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सतत कृषि उद्यमिता

संदर्भ

युवाओं को कृषि की ओर आकर्षित करने के लिये रोबोटिक्स, आई.सी.टी. और नैनो टेक्नोलॉजी जैसी तकनीकी को कृषि से जोड़ना होगा। इसके साथ-साथ कृषि उद्यमिता, खाद्य प्रसंस्करण और मूल्य श्रृंखला विकास जैसे घटक भी युवाओं को कृषि क्षेत्र को ओर प्रोत्साहित करेंगे। ऐसे में सरकार को सिंचाई, शीत भंडारण, मार्केट लिंकेज और मशीनीकरण सहित महत्त्वपूर्ण कृषि बुनियादी ढाँचे पर सार्वजनिक निवेश बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिये, ताकि किसानों को उच्च मूल्य वाली कृषि की ओर प्रोत्साहित किया जा सके।

सरकारी पहलें और उसके उद्देश्य 

  • हाल ही में, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा घोषित ‘सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम योजना’ का उद्देश्य मौजूदा सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों के उन्नयन के लिये वित्तीय, तकनीकी और व्यावसायिक सहायता प्रदान करना है। यह जी.एस.टी., एफ.एस.एस.ए.आई. (FSSAI), स्वच्छता मानकों और उद्योग आधार के पंजीकरण के साथ उन्नयन एवं नियमन के लिये पूंजी निवेश को समर्थन देता है। इस योजना के तहत विश्वसनीय व्यवसाय योजना तैयार करने के लिये कौशल प्रशिक्षण और हैंड होल्डिंग सपोर्ट भी प्रदान किया जाता है। 
  • इसके अतिरिक्त, किसान उत्पादक संगठनों (FPOs), स्वयं सहायता समूहों (SHGs) और उत्पादक कंपनियों (PCs) को औपचारिक रूप देने और विकसित करने के लिये पूंजी निवेश, सामान्य बुनियादी ढाँचागत सुविधाओं, जैसे- जन सुविधा केंद्र, ब्रांडिंग व मार्केटिंग के लिये सहायता भी प्रदान की जाती है।
  • युवाओं के बीच कृषि उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा ‘स्टूडेंट रेडी’ (ग्रामीण उद्यमिता जागरूकता विकास योजना) कार्यक्रम लागू किया गया है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य; a) व्यापार मोड के साथ प्रयोगात्मक शिक्षा; b) व्यावहारिक प्रशिक्षण/कौशल विकास प्रशिक्षण अर्थात् व्यवसाय के बिना अनुभवात्मक शिक्षा; c) ग्रामीण जागरूकता कार्य अनुभव; d) इंटर्नशिप/इन प्लांट ट्रेनिंग/औद्योगिक अटैचमेंट; और e) छात्रों को प्रोजेक्ट्स उपलब्ध कराना है।
  • कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय की एक और अनूठी योजना ‘राष्ट्रीय कृषि विकास योजना’ में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के कायाकल्प के लिये लाभकारी दृष्टिकोण शामिल है। इसका उद्देश्य कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे को सुदृढ़ बनाना है, ताकि वित्तीय सहायता की सुविधा तथा बिजनेस इन्क्यूबेशन को मज़बूती प्रदान करते हुए कृषि उद्यमिता और कृषि व्यवसाय को बढ़ावा दिया जा सके।
  • केंद्रीय क्षेत्र की योजना ‘प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना’ की उप-योजना के रूप में, स्कीम फॉर क्रिएशन ऑफ इन्फ्रास्ट्रक्चर एग्रो प्रोसेसिंग क्लस्टर्स का उद्देश्य; 1) उत्पादन क्षेत्रों के समीप खाद्य प्रसंस्करण के लिये आधुनिक बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना; 2) खेतों से लेकर उपभोक्ता तक एकीकृत और पूर्ण परिरक्षण अवसंरचना सुविधाएँ प्रदान करना; और 3) बेहतर आपूर्ति शृंखला के माध्यम से उत्पादकों/किसानों के समूहों को प्रोसेसर और बाज़ारों से जोड़कर प्रभावी बैकवर्ड और फॉरवर्ड लिंकेज स्थापित करना है।
  • एग्री-क्लीनिक और एग्री-बिजनेस सेंटर्स योजना का उद्देश्य किसानों को भुगतान के आधार पर या कृषि उद्यमी के व्यवसाय मॉडल, स्थानीय जरूरतों और किसानों के लक्षित समूहों के सामर्थ्य के अनुसार निःशुल्क सेवाएँ प्रदान करके सार्वजनिक विस्तार के प्रयासों को पूरा करना है। इस योजना के तहत, सरकार अब स्नातकों को कृषि या कृषि से जुड़े किसी भी विषय, जैसे- बागवानी, रेशम उत्पादन, पशु चिकित्सा विज्ञान, वानिकी, डेयरी, मुर्गी पालन और मत्स्य पालन आदि में स्टार्ट-अप प्रशिक्षण प्रदान कर रही है।
  • इसके अतिरिक्त, एमएसएमई मंत्रालय भी स्थानीय कच्चे माल का उपयोग कर घरेलू उत्पादों के निर्माण के लिये ग्रामीण, आदिवासी, कृषि और वन क्षेत्रों में (उद्यमिता विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए) एक कृषि एमएसएमई नीति पर कार्य कर रहा है।
  • साथ ही, कई निजी निगम, जैसे- सिनजेंटा, टाटा ट्रस्ट, रैबोबैंक, कुजा टेक्नोलॉजीज, आईडीबीआई, एनएस सेबी कृषि-स्टार्टअप को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
  • कृषि-उद्यमों और स्टार्ट-अप से विशेष रूप से ग्रामीण युवाओं के लिये न केवल रोजगार के नए अवसरों का सृजन होगा, बल्कि इससे किसानों की आय में भी वृद्धि होगी। हालाँकि, एक समावेशी और सतत कृषि-उद्यम के विकास के लिये एक मज़बूत परिवेश या सक्षम वातावरण के विकास पर बल दिये जाने की आवश्यकता है, ताकि एक ही मंच पर सभी प्रकार की सहायता सेवाएँ उपलब्ध कराई जा सकें।

निष्कर्ष 

यद्यपि हमारे पास कौशल और प्रशिक्षण प्रदान करने वाले संस्थानों का एक बड़ा नेटवर्क मौजूद है, फिर भी कृषि क्षेत्र और संबंधित गतिविधियों की विशिष्ट आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए कुछ नए कौशल तैयार करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिये, बाज़ार में मांग और अवसरों का विश्लेषण करने, बाज़ार की मूल्य श्रृंखला खाका तैयार करने, व्यवसाय के लेन-देन से संबंधित रिकॉर्ड तैयार करने, व्यवसाय योजना बनाने आदि सहित कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में व्यावसायिक कौशल प्रदान कर कृषि उद्यमिता क्षेत्र में एक कौशल युक्त पीढ़ी तैयार की जा सकती है। स्पष्ट रूप से ‘आत्मनिर्भर भारत’ का लक्ष्य तभी प्राप्त किया जा सकता है जब एक जीवंत ग्रामीण भारत उपस्थित हो और इसके लिये ‘कृषि’ से ‘कृषि उद्यमिता’ में बदलाव ही एकमात्र अनिवार्य शर्त है।

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