य की राय में राज्य की सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है"।

ओबीसी में 'पिछड़े'-

  • ओबीसी की पहचान आम तौर पर उनके व्यवसाय के आधार पर की गई है; जैसे- अपनी जमीन पर खेती, किराए पर खेती करना, कृषि श्रम, सब्जियों, फलों तथा फूलों की खेती और बिक्री, मवेशी पालन, कपड़े धोना, बढ़ईगीरी, लोहार, तिलहन, मिट्टी का काम, पत्थर काटना आदि।
  • ओबीसी में कई जातियां हाशिए के विभिन्न स्तरों पर हैं। पहली नज़र में, ओबीसी के भीतर दो व्यापक श्रेणियां सामने आती हैं-
    1.  वे जिनके पास ज़मीन है (जैसे कि बिहार और उत्तर प्रदेश में यादव और कुर्मी)
    2.  वे जिनके पास ज़मीन नहीं है।
  • अब "ओबीसी में पिछड़ों" के लिए आरक्षण की मांग ने जोर पकड़ लिया है क्योंकि यह भावना बढ़ गई है कि मुट्ठी भर उच्च ओबीसी ने मंडल आयोग की सिफारिशों के कार्यान्वयन के साथ आए 27% आरक्षण का अधिकांश लाभ प्राप्त किया है। 

ईबीसी: बिहार का मामला-

  • बिहार जाति सर्वेक्षण ने 27% आबादी को "पिछड़ा" (पिछड़ा) और 36% को "अत्यंत पिछड़ा" (अत्यंत पिछड़ा वर्ग या ईबीसी) के रूप में पहचाना है। 
  • 1951 की शुरुआत में बिहार सरकार ने 109 जातियों की एक सूची तैयार की थी, जिनमें से 79 को शेष 30 की तुलना में "अधिक पिछड़ा" माना गया था। 
  • 1964 में पटना उच्च न्यायालय ने दोनों सूचियों को असंवैधानिक करार दिया था।
  • जून,1970 में बिहार सरकार ने मुंगेरी लाल आयोग नियुक्त किया, जिसने फरवरी,1976 में अपनी रिपोर्ट दी।
  • इस आयोग की रिपोर्ट में 128 "पिछड़े" समुदायों में से 94 की पहचान "अत्यंत पिछड़े" के रूप में की गई। 
  • मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की जनता पार्टी सरकार ने मुंगेरी लाल आयोग की सिफ़ारिशों को लागू किया।
  • तथाकथित कर्पूरी ठाकुर फॉर्मूला ने 26% आरक्षण प्रदान किया, जिसमें से ओबीसी को 12% हिस्सा मिला, ओबीसी के बीच आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को 8%, महिलाओं को 3% और "उच्च जातियों" के गरीबों को 3% मिला।
  • बिहार में ओबीसी आरक्षण वर्तमान में उन समूहों में विभाजित है जिन्हें पिछड़ा वर्ग या बीसी-I, बीसी-II और ओबीसी महिला कहा जाता है। 
  • यह तब बदल सकता है जब जाति सर्वेक्षण के निष्कर्षों पर कार्रवाई की मांग की जाएगी।

ओबीसी आयोग-

1. पहला ओबीसी आयोग-

    •  काका कालेलकर की अध्यक्षता में पैनल का गठन 29 जनवरी, 1953 को जवाहरलाल नेहरू की सरकार द्वारा किया गया था और 30 मार्च, 1955 को इसने अपनी रिपोर्ट सौंपी। 
    • सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान करने के लिए आयोग ने निम्नलिखित मानदंड अपनाए-

a. निम्न हिंदू समाज के पारंपरिक जाति पदानुक्रम में सामाजिक स्थिति
b. जाति/समुदाय के प्रमुख वर्ग के बीच सामान्य शैक्षिक उन्नति का अभाव
c. सरकारी सेवा में अपर्याप्त या कोई प्रतिनिधित्व नहीं
d. व्यापार, वाणिज्य और उद्योग में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व

    • पहले ओबीसी आयोग ने देश में 2,399 पिछड़ी जातियों या समुदायों की एक सूची तैयार की, उनमें से 837 को "अत्यंत पिछड़ा" के रूप में वर्गीकृत किया। 
    • आयोग ने 1961 की जनगणना में जातियों की गणना करने, सरकारी नौकरियों के विभिन्न स्तरों पर 25-40% आरक्षण और तकनीकी तथा व्यावसायिक संस्थानों में प्रवेश के लिए 70% आरक्षण प्रदान करने की भी सिफारिश की।
    • रिपोर्ट पर संसद में कभी चर्चा नहीं हुई और इसे कभी लागू नहीं किया गया, क्योंकि सरकार ने फैसला किया कि "केंद्र सरकार द्वारा तैयार की गई किसी भी अखिल भारतीय सूची की कोई व्यावहारिक उपयोगिता नहीं होगी"।

2. दूसरा ओबीसी आयोग-

    • बी. पी. मंडल की अध्यक्षता में इस आयोग का गठन 1979 में मोरारजी देसाई की जनता सरकार द्वारा किया गया था, लेकिन इसके रिपोर्ट के कार्यान्वयन की घोषणा 1990 में वी. पी. सिंह की सरकार द्वारा की गई थी।
    • मंडल आयोग ने 3,743 जातियों और समुदायों को ओबीसी के रूप में पहचाना और उनकी आबादी 52% होने का अनुमान लगाया।
    • इस आयोग ने सरकारी नौकरियों और सरकार द्वारा संचालित सभी वैज्ञानिक, तकनीकी और व्यावसायिक संस्थानों में प्रवेश में 27% आरक्षण की सिफारिश की।
    • 27% ओबीसी कोटा के भीतर किसी भी उपश्रेणी को मान्यता नहीं दी गई, भले ही सदस्यों में से एक एल. आर. नाइक ने अपनी असहमति में कहा कि ओबीसी को मध्यवर्ती पिछड़े वर्गों और दलित पिछड़े वर्गों में विभाजित किया जाना चाहिए।
  • 25 सितंबर, 1991 को जारी मंडल सिफारिशों के कार्यान्वयन पर केंद्र के आधिकारिक ज्ञापन में कहा गया था: "एसईबीसी के लिए आरक्षित 27% के भीतर, एसईबीसी के गरीब वर्गों से संबंधित उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जाएगी।"
  • हालाँकि, केंद्र सरकार ने हमेशा सुप्रीम कोर्ट के तय मानदंडों के बावजूद भी संपन्न उम्मीदवारों की "क्रीमी लेयर" को छोड़कर पूरी ओबीसी आबादी को एक ब्लॉक के रूप में मानते हुए कोटा लागू किया है।

राज्यों में उपश्रेणियाँ-

  •  दशकों से राज्य सरकारों ने ओबीसी की विभिन्न श्रेणियों के बीच कोटा लाभ वितरित करने के लिए अपने स्वयं के मानदंड लागू किए हैं।
  •  यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जो केंद्र सरकार द्वारा मंडल सिफारिशों को लागू होने से काफी पहले शुरू हो चुका था।
  •  आंध्र प्रदेश में ओबीसी को पांच उपश्रेणियों में विभाजित किया गया है-

a. आदिवासी जनजातियाँ, विमुक्त जातियाँ, खानाबदोश और अर्ध खानाबदोश जनजातियाँ आदि
b. पेशेवर समूह ;जैसे- टप्पर, बुनकर, बढ़ई, लोहार, सुनार, कमसालिन आदि
c. अनुसूचित जाति और उनकी संतानों का ईसाई धर्म में धर्मांतरण
d. अन्य सभी ओबीसी जातियां और समुदाय जो पिछली तीन श्रेणियों में शामिल नहीं हैं
e. 14 मुस्लिम ओबीसी जातियां, जिनकी पहचान 2007 में की गई थी। 

  • समूह a-e 29% आरक्षण का लाभ साझा करते हैं, जो क्रमशः 7%, 10%, 1%, 7% और 4% में विभाजित हैं। तेलंगाना उसी मॉडल का अनुसरण करता है।
  • कर्नाटक में 207 ओबीसी जातियों को पांच उप-समूहों में विभाजित किया गया है।
  • झारखंड में दो समूह हैं- अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) और पिछड़ा वर्ग।
  • पश्चिम बंगाल की 143 ओबीसी जातियां अधिक पिछड़े और पिछड़े में विभाजित हैं।
  • महाराष्ट्र में 21% ओबीसी आरक्षण विशेष पिछड़ा वर्ग (2%) और अन्य पिछड़ा वर्ग (19%) द्वारा साझा किया जाता है।
  • तमिलनाडु में 50% ओबीसी कोटा पिछड़ा वर्ग (26.5%), पिछड़ा वर्ग मुस्लिम (3.5%), और सर्वाधिक पिछड़ा वर्ग/अधिसूचित समुदाय (20%) के बीच विभाजित है।
  • केरल में 40% ओबीसी आरक्षण को 8 उपसमूहों में विभाजित किया गया है, जिसमें एझावा/थिय्या/बिल्लावा (14%), और मुस्लिम (12%) शामिल हैं।
  • उत्तर प्रदेश में राजनाथ सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने कोटा के भीतर कोटा प्रदान करने के लिए एससी और ओबीसी को उपवर्गीकृत करने के लिए एक ‘सामाजिक न्याय समिति’ का गठन किया। हुकुम सिंह समिति ने यादवों को पिछड़ों में 'अगड़े' घोषित किया और जाटों जैसे अधिक प्रभावशाली समुदायों को उनके नीचे स्थान दिया तथा जाटवों को अनुसूचित जाति में शीर्ष पर रखा। किंतु इस समिति के रिपोर्ट का कार्यान्वयन नहीं हो सका

वर्ष 2014 के बाद-

  • 13 फरवरी,2014 को केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) को केंद्रीय सूची में ओबीसी के उपवर्गीकरण के मामले की जांच करने के लिए कहा। 
  • 2 मार्च 2015 को न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) वी. ईश्वरैया की अध्यक्षता वाली एनसीबीसी ने सुझाव दिया कि ओबीसी को अत्यंत पिछड़ा वर्ग, अधिक पिछड़ा वर्ग और पिछड़ा वर्ग में उपवर्गीकृत किया जाना चाहिए।
  • किंतु आयोग की सिफारिशें लागू नहीं हो पाईं और अक्टूबर,2017 में न्यायमूर्ति जी. रोहिणी की अध्यक्षता में ओबीसी के उपवर्गीकरण के लिए एक नया आयोग गठित किया गया। 
  • रोहिणी आयोग ने 31 जुलाई,2023 को अपनी रिपोर्ट सौंपी, लेकिन इस आयोग की रिपोर्ट को भी सार्वजनिक नहीं किया गया।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न- 

प्रश्न- प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किसकी अध्यक्षता में की गई थी?

(a) काका कालेलकर

(b) वी. पी. मंडल

(c) एल. आर. नाइक

(d) वी. ईश्वरैया

उत्तर- (a)

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- ओबीसी के लिए किए गए संवैधानिक प्रावधान एवं गठित आयोगों की विवेचना करें। 

स्रोत- indian express

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