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नेपाल में रेल कनेक्टिविटी और भारत-चीन प्रतिद्वंद्विता

संदर्भ 

  • भारत, बिहार के रक्सौल से नेपाल के काठमांडू तक 141 किमी. लंबी रेलवे लाइन बनाने की योजना पर काम कर रहा है। यह रेलवे लाइन भारत के रेल नेटवर्क को शेष दक्षिण एशिया से जोड़ने की एक बड़ी परियोजना का हिस्सा है।
  • दूसरी ओर, तिब्बत के केरुंग से नेपाल के काठमांडू के बीच 75 किमी. लंबी रेलवे लाइन बनाने की योजना पर चीन काम कर रहा है। यह लाइन चीन की बेल्ट एंड रोड पहल का हिस्सा है।

भारत-नेपाल रेल संपर्क की पृष्ठभूमि

  • नेपाल में सबसे पहले रेलवे लाइन अंग्रेजों ने वर्ष 1927 में रक्सौल को अमलेखगंज (नेपाल) से जोड़ने के लिए बनाई थी, यह नेपाल में पहली नैरो गेज रेलवे लाइन थी। 
  • एक दशक बाद वर्ष 1937 में अंग्रेजों ने बिहार के जयनगर से नेपाल के धार्मिक केंद्र जनकपुर को जोड़ने के लिए जनकपुर-जयनगर नामक दूसरी नैरो गेज रेलवे लाइन विकसित की। 
  • नवीनतम विकास क्रम में रक्सौल से काठमांडू के बीच रेलवे लाइन की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तैयार किया जा चुका है।
  • नेपाल एवं चीन द्वारा वर्ष 2017 में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) समझौते पर हस्ताक्षर के बाद दोनों देशों ने 21 जून, 2018 को केरुंग-काठमांडू रेलवे के निर्माण के लिए सहयोग पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। 

नेपाल में रेल कनेक्टिविटी के संदर्भ में भारत-चीन प्रतिद्वंद्विता

  • प्रारंभ में जब नेपाल एवं चीन ट्रांस-हिमालयी रेलवे परियोजना के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) के लिए नियमित संपर्क में थे तब भारत अधिक सक्रिय नहीं रहा। किंतु बाद में चीन के कदम का मुकाबला करने के लिए रक्सौल एवं काठमांडू के बीच रेलवे लाइन के निर्माण में भारत अधिक सक्रिय हो गया। इस परियोजना की कुल निवेश लागत 4,000 करोड़ रुपये अनुमानित है।
  • केरुंग-काठमांडू रेलवे के निर्माण पर बातचीत रक्सौल-काठमांडू परियोजना से बहुत पहले शुरू हुई थी। हालाँकि, भारत ने रक्सौल-काठमांडू रेलवे लाइन के लिए DPR तैयार करने में कम-से-कम शुरुआती चरण में चीन को पीछे छोड़ दिया है। भारत ने रक्सौल-काठमांडू लाइन के लिए डी.पी.आर. पहले ही पूर्ण कर ली है; जबकि चीन अभी शुरुआती चरण में है।
  • नेपाल के कई विशेषज्ञों का मानना है कि केरुंग एवं काठमांडू के बीच ट्रांस-हिमालयी रेलवे का निर्माण तकनीकी व वित्तीय आधार पर चुनौतीपूर्ण है। कठिन भू-भाग और इस क्षेत्र की पर्यावरणीय संवेदनशीलता इस परियोजना को मूर्त रूप देने में बाधक है। इस रेल नेटवर्क के नेपाल खंड के 95% हिस्से में सुरंग बनाने की जरूरत है, जिसकी लागत देश को लगभग 3-3.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो सकती है।
  • अधिकांश विशेषज्ञों का सुझाव है कि नेपाल को केरुंग से काठमांडू के बीच रेलवे कनेक्टिविटी की बजाए सड़क कनेक्टिविटी पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

नेपाल में रेल कनेक्टिविटी और भारत-चीन प्रतिद्वंद्विता के भू-राजनीतिक निहितार्थ

  • तिब्बत एवं काठमांडू को रेलवे से जोड़ने वाली चीन की परिकल्पना हिमालय के चुनौतीपूर्ण इलाके के कारण एक महत्वपूर्ण उपक्रम है। यह परियोजना चीन को हिंद महासागर के लिए एक वैकल्पिक व्यापार मार्ग प्रदान कर सकती है और चीन के प्रभाव को बढ़ा सकती है। 
    • इसके अतिरिक्त यह चीन के साथ नेपाल की कनेक्टिविटी को बढ़ाएगा, नए आर्थिक अवसर खोलेगा और लोगों-से-लोगों के मध्य आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाएगा।
  • विगत कई दशकों से भारत ने रेलवे क्षेत्र सहित बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं के विकास के लिए नेपाल को अत्यधिक सहयोग दिया है। रेलवे के क्षेत्र में भारत-नेपाल सहयोग का इतिहास लगभग 100 वर्ष पुराना है। नेपाल के साथ रेल कनेक्टिविटी सुधारने को लेकर भारत सक्रिय रूप से कार्यरत है। 
  • बिहार एवं नेपाल के बीच यात्री रेल सेवा ने सीमा पार गतिशीलता को बढ़ाया है, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार व पर्यटन सुविधाजनक बन गया है। आगे के विकास व विस्तार के साथ एक इंटरकनेक्टेड रेलवे नेटवर्क संभावित रूप से भारत से नेपाल होते हुए चीन सीमा तक भी पहुंच सकता है। इस तरह की कनेक्टिविटी आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करेगी, द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करेगी और क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा देगी

चुनौतियाँ

  • भारत एवं नेपाल के बीच रेल संपर्क का निर्माण एक जटिल व चुनौतीपूर्ण परियोजना है। नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में निर्माण कार्य कठिन है और निर्माण लागत अधिक होने की संभावना है। 
  • जटिल भू-भाग, पर्यावरण संबंधी चिंताएँ और महत्वपूर्ण निवेश आवश्यकता जैसी चुनौतियाँ इन परियोजनाओं की प्राप्ति में बाधाएँ पैदा करती हैं। 
  • इसके अतिरिक्त, ऐतिहासिक तनाव एवं रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता सहित क्षेत्र की भू-राजनीतिक गतिशीलता, रेलवे कनेक्टिविटी पहल की प्रगति व परिणामों को प्रभावित कर सकती है।

संभावित लाभ

  • रेल संपर्क के निर्माण से लोगों के लिए और सामानों के लिए भारत व नेपाल के बीच यात्रा करना आसान हो सकता है और इससे नेपाल के आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिल सकता है। 
  • भारत, चीन व नेपाल के बीच रेल संपर्क में आर्थिक विकास, व्यापार सुविधा एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान की पर्याप्त संभावनाएं हैं। इससे कनेक्टिविटी बढ़ेगी, लॉजिस्टिक्स में सुधार होगा और परिवहन लागत कम होगी, जिससे तीनों देशों को लाभ होगा।

आगे की राह 

  • नेपाल एक स्थलरुद्ध देश है, इसलिए उसे भारत एवं चीन दोनों के साथ संबंधों में संतुलन बनाते हुए अधिकतम आर्थिक लाभ प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। 
  • बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत को अपने पड़ोसी देशों (विशेषकर नेपाल) के साथ मधुर कूटनीतिक एवं रणनीतिक संबंधो को विकसित करने की आवश्यकता है। 
  • आर्थिक क्षेत्र में निवेश बढ़ने के साथ-साथ रोटी-बेटी के पुरातन संबंधों में नई ऊर्जा भरने की आवश्यकता है। 
  • चीन को भी अपनी आक्रामक विस्तारवादी नीति को त्यागकर एक शांतिप्रिय, समावेशी एवं भाईचारा बढ़ाने की नीति को अपनाना चाहिए।

निष्कर्ष

विभिन्न प्रस्तावित परियोजनाओं के माध्यम से भारत, चीन व नेपाल के बीच संभावित रेल कनेक्टिविटी क्षेत्रीय एकीकरण एवं आर्थिक विकास का सुनहरा वादा करती है। दोनों देश अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, जबकि दोनों देशों का अंतिम लक्ष्य क्षेत्र में सहयोग, स्थिरता व सतत विकास को बढ़ावा देना होना चाहिए। इन रेल लिंकों का कार्यान्वयन तकनीकी चुनौतियों का समाधान करने, पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने और जटिल भू-राजनीतिक गतिशीलता को नेविगेट करने पर निर्भर करेगा। अंततः सुसंबद्ध दक्षिण एशिया विशाल अवसरों के द्वार खोल सकता है और देशों के बीच घनिष्ठ संबंधों को बढ़ावा दे सकता है, जिससे पूरे क्षेत्र के लोगों को लाभ होगा।

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