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स्पर्म व्हेल

(प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरण पारिस्तिथिकी, सामान्य विज्ञान)

हाल ही में, वैज्ञानिकों ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के माध्यम से स्पर्म व्हेल में 'ध्वन्यात्मक वर्णमाला' (Phonetic Alphabet) की खोज की। 

प्रमुख बिंदु 

  • शोधकर्ताओं ने क्लिक्स (Clicks) के समूहों का विश्लेषण करके ध्वन्यात्मक वर्णमाला बनाने वाले बुनियादी घटकों को खोजने का दावा किया। क्लिक्स समूहों को कोडा (Codas) के नाम से जाना जाता है। 
    • वर्णमाला का उपयोग व्हेल द्वारा असीमित संख्या में संयोजनों में किया जा सकता है, जैसे मनुष्य शब्द निर्माण के लिए ध्वनियों का संयोजन और वाक्य निर्माण के लिए शब्दों का सयोजन करते हैं।
  • व्हेल अपने बड़े सिर में स्थित नासिका मार्ग के माध्यम से हवा पर दवाब डालकर ये क्लिक्स उत्पन्न करते हैं। 
    • ये ध्वनि तरंगें निर्मित करती हैं जो पानी के माध्यम से गमन करती हैं। यह मुख्य रूप से इकोलोकेशन का एक रूप है जिसका उपयोग जीवों द्वारा समुद्र की गहराई में शिकार का पता लगाने और नेविगेट करने के लिए किया जाता है। 
    • हालाँकि, कभी-कभी इन क्लिक्स का उपयोग सामाजिक संदर्भों में भी किया जाता है।

स्पर्म व्हेल (Sperm Whale) के बारे में 

  • स्पर्म व्हेल (फिसेटर कैटोडोन) को कैचलोट भी कहा जाता है जो दांतेदार व्हेल्स में सबसे बड़ी है। 
  • स्पर्म व्हेल अत्यधिक सामाजिक जानवर हैं और उनकी आवाज़ें इनका एक अभिन्न अंग हैं।
  • वर्ग : स्तनधारी 
  • वैज्ञानिक नाम : फ़िसेटर मैक्रोसेफालस (Physeter macrocephalus) 
  • संरक्षण स्थिति 
    • IUCN : संवेदनशील (Vulnerable : Vu)
    • CITES : परिशिष्ट I
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 : अनुसूची I
  • जीवनकाल : लगभग 60 वर्ष तक
  • खतरे : जलवायु परिवर्तन, मछली पकड़ने के गियर में फंसना, समुद्री मलबा, महासागरीय शोर, तेल रिसाव एवं प्रदूषक, जहाज से टकराना
  • प्रसार क्षेत्र : अलास्का, न्यू इंग्लैंड/मध्य-अटलांटिक, प्रशांत द्वीप समूह, दक्षिण-पूर्व, पश्चिमी तट।

इकोलोकेशन तकनीक के बारे में 

  • कुछ जीव (जैसे- चमगादड़, मछली) या उपकरण (जैसे- पनडुब्बियाँ) अपने परिवेश को समझने के लिए ‘इकोलोकेशन तकनीक’ का उपयोग करते हैं। इसे ‘बायो सोनार’ भी कहते हैं।
  • इस तकनीक में जीव या उपकरण ध्वनि तरंगें उत्सर्जित करता है और अपने आसपास की वस्तुओं से उनके प्रतिबिंबों को सुनता है। 
    • अर्थात् परावर्तित तरंगों या प्रतिध्वनियों के आधार पर जीव या उपकरण अपने वातावरण को समझता है।
  • इसका उपयोग करने वाले जीव उच्च आवृत्ति वाले ध्वनि स्पंदन उत्सर्जित करते हैं जो प्राय: मानव श्रवण की सीमा से परे होते हैं। 

इकोलोकेट करने वाली प्रजातियाँ 

  • 1000 से अधिक प्रजातियाँ इकोलोकेट करती हैं। इनमें चमगादड़, व्हेल, छोटे स्तनधारी और कुछ पक्षी (जैसे- टैनी ऑयलबर्ड, स्विफ्टलेट्स एवं मेडागास्कर की टेनरेक) शामिल हैं।
  • कई रात्रिचर जीव, बिल खोदने वाले जीव एवं समुद्र में रहने वाले जीव बहुत कम या बिना रोशनी वाले वातावरण में भोजन/शिकार के लिए इकोलोकेशन पर निर्भर रहते हैं।
    • कमज़ोर दृष्टि वाली चमगादड़ अंधेरे में शिकार करने और नेविगेट करने के लिए इकोलोकेशन का उपयोग करते हैं।
    • डॉल्फ़िन इसका उपयोग वस्तुओं का पता लगाने और जल के भीतर संचार के लिए करती हैं। 
  • जीवों में इकोलोकेशन के कई तरीके (जैसे- गला हिलाना, पंख फड़फड़ाना, ध्वनि उत्पन्न करना) होते हैं।
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