(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखीय हलचल, चक्रवात आदि जैसी महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ और उनके स्थान- अति महत्त्वपूर्ण भौगोलिक विशेषताएँ) |
संदर्भ
वर्तमान में पृथ्वी की घूर्णन गति में तीव्रता दर्ज़ की जा रही है। सामान्य परिस्थितियों में पृथ्वी ग्रह को एक चक्कर पूरा करने में 24 घंटे या 86,400 सेकेंड लगते हैं। हालाँकि, 9 जुलाई, 2025 को पृथ्वी ने अपना घूर्णन सामान्य से लगभग 1.3 मिलीसेकेंड पहले (तेज़ी से) पूरा किया।
घूर्णन गति में तीव्रता के लिए उत्तरदायी कारक
- चंद्रमा की स्थिति : पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा की कक्षा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जब चंद्रमा पृथ्वी की भूमध्य रेखा से अपनी अधिकतम दूरी पर होता है तो यह पृथ्वी ग्रह के तेज़ी से घूर्णन का कारण बन सकता है।
- ऐसा 9 जुलाई के अतिरिक्त 22 जुलाई एवं 5 अगस्त को होने का अनुमान है जिसके परिणामस्वरूप 24 घंटे का दिन क्रमशः 1.30, 1.38 व 1.51 मिलीसेकेंड छोटे हो जाएँगे।
- वर्ष 2020 से पृथ्वी का घूर्णन तेज हो रहा है। 5 जुलाई, 2024 को सबसे छोटा समयावधि वाला दिन दर्ज किया गया, जब पृथ्वी ने सामान्य (24 घंटे) से 1.66 मिलीसेकेंड अधिक तेजी से घूर्णन किया।
- पृथ्वी का पिघला हुआ कोर : पृथ्वी के कोर में पिघले हुए लोहे की गति ग्रह के चुंबकीय क्षेत्र एवं घूर्णन गति को प्रभावित कर सकती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि कोर की जटिल गति इस त्वरण में योगदान देने वाले कारकों में से एक हो सकती है।
- भूकंप एवं द्रव्यमान परिवर्तन : अत्यधिक तीव्रता वाले भूकंप से पृथ्वी का द्रव्यमान पुनर्व्यवस्थित हो सकता है, जिससे यह थोड़ा तेज़ या धीमा घूर्णन कर सकती है। यह प्रभाव छोटा है किंतु मापनीय है।
- महासागरीय धाराएँ एवं वायुमंडलीय परिवर्तन : शक्तिशाली महासागरीय धाराएँ और वायुमंडलीय दाब में परिवर्तन भी पृथ्वी की परिवर्तनशील घूर्णन गति में योगदान कर सकते हैं। मौसमी बदलाव, जैसे- ग्रीष्मकाल में वृक्षों पर पत्तियों में वृद्धि पृथ्वी के घूर्णन को थोड़ा धीमा कर सकते हैं।
- जलवायु परिवर्तन : ग्लेशियरों एवं ध्रुवीय बर्फ के पिघलने से ग्रह पर द्रव्यमान में बदलाव आ सकता है जिससे पृथ्वी के घूर्णन पर संभावित रूप से प्रभाव पड़ सकता है। हालाँकि, यह आमतौर पर पृथ्वी की गति को बढ़ाने के बजाय धीमा कर देता है।
- पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन : पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में बदलाव भी ग्रह की घूर्णन गति को प्रभावित कर सकते हैं।
प्रभाव
परमाणु समय बनाम सौर समय
- परमाणु घड़ियाँ अति-सटीक मापों का उपयोग करती हैं।
- पृथ्वी का प्राकृतिक दिन पूरी तरह से संरेखित नहीं हो सकता है जिसके परिणामस्वरूप ‘ऋणात्मक लीप सेकेंड’ (समय समायोजित करने के लिए एक सेकेंड घटाना) की आवश्यकता पड़ सकती है।
तकनीकी प्रभाव
जी.पी.एस., उपग्रह नेविगेशन एवं वित्तीय बाजारों जैसी समय-संवेदनशील प्रणालियाँ माइक्रोसेकेंड की त्रुटियों से भी बाधित हो सकती हैं क्योंकि जी.पी.एस. एवं परमाणु घड़ियों जैसी महत्त्वपूर्ण संरचनाएँ अति-सटीक समय पर निर्भर करती हैं।