यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त रम्माण उत्सव का उत्तराखंड में आयोजन किया जा रहा है।
रम्माण उत्सव के बारे में
- परिचय : यह उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र का एक लोक-धार्मिक, सांस्कृतिक व अनुष्ठानिक उत्सव है जो विशेष रूप से चमोली ज़िले के सलूड़-ढूंग्रा गांव में मनाया जाता है।
- आयोजन : प्रतिवर्ष बैसाख महीने (अप्रैल–मई) में
- समर्पित देवता : यह उत्सव गांव के क्षेत्रपाल भूमियाल देवता (भैरव) के सम्मान में आयोजित किया जाता है।
- यूनेस्को द्वारा मान्यता : इस उत्सव को यूनेस्को द्वारा वर्ष 2009 में मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (Intangible Cultural Heritage of Humanity) के रूप में मान्यता प्रदान की गई थी।
उत्सव की प्रमुख विशेषताएँ
- धार्मिक अनुष्ठान : उत्सव के दौरान भगवान भैरव की पूजा की जाती है तथा देवताओं की मूर्तियाँ और प्रतीक की शोभायात्रा निकली जाती है।
- मुखौटा नृत्य : स्थानीय ग्रामीण कलाकार पारंपरिक वेशभूषा पहनकर मुखौटे (Masks) के साथ पौराणिक व ऐतिहासिक पात्रों का अभिनय करते हैं।
- रामायण, महाभारत, स्थानीय लोक कथाएं और सामाजिक विषयों पर आधारित प्रस्तुतियाँ दी जाती हैं।
- लोक संगीत और नृत्य : पारंपरिक ढोल-दमाऊ, हुदका व रणसिंघा जैसे वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया जाता है।
- सामाजिक समरसता का प्रतीक : इस उत्सव में विभिन्न जाति, वर्ग व समुदाय के लोग भाग लेते हैं। सभी कार्य सामूहिक रूप से पंचायत और ग्रामीणों की भागीदारी से संपन्न होते हैं।