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रेड-ईयर्ड स्लाइडर टर्टल

रेड इयर्ड स्लाइडर टर्टल कछुए की एक आकर्षक किंतु खतरनाक विदेशी प्रजाति है जो भारतीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचा रही है। 

रेड-ईयर्ड स्लाइडर टर्टल के बारे में

  • वैज्ञानिक नाम : ट्रैकेमिस स्क्रिप्टा एलिगेंस (Trachemys scripta elegans)
  • विशेषताएँ
    • मध्यम आकार का अर्ध-जलीय कछुआ, लंबाई 12.5-29 सेमी तक
    • प्रत्येक आंख के पीछे लाल या नारंगी रंग की विशिष्ट पट्टी इसकी पहचान
    • पीले/हरे रंग की धारियों के साथ जैतूनी से भूरे/काले रंग की ऊपरी खोल (कैरापेस)
    • पीले रंग के निचले खोल (प्लास्ट्रॉन) में काले धब्बे 
    • नर की तुलना में मादाएँ आकार में बड़ी होती हैं तथा नर के पंजे एवं पूंछ लंबी व मोटी होती हैं।

  • प्रजनन:
    • मादाएँ एक बार में 2-23 अंडे देती हैं, साल में 5 बार प्रजनन संभव।
    • जमीन में गड्ढे खोदकर अंडे दिए जाते हैं, जो 55-80 दिनों में विकसित होते हैं।
    • अंडे मादा के शरीर में 5 वर्ष तक रह सकते हैं।
  • निवास स्थान
    • शांत, गर्म पानी वाले क्षेत्र, जैसे- तालाब, झीलें, दलदल, नदियाँ एवं धीमी गति वाली धाराएँ
    • जलीय पौधों की प्रचुरता और धूप सेंकने के लिए चट्टानें
    • खारे पानी एवं प्रदूषित जल को भी सहन कर सकने में सक्षम होने के कारण अत्यधिक अनुकूलनीय
  • पारिस्थितिकी तंत्र में भूमिका
    • सर्वाहारी के रूप में जलीय पौधों, कीड़ों, मछलियों एवं टैडपोल को खाकर पारिस्थितिकी संतुलन में योगदान
    • आक्रामक प्रजाति के रूप में देशी कछुओं को भोजन, धूप सेंकने की जगह और घोंसले के लिए प्रतिस्पर्धा में नुकसान पहुँचाते हैं।
    • कुछ शहरी और मानव-परिवर्तित पारिस्थितिक तंत्रों में देशी कछुओं की जगह पारिस्थितिक कार्य करते हैं।
  • संरक्षण स्थिति
    • IUCN : स्थिर व व्यापक संख्या होने के कारण संकटमुक्त (Least Concern: LC) 
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम : भारत में स्वदेशी कछुओं को पालतू बनाकर रखना वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत प्रतिबंधित है किंतु रेड-ईयर्ड स्लाइडर के लिए विशिष्ट नियम अस्पष्ट हैं।
    • IUCN द्वारा विश्व की 100 सबसे खराब आक्रामक प्रजातियों में शामिल।
  • खतरे
    • पारिस्थितिक : देशी कछुओं (जैसे भारत में 21 कमजोर प्रजातियाँ) को भोजन, घोंसले और धूप सेंकने की जगह के लिए प्रतिस्पर्धा में नुकसान हो रहा है।
      • रैनावायरस एवं साल्मोनेला जैसे रोगों का प्रसार देशी कछुओं व अन्य वन्यजीवों के लिए खतरा है।
    • मानव स्वास्थ्य : साल्मोनेला बैक्टीरिया के वाहक मनुष्यों में संक्रमण का कारण बन सकते हैं।
    • आर्थिक एवं सामाजिक : पालतू व्यापार व गैर-जिम्मेदार तरीके से छोड़ने (मुक्त करने) से पारिस्थितिक एवं आर्थिक नुकसान
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