भारतीय तटरक्षक बल (ICG) ने स्वदेशी रूप से डिज़ाइन एवं निर्मित अपने पहले प्रदूषण नियंत्रण पोत (Pollution Control Vessel: PCV) ‘समुद्र प्रताप’ को औपचारिक रूप से अपने बेड़े में शामिल किया है। इसे समुद्री पर्यावरण संरक्षण, तेल रिसाव प्रबंधन एवं आपातकालीन अग्निशमन क्षमताओं को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा रहा है।
प्रमुख तकनीकी विशेषताएँ
- विशाल आकार व क्षमता: 114.5 मीटर की लंबाई और 4,170 टन के विस्थापन के साथ यह आई.सी.जी. बेड़े का सबसे बड़ा पोत है। इसकी क्षमता इसे गहरे समुद्र में लंबे समय तक अभियानों के लिए उपयुक्त बनाती है।
- अत्याधुनिक नेविगेशन (DP-1): यह आई.सी.जी. का पहला ऐसा पोत है जो डायनेमिक पोजिशनिंग (DP-1) क्षमता से लैस है। यह तकनीक तेल रिसाव के दौरान पोत को एक निश्चित स्थान पर स्थिर बनाए रखने में मदद करती है जिससे सफाई कार्य सटीक ढंग से हो पाता है।
- प्रदूषण प्रतिक्रिया प्रणाली: इसमें तेल की पहचान करने वाली (Fingerprinting) मशीन, उन्नत तेल रिसाव पहचान प्रणाली एवं उच्च-चिपचिपाहट वाले तेल को निकालने वाले उपकरण शामिल हैं।
बहुआयामी परिचालन क्षमताएँ
‘समुद्र प्रताप’ को केवल प्रदूषण नियंत्रण तक सीमित नहीं रखा गया है, बल्कि इसे एक युद्धपोत की तरह सुसज्जित किया गया है:
- अग्निशमन (Firefighting): इसे FiFi-2/FFV-2 प्रमाणन प्राप्त है जो इसे समुद्र में जहाजों या तेल प्लेटफार्म्स पर लगने वाली भीषण आग को बुझाने में सक्षम बनाता है।
- रक्षा प्रणाली: आत्मरक्षा के लिए यह 30 मिमी CRN-91 तोप और दो रिमोट-नियंत्रित 12.7 मिमी गन से लैस है जो आधुनिक अग्नि-नियंत्रण प्रणालियों (FCSs) से जुड़ी हैं।
- स्वदेशी तकनीकी ढांचा: जहाज में एकीकृत पुल प्रणाली (IBS) और स्वचालित विद्युत प्रबंधन प्रणाली जैसे स्वदेशी सॉफ्टवेयर व हार्डवेयर का उपयोग किया गया है।
FiFi-2/FFV-2 प्रमाणन (Certification)
यह समुद्री जहाजों के लिए एक उच्च-स्तरीय बाह्य अग्निशमन प्रणाली (External Firefighting System) का मानक है जो जहाज को वृहद स्तर की आग का सामना करने की क्षमता प्रदान करता है।
राष्ट्रीय एवं रणनीतिक महत्व
‘समुद्र प्रताप’ का शामिल होना भारत की समुद्री तैयारियों में एक नए युग की शुरुआत है:
- पारिस्थितिक सुरक्षा: यह भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) और उसके बाहर तेल रिसाव या रासायनिक प्रदूषण जैसी आपदाओं से निपटने की क्षमता को कई गुना बढ़ा देता है।
- स्वदेशी आत्मनिर्भरता: जटिल व विशिष्ट मिशनों के लिए जहाजों का घरेलू निर्माण भारत की बढ़ती नौसैनिक इंजीनियरिंग क्षमता का प्रमाण है।
- आपदा प्रबंधन: यह अपतटीय औद्योगिक दुर्घटनाओं और समुद्री पारिस्थितिक संकटों के समय भारत को एक ‘प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता’ (First Responder) के रूप में स्थापित करता है।