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चावल-गेहूँ की फसल की दोहरी समस्या

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : मुख्य फसलें- देश के विभिन्न भागों में फसलों का पैटर्न- सिंचाई के विभिन्न प्रकार एवं सिंचाई प्रणाली- कृषि उत्पाद का भंडारण, परिवहन तथा विपणन, संबंधित विषय और बाधाएँ)

संदर्भ

‘खाद्यान्न अधिशेष’ तथा ‘एकल-फसल (मोनो-क्रॉपिंग) में वृद्धि और फसल विविधीकरण में कमी’ जैसी समस्या का कारण गेहूँ व चावल की एकल कृषि को माना जाता है। हालाँकि, वर्तमान में गेहूँ उत्पादन में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जबकि चावल उत्पादन में अधिशेष की समस्या विद्यमान है। 

दोहरी समस्या की स्थिति 

चावल में अधिशेष की समस्या 

  • भारत ने वर्ष 2021-22 में 21.21 मिलियन टन, वर्ष 2022-23 में 22.35 मिलियन टन और 2023-24 में 16.36 मिलियन टन चावल का निर्यात किया। 
  • रिकॉर्ड शिपमेंट के बावजूद सरकारी गोदामों में चावल का स्टॉक 1 अगस्त को 45.48 मिलियन टन था जो अब तक का उच्चतम स्तर था।

गेहूँ उत्पादन में गिरावट 

  • गेहूँ का निर्यात वर्ष 2021-22 में 7.24 मिलियन टन से कम होकर वर्ष 2022-23 में 4.69 मिलियन टन और वर्ष 2023-24 में 0.19 मिलियन टन रह गया है। 
  • केंद्र सरकार ने मई 2022 में गेहूँ निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। 1 अगस्त को इसका केंद्रीय पूल स्टॉक 26.81 मीट्रिक टन था जो वर्ष 2022 (26.65 मीट्रिक टन) और वर्ष 2008 (24.38 मीट्रिक टन) के बाद सबसे कम था। 
  • सामान्यत: इस समय चावल का स्टॉक गेहूँ से कम होता है क्योंकि गेहूँ की कटाई और विपणन अप्रैल-जून के दौरान किया जाता है, जबकि चावल की फसल अक्तूबर से ही आती है। 

उत्पादन संबंधी मुद्दे 

चावल 

  • चावल का उत्पादन खरीफ (दक्षिण-पश्चिम मानसून) एवं रबी (शीत-वसंत) दोनों मौसमों में किया जाता है। साथ ही, इसकी खेती एक विस्तृत क्षेत्र में की जाती है। 
  • भारत के लगभग 16 राज्य 2 मीट्रिक टन या उससे अधिक चावल उत्पादन करते हैं। 
    • इसमें ‘दक्षिण में तेलंगाना व तमिलनाडु’ से लेकर ‘उत्तर में उत्तर प्रदेश व पंजाब’, ‘मध्य में छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश’, ‘पूर्व में पश्चिम बंगाल व असम’ और ‘पश्चिम में महाराष्ट्र व गुजरात’ शामिल हैं।
  • भारत में शीर्ष चावल उत्पादक राज्य क्रमश: पश्चिम बंगाल (15.95 लाख टन), उत्तर प्रदेश (15.64 लाख टन), पंजाब, तेलंगाना एवं ओडिशा हैं।

गेहूँ

  • गेहूँ की फसल का उत्पादन केवल रबी सीजन में ही होता है। साथ ही, केवल आठ राज्य ही 2 मीट्रिक टन से अधिक गेहूँ का उत्पादन करते हैं जो उत्तरी, मध्य व पश्चिमी भारत में केंद्रित हैं।
  • उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब व हरियाणा भारत के कुल गेहूँ उत्पादन में 76% से अधिक की हिस्सेदारी रखते हैं। 
  • चावल की तुलना में समय एवं भौगोलिक दृष्टिकोण से अधिक सीमित फसल होने के कारण गेहूँ का उत्पादन अपेक्षाकृत अधिक अस्थिर है।
    • भारत में शीर्ष गेहूँ उत्पादक राज्य क्रमश: उत्तर प्रदेश (34.46 लाख टन), मध्य प्रदेश (20.96 लाख टन), पंजाब, हरियाणा और राजस्थान हैं। 
  • चावल में मुख्य कारक सीमित पानी की उपलब्धता है जबकि जलवायु परिवर्तन के कारण गेहूँ की फसल शीतकाल की कम अवधि, गर्मी में वृद्धि एवं पूर्वानुमान में कमी होने के प्रति संवेदनशील हो गई है। 
  • नवंबर-दिसंबर (बुवाई एवं फसल विकास की अवधि) तथा मार्च (फसल में दाने बनने व भरने की अवस्था) के दौरान औसत से उच्च तापमान ने पिछले तीन वर्षों में गेहूँ उत्पादन को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है। 

उपभोग में अंतर 

  • भारत में गेहूँ उत्पादन संरचनात्मक चुनौतियों का सामना कर रहा है किंतु इसकी खपत में निरंतर वृद्धि हो रही है।
  • वर्ष 2022-23 के लिए आधिकारिक घरेलू व्यय सर्वेक्षण डाटा के अनुसार ग्रामीण भारत में प्रति व्यक्ति मासिक गेहूँ की खपत 3.9 किग्रा. और शहरी भारत में 3.6 किग्रा. है जो 1,425 मिलियन की आबादी के लिए लगभग 65 मीट्रिक टन है।
    • हालाँकि, चावल में ऐसी वृद्धिशील उपभोग प्रवृत्ति नहीं देखी गई है।  

आगे की राह 

  • बढ़ती खपत और भौगोलिक व जलवायु जनित उत्पादन चुनौतियों को देखते हुए दीर्घावधि में सरकार को गेहूँ की प्रति एकड़ उपज बढ़ाने और जलवायु-स्मार्ट किस्मों के प्रजनन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
  • चावल के मामले में अधिशेष की समस्या से निपटने के लिए सरकार को तात्कालिक रूप से सफेद गैर-बासमती चावल के निर्यात से प्रतिबंध हटाना चाहिए। 
  • वर्तमान में चावल-गेहूँ  के लिए अलग नीतियों का निर्माण अपरिहार्य है। ऐसे में नीति-निर्माताओं को इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। 
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