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चरणबद्ध विनिर्माण नीति से जुड़े मुद्दे

(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ ; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3: विषय- उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव, निवेश मॉडल, प्रौद्योगिकी मिशन)

पृष्ठभूमि

  • चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम (Phased Manufacturing Policy- PMP) द्वारा शुरू में कम मूल्य की वस्तुओं के निर्माण को प्रोत्साहित किया गया तदोपरांत यह कार्यक्रम उच्च मूल्य घटकों/वस्तुओं के निर्माण और उनके निर्माताओं पर केंद्रित हो गया।
  • इस योजना के तहत वस्तुओं के आयात पर मूल सीमा शुल्क को बढ़ाकर, अपरोक्ष प्रोत्साहन दिया जा रहा था।
  • अन्य अर्थों में देखा जाए तो पी.एम.पी. को देश में मूल्यवर्धन (Value Addition) क्षेत्र में सुधार के उद्देश्य से लागू किया गया था।
  • भारत को एक प्रमुख विनिर्माण केंद्र में बदलने के लिये  हाल ही में, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना के तत्वावधान में मोबाइल विनिर्माण क्षेत्र की 16 फर्मों को मंज़ूरी दी गई थी।
  • उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना (Performance Linked Incentive Scheme- PLI) को चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम (पी.एम.पी.) के अगले भाग के रूप में सरकार द्वारा अप्रैल, 2020 में लॉन्च किया गया था। ध्यातव्य है कि चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम वर्ष 2016-17 में शुरू हुआ था।

विचारणीय बिंदु :

1) भारत में अधिक आयात और कम मूल्य संवर्धन

  • एप्पल, ज़ियोमी, ओप्पो और वन-प्लस जैसी फर्मों ने भारत में निवेश किया है, लेकिन इनमें से ज़्यादातर ने अपने अनुबंध निर्माताओं के माध्यम से ही निवेश किये हैं।
  • परिणामस्वरूप, इनका उत्पादन वर्ष 2016-17 में $13.4 बिलियन से बढ़कर 2019-20 में $31.7 बिलियन हो गया।
  • एनुअल सर्वे ऑफ इंडस्ट्रीज (Annual Survey of Industries - ASI) के फैक्ट्री स्तर के उत्पादन आँकड़ों से पता चलता है कि इन कम्पनियों ने मोबाइल फ़ोन या अन्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के विनिर्माण के लिये 85% से अधिक इनपुट, आयात किये थे।
  • भारत, चीन, वियतनाम, कोरिया और सिंगापुर (2017-2019) से जुड़े संयुक्त राष्ट्र के आँकड़े बताते हैं कि भारत को छोड़कर, सभी देशों ने आयात के सापेक्ष मोबाइल फोन के अधिकाधिक भागों का निर्यात किया था।
  • इन देशों द्वारा आयात से अधिक निर्यात का होना यह दर्शाता है कि इन देशों में मूल्यवर्धन के लिये उचित मात्रा में सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
  • दूसरी ओर, भारत ने निर्यात की तुलना में आयात अधिक किया है।
  • यद्यपि पी.एम.पी. नीति द्वारा घरेलू उत्पादन की लागत में वृद्धि हुई है, किंतु  स्थानीय मूल्य संवर्धन में अधिक सुधार नहीं हुआ है।
  • इस प्रकार, भारत में घरेलू उत्पादन की बढ़ती लागत पर ही ध्यान दिया जा रहा है न कि स्थानीय मूल्य संवर्धन पर।
  • अर्थशास्त्रियों का मानना है कि नई पी.एल.आई. नीति, वृद्धिशील निवेश और निर्मित वस्तुओं की बिक्री को प्रोत्साहित करने में सहायक होगी।

2) चीन से प्रतिस्पर्धा :

  • भारत ने वर्ष 2018-19 के लिये लगभग 29 करोड़ यूनिट मोबाइल फोन का उत्पादन किया था; इनमें से लगभग 94% घरेलू बाज़ार में ही बेचे गए।
  • इससे यह पता चलता है कि पी.एल.आई. नीति के तहत वृद्धिशील उत्पादन और बिक्री का ज़्यादातर हिस्सा, जो निर्यात बाज़ार के लिये होना चाहिये, वह सम्भव नहीं हो पा रहा है।
  • हाल ही में, अर्न्स्ट एंड यंग (Ernst & Young ) के एक अध्ययन से पता चला है कि मोबाइल फोन के उत्पादन की लागत यदि 100 इकाई (बिना सब्सिडी के) है तो चीन में मोबाइल फोन के निर्माण की प्रभावी लागत (सब्सिडी और अन्य लाभों के साथ) 79.55, वियतनाम में 89.05 और भारत में (पी.एल.आई. सहित), 92.51 पड़ेगी।
  • अतः मोबाइल विनिर्माण के एक बड़े हिस्से का चीन से भारत में स्थानांतरित होना अभी सम्भव नहीं लग रहा।

3) पी.एल.आई. वर्तमान निर्यात प्रतिस्पर्धा को मज़बूत नहीं करता है :

  • भारत का मोबाइल फोन निर्यात वर्ष 2018-19 में 1.6 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2019-20 में $3.8 बिलियन हो गया, लेकिन प्रति यूनिट मूल्य क्रमशः 91.1 डॉलर से घटकर 87 डॉलर हो गया।
  • इससे पता चलता है कि हमारी निर्यात प्रतिस्पर्धा, कम बिक्री मूल्य के मोबाइल क्षेत्रों में है।
  • पी.एल.आई. नीति के तहत चुनी गई विदेशी फर्मों के लिये, प्रोत्साहन 15,000 रुपए ($ 204.65) या इससे अधिक होगा। जिससे यह स्पष्ट है कि पी.एल.आई. नीति मोबाइल फोन क्षेत्र में हमारी मौजूदा निर्यात प्रतिस्पर्धा को अधिक मज़बूत नहीं कर पा रही है।

4) घरेलू फर्मों की अनुपस्थिति:

  • भारतीय बाज़ार से घरेलू फर्मों की भागीदारी लगभग समाप्त हो गई है।
  • घरेलू फर्मों के पास अन्य कम आय वाले देशों को सस्ता मोबाइल फोन निर्यात करने का मार्ग ही शेष है।
  • हालाँकि इस क्षेत्र में भी विगत वर्षों में इनका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है।

5) आपूर्ति शृंखला का महत्त्व:

  • जिन छह फर्मों को 'निर्दिष्ट इलेक्ट्रॉनिक कम्पोनेंट्स सेगमेंट' के तहत मंज़ूरी दी गई है, वे मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम को पूरा नहीं करती हैं।
  • उदाहरण के लिये, जब सैमसंग ने वियतनाम में अपनी फ़र्म स्थापित की, तो वह अपने कोरियाई आपूर्तिकर्ताओं पर बहुत अधिक निर्भर थी, सैमसंग के 67 आपूर्तिकर्ताओं में 63 विदेशी ही थे।  हालाँकि, सैमसंग ने भारत में भी बहुत अधिक निवेश किया है, लेकिन भारत में इसकी कोई भी आपूर्ति शृंखला या उससे जुड़ी कम्पनी स्थित नहीं है।
  • इसलिये, पी.एल.आई. नीति के तहत चुनी गई विदेशी फर्मों को देश में अपनी आपूर्ति पारिस्थितिकी प्रणालियों का प्रयोग करने या उनका निर्माण के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

पी.एम.पी. नीति, 2016-17 के बाद से उद्योग में घरेलू मूल्य संवर्धन को बढ़ाने में अधिक मददगार साबित नहीं हुई है, हालाँकि उत्पादन की लागत में काफी विस्तार हुआ है।
भारत को पूर्वी एशियाई देशों की विनिर्माण नीति से बहुत कुछ सीखने की ज़रुरत है। साथ ही, लुक ईस्ट नीति को और अधिक प्रभावी बनाया जाना चाहिए। क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) से स्वयं को बाहर कर लेने के बाद भारत के विनिर्माण क्षेत्र में जो अंतराल आया है वह वापस इसी स्तर की बड़ी परियोजना या नीति के कार्यान्वयन से ही भरा जा सकता है।

प्री फैक्ट्स:

चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम (Phased Manufacturing Policy- PMP)

  • भारत सरकार ने मई 2017 में सेलुलर मोबाइल हैंडसेट के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के लिये PMP की शुरुआत की थी।
  • यह कार्यक्रम इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MieTY) के तहत शुरू किया गया है।
  • इसका उद्देश्य मोबाइल फ़ोन के घरेलू विनिर्माण में शामिल चुनिंदा उत्पादों पर कर राहत एवं प्रोत्साहन प्रदान करना है।
  • इसे चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम कहा जाता है क्योंकि इसके अंतर्गत मोबाइल फ़ोन के विभिन्न घटकों के घरेलू विनिर्माण को वित्तीय सहायता देने का प्रावधान है।

उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना (Production Linked Incentive Scheme)

  • उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना को अप्रैल 2020 में, भारत सरकार द्वारा विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने और मोबाइल फोन के विनिर्माण तथा एसेम्‍बली (Assembly), परीक्षण (Testing), मार्किंग (Marking) एवं पैकेजिंग (Packaging) आदि इकाइयों एवं विशिष्‍ट इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स कलपुर्जों के क्षेत्र में व्‍यापक निवेश आकर्षित करने के लिये मंज़ूरी प्रदान की गई थी।
  • इस योजना के तहत भारत में निर्मित तथा लक्षित खंडों के क्षेत्र में आने वाली वस्तुओं की वृद्धिशील बिक्री (आधार वर्ष) पर योग्य कम्पनियों को आधार वर्ष के बाद, पाँच वर्षों की अवधि के लिये प्रोत्साहन राशि दिये जाने का प्रावधान है।
  • इसके अंतर्गत मोबाइल विनिर्माण एवं विशिष्‍ट इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स कलपुर्जों के क्षेत्र में कार्यरत 6 प्रमुख वैश्विक कम्पनियों एवं कुछ घरेलू कम्पनियों को तथा भारत में बड़े पैमाने पर इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स विनिर्माण क्षेत्र को लाभ प्राप्त होगा।
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