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धातुमल दुर्लभ मृदा स्थायी चुम्बक

(प्रारंभिक परीक्षा: महत्त्वपूर्ण योजनाएं एवं कार्यक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3: सरकारी नीतियों व विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग व रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव)

संदर्भ

हाल ही में, केंद्र सरकार ने 7,280 करोड़ रुपए के वित्तीय परिव्यय के साथ ‘धातुमल दुर्लभ मृदा स्थायी चुम्बक’ के निर्माण को बढ़ावा देने की योजना को मंजूरी दी है। 

पहल के प्रमुख उद्देश्य 

  • भारत में प्रतिवर्ष 6,000 मीट्रिक टन प्रतिवर्ष (MTPA) की एकीकृत दुर्लभ मृदा चुम्बक (REM) निर्माण क्षमता स्थापित करना 
    • इसमें दुर्लभ मृदा ऑक्साइड से लेकर तैयार चुम्बक तक की पूरी श्रृंखला शामिल होगी।
  • घरेलू स्तर पर एकीकृत विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के माध्यम से इलेक्ट्रिक वाहनों, नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों, इलेक्ट्रॉनिक्स, एयरोस्पेस व रक्षा जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता को सुदृढ़ करना
  • भारत को वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा और उन्नत सामग्री उत्पादक बाजार में एक प्रमुख राष्ट्र के रूप में स्थापित करना
  • वस्तुतः यह पहल आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण, रणनीतिक क्षेत्रों के लिए सशक्त एवं लचीली आपूर्ति श्रृंखलाओं के निर्माण और देश के दीर्घकालिक नेट जीरो 2070 लक्ष्य सहित व्यापक राष्ट्रीय प्राथमिकताओं का प्रभावी रूप से सुदृढ़ करती है। 

क्या है दुर्लभ मृदा स्थायी चुंबक (REPM) 

  • आर.ई.पी.एम. स्थायी चुम्बकों के सबसे शक्तिशाली में से एक हैं और इनका व्यापक रूप से उन तकनीकों में उपयोग किया जाता है जिनमें ठोस एवं उच्च- कार्य क्षमता वाले चुंबकीय घटकों की आवश्यकता होती है। 
  • इनकी उच्च चुंबकीय शक्ति और स्थिरता इन्हें निम्नलिखित के लिए अभिन्न बनाती है- 
    • इलेक्ट्रिक वाहन मोटर 
    • पवन टरबाइन जनरेटर 
    • उपभोक्ता एवं औद्योगिक इलेक्ट्रॉनिक्स 
    • एयरोस्पेस तथा रक्षा प्रणालियां 
    • सटीक सेंसर और एक्चुएटर 
  • छोटे आकार में भी अत्यधिक चुंबकीय प्रदर्शन प्रदान करने वाली आर.ई.पी.एम. की क्षमता उन्हें उन्नत इंजीनियरिंग अनुप्रयोगों के लिए अपरिहार्य बनाती है। 
  • भारत स्वच्छ ऊर्जा, उन्नत गतिशीलता एवं रक्षा जैसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में विनिर्माण क्षमताओं का तीव्र विस्तार कर रहा है। ऐसे में दीर्घकालिक प्रतिस्पर्धात्मकता सुनिश्चित करने और आपूर्ति श्रृंखलाओं की लचीलापन बढ़ाने के लिए उच्च-प्रदर्शन चुम्बकों की विश्वसनीय व स्वदेशी आपूर्ति की व्यवस्था अत्यंत महत्वपूर्ण होती जा रही है। 

भारत की वर्तमान स्थिति और योजना की आवश्यकता 

  • भारत में दुर्लभ-मृदा खनिजों का पर्याप्त संसाधन आधार उपलब्ध है, विशेष रूप से मोनाजाइट के समृद्ध भंडार देश के कई तटीय और अंतर्देशीय क्षेत्रों में विस्तृत रूप से पाए जाते हैं। इन भंडारों में लगभग 13.15 मिलियन टन मोनाजाइट की उपस्थिति का अनुमान है जिसमें से लगभग 7.23 मिलियन टन दुर्लभ-मृदा ऑक्साइड (REO) निहित हैं। 
  • ये संसाधन आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल, झारखंड, गुजरात और महाराष्ट्र में स्थित तटीय रेतीले टीलों, लाल रेतीले टीलों तथा अंतर्देशीय जलोढ़ क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
  • गुजरात और राजस्थान के कठोर चट्टानी क्षेत्रों में लगभग 1.29 मिलियन टन इन-सीटू आर.ई.ओ. संसाधनों की पहचान की गई है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा संचालित व्यापक अन्वेषण पहलों के परिणामस्वरूप 482.6 मिलियन टन दुर्लभ-मृदा अयस्क संसाधनों का अतिरिक्त आकलन किया गया है।
  • भारत में दुर्लभ-मृदा खनिजों का सुदृढ़ संसाधन आधार उपलब्ध होने के बावजूद स्थायी चुंबकों का घरेलू विनिर्माण अभी विकासशील चरण में है जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान मांग का एक बड़ा हिस्सा आयात के माध्यम से पूरा किया जा रहा है। 
  • आधिकारिक व्यापार आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 से 2024-25 के दौरान भारत के स्थायी चुंबक आयात का प्रमुख भाग चीन से प्राप्त हुआ, जिसमें मूल्य के आधार पर आयात निर्भरता 59.6% से 81.3% तथा मात्रा के आधार पर 84.8% से 90.4% के बीच रही है। 
  • इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, नवीकरणीय ऊर्जा के बढ़ते उपयोग, इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण तथा विभिन्न रणनीतिक अनुप्रयोगों में निरंतर वृद्धि के परिणामस्वरूप भारत में आर.ई.पी.एम. की खपत के वर्ष 2030 तक दोगुनी होने की संभावना है। 

योजना के लक्ष्य

  • इसका लक्ष्य उच्च-प्रदर्शन वाले चुंबकीय पदार्थों के लिए एक पूर्णतः एकीकृत उत्पादन पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है जिससे ऑक्साइड फीडस्टॉक से लेकर अंतिम उत्पाद तक 6,000 मीट्रिक टन प्रतिवर्ष की घरेलू विनिर्माण क्षमता का सृजन हो सके। 
  • कुल क्षमता को वैश्विक प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के माध्यम से अधिकतम पांच लाभार्थियों के बीच वितरित किया जाएगा, जिसमें प्रत्येक लाभार्थी 1,200 मीट्रिक टन प्रति वर्ष तक के लिए पात्र होगा, जिससे पर्याप्त पैमाने के साथ-साथ विविधीकरण सुनिश्चित होगा। 
  • इस योजना में प्रोत्साहन संरचना के तहत पांच वर्षों में आर.ई.एम. उत्पादन के लिए बिक्री-आधारित प्रोत्साहन के रूप में 6,450 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। 
  • इस योजना के अंतर्गत उन्नत, एकीकृत आर.ई.एम. विनिर्माण सुविधाओं की स्थापना के लिए 750 करोड़ रुपए की पूंजीगत सब्सिडी प्रदान की जाएगी।  
  • यह योजना सात वर्षों में लागू की जाएगी जिसमें एकीकृत आर.ई.एम. सुविधाओं की स्थापना के लिए दो वर्ष की प्रारंभिक अवधि और उसके बाद आर.ई.एम. बिक्री से जुड़े प्रोत्साहन राशि के वितरण के पांच वर्ष शामिल हैं। 
  • इस सुनियोजित समय-सीमा का उद्देश्य समय पर क्षमता निर्माण में सहायता करना और प्रारंभिक उत्पादन एवं बाजार विकास चरण के दौरान स्थिरता प्रदान करना है। 

सतत विकास एवं अन्य लक्ष्यों में योगदान

  • दुर्लभ-मृदा चुंबक ऊर्जा-कुशल मोटरों, पवन-ऊर्जा प्रणालियों एवं अन्य हरित प्रौद्योगिकियों में व्यापक रूप से उपयोग किए जाते हैं और इसलिए यह पहल देश के व्यापक स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन व उसके नेट जीरो 2070 विजन के साथ निकटता से जुड़ी हुई है। 
  • घरेलू स्तर पर आर.ई.एम. के उत्पादन को गति देना राष्ट्रीय सुरक्षा और आत्मनिर्भरता दोनों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है। चूंकि इन चुम्बक का उपयोग रक्षा व एयरोस्पेस प्रणालियों में होता है, इसलिए देश के भीतर एकीकृत उत्पादन क्षमता विकसित करने से महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों के लिए सुरक्षित पहुंच सुनिश्चित होती है और स्वदेशीकरण के निरंतर प्रयासों को बढ़ावा मिलता है। 

राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन (NCMM) 

  • इसके माध्यम से महत्वपूर्ण खनिजों की मूल्य श्रृंखला को सशक्त करने पर भारत के व्यापक ध्यान देने का भी पूरक है जिसका उद्देश्य उन्नत क्षेत्रों में उपयोग किए जाने वाले दुर्लभ-मृदा तत्वों सहित प्रमुख खनिजों की उपलब्धता व प्रसंस्करण क्षमताओं में सुधार करना है। 
  • जनवरी 2025 में अनुमोदित एन.सी.एम.एम. का उद्देश्य महत्वपूर्ण खनिजों की दीर्घकालिक व टिकाऊ आपूर्ति सुनिश्चित करना है। 
  • यह मिशन खनिज अन्वेषण और खनन से लेकर लाभ पहुंचाने, प्रसंस्करण तथा जीवन-चक्र के अंत में उत्पादों से पुनर्प्राप्ति तक के सभी चरणों को समाहित करते हुए भारत की महत्वपूर्ण खनिज मूल्य श्रृंखलाओं को सुदृढ़ करने पर केंद्रित है।

महत्वपूर्ण खनिजों के लिए खनन सुधार 

खान एवं खनिज (विकास व विनियमन) अधिनियम, 1957 (MMDR अधिनियम) 

यह अधिनियम खानों के विनियमन तथा खनिज संसाधनों के विकास के लिए स्थापित किया गया था।

खान एवं खनिज (विकास व विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2023  

  • यह संशोधन अधिनियम भारत के महत्वपूर्ण खनिज पारिस्थितिकी तंत्र (महत्वपूर्ण व गहरे भंडारों में पाए जाने वाले खनिजों के लिए) को सुदृढ़ बनाने के लिए लाया गया। 
  • इस संशोधन के तहत खनिज अन्वेषण के सभी क्षेत्रों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित किया गया है। 
  • इसके माध्यम से सरकार को खनिज रियायतों की नीलामी का अधिकार प्राप्त हुआ है और एक नई अन्वेषण लाइसेंस प्रणाली की शुरुआत की गई है। 

वैश्विक संदर्भ और भारत के अवसर 

  • भारत ने दुर्लभ मृदा धातुओं और स्थायी चुम्बकों की दीर्घकालिक आपूर्ति सुरक्षा सुनिश्चित करने में नीतिगत सुधारों का कार्यान्वयन और घरेलू उत्पादन एवं विनिर्माण क्षमता निर्माण के प्रयास शामिल हैं। 
  • खनन मंत्रालय ने ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, जाम्बिया, पेरू, जिम्बाब्वे, मोजाम्बिक, मलावी एवं कोटे डी आइवर सहित खनिज समृद्ध देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते किए हैं।
  • भारत खनिज सुरक्षा साझेदारी (MSP), हिंद-प्रशांत आर्थिक ढांचा (IPEF) और महत्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकी पहल (ICET) जैसे बहुपक्षीय मंचों में भी भाग लेता है जो सामूहिक रूप से लचीली महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखलाओं के निर्माण के प्रयासों को मजबूती प्रदान करते हैं। 
  • इन प्रयासों के पूरक के रूप में खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL) अर्जेंटीना जैसे देशों में साझेदारी के माध्यम से लिथियम एवं कोबाल्ट सहित रणनीतिक खनिज संपदाओं की विदेशी खोज व अधिग्रहण में लगी हुई है। 
  • ये उपाय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं रक्षा अनुप्रयोगों के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण खनिजों को सुरक्षित करने की भारत की रणनीति का एक प्रमुख घटक हैं। 

खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड

  • खान मंत्रालय के अधीन नेशनल एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड (NALCO), हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड (HCL) और मिनरल एक्सप्लोरेशन एंड कंसल्टेंसी लिमिटेड (MECL) का एक संयुक्त उद्यम है। 
  • इसकी स्थापना का उद्देश्य विदेशों में खनिज संपदाओं की पहचान, अन्वेषण, अधिग्रहण एवं विकास के माध्यम से भारत की महत्वपूर्ण व रणनीतिक खनिजों की सतत आपूर्ति सुनिश्चित करना है। 
  • इसके माध्यम से उभरती प्रौद्योगिकियों और स्वच्छ ऊर्जा उद्योगों के लिए घरेलू मूल्य श्रृंखला को सुदृढ़ करना तथा ‘मेक इन इंडिया’ पहल को बल प्रदान करना भी प्रमुख लक्ष्यों में शामिल है।

निष्कर्ष 

  • धातुमल दुर्लभ मृदा स्थायी चुम्बक (REPM) के निर्माण को बढ़ावा देने की योजना प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने, प्रौद्योगिकी आधारित निवेश आकर्षित करने और दीर्घकालिक विस्तारशीलता को सुदृढ़ करना लक्षित करती है। 
  • उच्च दक्षता वाली प्रणालियों में इन सामग्रियों की भूमिका को देखते हुए यह पहल भारत के ऊर्जा परिवर्तन लक्ष्यों में भी योगदान देती है। वस्तुतः सरकार की पहल घरेलू क्षमता स्थापित करके और डाउनस्ट्रीम संबंधों को मजबूत करके रोजगार सृजन करने, औद्योगिक क्षमता को बढ़ाने और आत्मनिर्भर भारत तथा विकसित भारत @2047 के दृष्टिकोण को साकार करने में सहायक सिद्ध होगी। 
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