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नारियल तेल की कीमतों में वृद्धि: चुनौतियाँ एवं समाधान

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)

संदर्भ

केरल में नारियल तेल की कीमतों में भारी वृद्धि ने आयुर्वेदिक दवा निर्माताओं को मुश्किल में डाल दिया है। आयुर्वेदिक दवा निर्माता संगठन (AMMOI) ने सरकार से सब्सिडी पर तेल उपलब्ध कराने की माँग की है। नारियल तेल की कीमतें 2020 में 166 प्रति लीटर से बढ़कर 2025 में 450 प्रति लीटर हो गई हैं।

नारियल तेल के बारे में

  • नारियल तेल नारियल के गूदे (कोपरा) से निकाला जाता है जो नारियल के वृक्ष (कोकोस न्यूसीफेरा) से प्राप्त होता है। इस तेल में मध्यम-श्रृंखला फैटी एसिड (जैसे-लॉरिक एसिड) इसे अद्वितीय बनाते हैं।
  • यह खाना पकाने, कॉस्मेटिक्स एवं आयुर्वेदिक दवाओं में व्यापक रूप से प्रयोग होता है।

स्वास्थ्य एवं वैज्ञानिक महत्व

  • स्वास्थ्य लाभ:
    • लॉरिक एसिड में रोगाणुरोधी गुण जीवाणु एवं विषाणु से लड़ने में मदद करते हैं।
    • हृदय स्वास्थ्य बढ़ाने में संभावित रूप से लाभकारी माना जाता है किंतु इस पर कुछ विवाद है।
    • त्वचा एवं बालों के लिए मॉइस्चराइजिंग व पौष्टिक गुण से युक्त है।
  • वैज्ञानिक महत्व:
    • मध्यम-श्रृंखला ट्राइग्लिसराइड्स (MCTs) तेजी से ऊर्जा प्रदान करते हैं और मस्तिष्क स्वास्थ्य में सहायक हो सकते हैं।
    • आयुर्वेद में नारियल तेल का उपयोग शरीर को ठंडक देने और औषधीय गुणों को बढ़ाने के लिए किया जाता है।
    • यह त्वचा में आसानी से अवशोषित होता है, जिससे यह औषधीय तेलों का आधार बनता है।

आर्थिक और औषधीय उपयोग

  • आर्थिक उपयोग :
    • नारियल तेल खाना पकाने, साबुन निर्माण और वर्जिन नारियल तेल (रासायनिक मिलावट रहित तेल) उत्पादन में उपयोग होता है।
    • केरल की 4,000 करोड़ के आयुर्वेदिक उद्योग में 12,000 टन नारियल तेल की सालाना आवश्यकता होती है।
    • नारियल तेल कॉस्मेटिक्स, हेयर ऑयल एवं खाद्य उद्योग में भी महत्वपूर्ण है।
  • औषधीय उपयोग :
    • आयुर्वेदिक दवाओं में आधार तेल के रूप में, जैसे- मुरिवेन्ना (जोड़ों के दर्द के लिए) और धुरदुरपथरादि में।
    • त्वचा रोगों, घावों एवं सूजन के उपचार में उपयोग।
    • पारंपरिक रूप से तिल के तेल के स्थान पर उपयोग सामाजिक एवं आर्थिक रूप से नारियल उत्पादकों को लाभ पहुँचाता है।

कीमतों में वृद्धि का कारण 

  • दक्षिण भारत में नारियल तेल की कमी, विशेष रूप से केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश में
  • मौसम की प्रतिकूल स्थिति के कारण नारियल उत्पादन पर प्रभाव से कोपरा की आपूर्ति में कमी 
  • वैश्विक माँग में वृद्धि और आयात पर निर्भरता से कीमतों में बढ़ोत्तरी 
  • वर्ष 2020-2025 के बीच कीमतों में 166 प्रति लीटर से 450 प्रति लीटर तक की वृद्धि होना

आयुर्वेदिक दवा निर्माताओं पर प्रभाव

  • उत्पादन लागत में भारी वृद्धि, क्योंकि नारियल तेल उत्पाद लागत का बड़ा हिस्सा है।
    • उदाहरण:  450 मिली. मुरिवेन्ना की कीमत 430 में 225 केवल नारियल तेल की लागत।
  • निर्माताओं ने उत्पाद की कीमतों में 10-20% की वृद्धि की है किंतु यह पर्याप्त नहीं है।
  • कीमतों में अधिक वृद्धि से ग्राहकों पर बोझ पड़ता है, जिससे माँग प्रभावित हो सकती है।
  • छोटे एवं मध्यम निर्माताओं के लिए व्यवसाय चलाना मुश्किल है क्योंकि जड़ी-बूटियों, पैकेजिंग एवं विपणन लागत भी बढ़ रही है।

चुनौतियाँ

  • आपूर्ति की कमी : नारियल उत्पादन में कमी के कारण तेल की सीमित उपलब्धता
  • उच्च लागत : बढ़ती कीमतों से आयुर्वेदिक दवाएँ महँगी होने से ग्राहक पर प्रभाव
  • आयात निर्भरता : दक्षिण भारत में कमी के कारण आयात पर निर्भरता से लागत में वृद्धि
  • प्रतिस्पर्धा : वैश्विक बाजार में नारियल तेल की माँग बढ़ने से स्थानीय उद्योगों पर दबाव
  • नीतिगत समर्थन की कमी : सब्सिडी या सहायता की कमी से निर्माताओं को नुकसान

आगे की राह

  • सब्सिडी : सरकार से आयुर्वेदिक उद्योग के लिए रियायती दर पर नारियल तेल उपलब्ध कराने की माँग।
  • उत्पादन बढ़ावा : नारियल की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए बेहतर कृषि तकनीक और समर्थन।
  • वैकल्पिक तेल : तिल तेल जैसे अन्य तेलों का उपयोग आयुर्वेद में पुनर्जनन, यदि संभव हो।
  • जलवायु अनुकूलन : मौसम परिवर्तन से निपटने के लिए नारियल की खेती में अनुसंधान और नवाचार।
  • जागरूकता और विपणन : आयुर्वेदिक उत्पादों की माँग बढ़ाने के लिए वैश्विक और स्थानीय स्तर पर प्रचार।

निष्कर्ष

नारियल तेल की बढ़ती कीमतों ने केरल के आयुर्वेदिक दवा उद्योग को चुनौतियों के सामने ला खड़ा किया है। यह उद्योग न केवल आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि स्वास्थ्य और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी मूल्यवान है। सरकार और हितधारकों को मिलकर नारियल उत्पादन बढ़ाने, सब्सिडी प्रदान करने, और वैकल्पिक रणनीतियों पर विचार करने की आवश्यकता है। 

नारियल के बारे में

  • वैज्ञानिक नाम : कोकोस न्यूसीफेरा (Cocos Nucifera)
  • जलवायु: उष्णकटिबंधीय जलवायु में पनपता है, मुख्य रूप से तटीय क्षेत्रों में
  • उत्पादकता : एक वृक्ष प्रतिवर्ष 50-80 नारियल दे सकता है जो 8-10 वर्ष से उत्पादन शुरू करता है।
  • मौसम : नारियल की खेती के लिए गर्म एवं आर्द्र जलवायु (25-35 डिग्री सेल्सियस) और 1000-1500 मिमी. वार्षिक वर्षा आदर्श है। भारत में नारियल पूरे वर्ष उपलब्ध है किंतु मुख्य फसल मॉनसून के बाद (अक्तूबर-दिसंबर)।
  • उत्पादन : लगभग 21 बिलियन नारियल प्रतिवर्ष के साथ भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा नारियल उत्पादक है। वर्ष 2022-23 में भारत का नारियल उत्पादन लगभग 2.2 करोड़ टन है।
  • मुख्य उत्पादक राज्य
    • केरल: सबसे बड़ा उत्पादक, कुल उत्पादन का ~45%
    • तमिलनाडु: दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक, ~30% उत्पादन
    • कर्नाटक और आंध्र प्रदेश: अन्य प्रमुख उत्पादक
    • अन्य क्षेत्र: गोवा, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह
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