“पानी के बिना जीवन असंभव है, और भारत के लिए — भूजल जीवन की रीढ़ है।”
भारत में भूजल (Groundwater) — पेयजल, सिंचाई और औद्योगिक उपयोग— तीनों के लिए सबसे बड़ा स्रोत है। परंतु यही स्रोत अब गंभीर प्रदूषण और गिरते स्तर से जूझ रहा है। यह प्रदूषण धीरे-धीरे फैलता है, पर लंबे समय तक स्थायी नुकसान पहुँचाता है— इसलिए इसे “Silent Water Crisis” कहा जाता है।
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संकेतक |
आँकड़ा / तथ्य |
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कुल उपयोग में भूजल का हिस्सा |
लगभग 62% |
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सिंचाई हेतु उपयोग |
कुल जल का 85% |
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पेयजल हेतु निर्भरता |
ग्रामीण क्षेत्रों में 85%, शहरी में 48% |
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गंभीर / अति-शोषित ब्लॉक |
700+ (CGWB, 2023) |
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जल गुणवत्ता प्रभावित जिले |
250+ जिले |
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प्रमुख प्रदूषक |
आर्सेनिक, फ्लोराइड, नाइट्रेट, लौह, यूरेनियम, लवणता |
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सबसे प्रभावित राज्य |
बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, राजस्थान, पंजाब, गुजरात, तेलंगाना |
विश्व बैंक (2023) के अनुसार — भारत में 20 करोड़ से अधिक लोग भूजल प्रदूषण से सीधे प्रभावित हैं।
(1) औद्योगिक अपशिष्ट (Industrial Effluents)
(2) कृषि रसायन (Fertilizers & Pesticides)
(3) घरेलू एवं सीवेज अपशिष्ट
(4) भू-रासायनिक (Geogenic) प्रदूषण
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तत्व (Element) |
प्रभावित क्षेत्र (Region) |
मुख्य स्वास्थ्य समस्या (Problem) |
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आर्सेनिक (As) |
गंगा–ब्रह्मपुत्र बेसिन — बिहार, पश्चिम बंगाल, असम |
कैंसर, त्वचा रोग |
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फ्लोराइड (F) |
राजस्थान, गुजरात, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश |
फ्लोरोसिस, हड्डियों की विकृति |
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लौह (Fe) |
झारखंड, ओडिशा, असम |
पाचन विकार, त्वचा रोग |
(5) ठोस अपशिष्ट और लैंडफिल लीचेट
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प्रदूषक |
सुरक्षित सीमा (WHO/IS:10500) |
प्रभाव |
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आर्सेनिक (As) |
0.01 mg/L |
त्वचा-कैंसर, लिवर/हृदय रोग |
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फ्लोराइड (F) |
1.0 mg/L |
डेंटल/स्केलेटल फ्लोरोसिस |
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नाइट्रेट (NO₃⁻) |
45 mg/L |
Blue Baby Syndrome |
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लौह (Fe) |
0.3 mg/L |
रंग व स्वाद में खराबी |
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यूरेनियम (U) |
0.03 mg/L |
किडनी क्षति |
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लवणता (TDS) |
500 mg/L |
पानी अनुपयोगी, फसलों की उपज घटती है |
(1) बिहार – आर्सेनिक संकट
(2) राजस्थान – फ्लोराइड प्रदूषण
(3) पंजाब – यूरेनियम प्रदूषण
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योजना / नीति |
उद्देश्य |
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अटल भूजल योजना (Atal Bhujal Yojana – 2020) |
समुदाय आधारित भूजल प्रबंधन – 7 राज्यों में लागू; वैज्ञानिक डाटा, पंचायत भागीदारी। |
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जल शक्ति अभियान – “Catch the Rain” (2019) |
जल पुनर्भरण, वर्षा जल संचयन, और जागरूकता। |
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राष्ट्रीय जल नीति (Draft 2023) |
जल गुणवत्ता निगरानी, औद्योगिक अपशिष्ट नियंत्रण। |
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CGWB – National Aquifer Mapping & Management Programme (NAQUIM) |
3D Aquifer Map, Recharge Zone पहचान। |
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NRDWP / Jal Jeevan Mission |
पेयजल स्रोतों की सुरक्षा और शुद्ध आपूर्ति। |
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Swachh Bharat Mission + AMRUT |
सीवेज ट्रीटमेंट और शहरी अपशिष्ट प्रबंधन। |
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चुनौती |
विवरण |
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निगरानी की कमी |
केवल 25,000 मॉनिटरिंग स्टेशनों पर गुणवत्ता परीक्षण; कई जिलों में डेटा अनुपलब्ध। |
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संस्थानिक समन्वय की कमी |
जल केंद्र-राज्य विषय दोनों; नीति विखंडित। |
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औद्योगिक निगरानी ढीली |
ETP/STP न चलाने पर भी उद्योग संचालन जारी। |
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जनजागरूकता का अभाव |
ग्रामीण इलाकों में प्रदूषित जल के प्रभाव की जानकारी नहीं। |
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अत्यधिक दोहन |
Recharge से कई गुना अधिक निकासी। |
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नीचे जाती गुणवत्ता |
पुनर्भरण क्षेत्र कंक्रीट से ढके, प्रदूषक शमन कम। |
भूजल प्रदूषण निगरानी नेटवर्क का विस्तार: हर 10 ग्राम पंचायत पर एक Water Testing Lab।
औद्योगिक अपशिष्ट पर कठोर नियंत्रण: "Polluter Pays" सिद्धांत के तहत जुर्माना।
कृषि में रसायन उपयोग में सुधार: जैविक खेती, ड्रिप सिंचाई, नाइट्रेट-फ्री उर्वरक।
भूजल पुनर्भरण संरचनाएँ: परकोलेशन टैंक, जोहड़, recharge wells — हर ब्लॉक में अनिवार्य।
जल साक्षरता अभियान: स्कूलों में “Water Literacy” और पंचायत स्तर पर प्रशिक्षण।
GIS आधारित भूजल डेटाबेस: “Groundwater Quality Atlas of India” का अद्यतन संस्करण सार्वजनिक किया जाए।
सामुदायिक भागीदारी: “जल पंचायतें”, “भूजल प्रहरी” — स्थानीय निगरानी समितियाँ।
“भूजल प्रदूषण आँखों से नहीं दिखता, पर उसका असर आने वाली पीढ़ियाँ भुगतेंगी।”
भूजल प्रदूषण केवल पर्यावरणीय संकट नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, कृषि और सामाजिक न्याय का प्रश्न है। इसके समाधान के लिए कठोर नीति, स्थानीय भागीदारी, वैज्ञानिक प्रबंधन और जनजागरूकता का समन्वय आवश्यक है।
यदि हर ग्राम, हर शहर अपने नीचे के जल की रक्षा करे — तो भारत “जल आत्मनिर्भर, स्वच्छ और सतत विकासशील राष्ट्र” बन सकता है।
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