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भारतीय रक्षा विश्वविद्यालय की आवश्यकता

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र- 3: विभिन्न सुरक्षा बल और संस्थाएँ तथा उनके अधिदेश)

सन्दर्भ

  • भारतीय रक्षा विश्वविद्यालय (Indian Defense University : IDU ) पहली बार वर्ष 1967 में प्रस्तावित होने के 57 साल बाद और इसकी आधारशिला रखे जाने के 11 साल बाद भी अभी तक सक्रिय नहीं है।
  • दिसंबर 2017 में आई.डी.यू. विधेयक का मसौदा प्रधानमंत्री कार्यालय और कैबिनेट सचिवालय को सौंपे जाने के बाद से शायद ही कोई प्रगति हुई है।
  • इस संदर्भ में लंबे समय से प्रतीक्षित भारतीय रक्षा विश्वविद्यालय की अनुपस्थिति चिंताजनक है।

पृष्ठ्भूमि

  • एक स्वायत्त संस्थान के रूप में आई.डी.यू. की स्थापना को वर्ष 1980 में ‘सेठना समिति’ और वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध समीक्षा समिति (डॉ. के. सुब्रमण्यम की अध्यक्षता में) के साथ-साथ वर्ष 2001 में राष्ट्रीय सुरक्षा प्रणाली सुधार पर मंत्री समूह की रिपोर्ट द्वारा दृढ़ता से अनुशंसित किया गया था। ।
    • इनकी सिफारिशों के आधार पर मई 2010 में, गुड़गांव में आई.डी.यू. की स्थापना के लिए 'सैद्धांतिक' मंजूरी दी गई थी।
  • पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने वर्ष 2013 में भारतीय राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय(INDU) की आधारशिला हरियाणा के गुरुग्राम में रखी थी।
    • लेकिन इस विश्वविद्यालय में शिक्षा कार्यक्रम शुरू करने के लिए संसद के विधेयक पास करने की आवश्यकता है, जो कि अभी तक नहीं हो सका है।

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भारतीय राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालयके उद्देश्य :

  • सैन्य शिक्षा को एकीकृत करना जिससे विविध सैन्य प्रशिक्षण संस्थानों को एक छतरी के नीचे लाया जा सके और साथ ही संयुक्तता एवं सैद्धांतिक एकता को बढ़ावा दिया जा सके।
  • अंतःविषयक अनुसंधान और सहयोगात्मक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालयों और थिंक टैंकों के साथ जुड़ाव के माध्यम से नागरिक-सैन्य विभाजन को कम करना।
  • नीति निर्माताओं और सैन्य नेताओं को सूचनापूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करके, उभरते खतरों, प्रौद्योगिकी रुझानों और विकसित सुरक्षा परिदृश्य पर अनुसंधान को बढ़ावा देकर रणनीतिक सोच को आकार देना।

वर्तमान स्थिति

  • भारतीय रक्षा विश्वविद्यालय के प्रस्ताव को वर्ष 2010 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित किया गया था और मसौदा विधेयक को सार्वजनिक परामर्श के लिए अगस्त 2016 में ऑनलाइन रखा गया था, लेकिन तब से यह विधेयक अभी भी केंद्रीय मंत्रिमंडल और भारत की संसद से अनुमोदन की प्रतीक्षा कर रहा है। 
  • तत्कालीन रक्षा मंत्री अरुण जेटली और अन्य मंत्रियों के साथ व्यापक विचार-मंथन के बाद दिसंबर 2017 में संशोधित विधेयक को अंतिम रूप दिया गया और इसका नाम बदलकर भारतीय राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय से भारतीय रक्षा विश्वविद्यालय कर दिया गया था।
  • इसके बाद से प्रगति निराशाजनक रूप से धीमी रही है, विधेयक की वर्तमान स्थिति पर कोई आधिकारिक जानकारी उपलब्ध नहीं है

भारतीय रक्षा विश्वविद्यालय की आवश्यकता

  • भारत के सशस्त्र बलों द्वारा संचालित कई विश्व स्तरीय प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान पेशेवर प्रशिक्षण का एक समृद्ध और विशाल पारिस्थितिकी तंत्र बनाते हैं। 
    • लेकिन, उनके पास व्यापक एकीकृत व्यावसायिक सैन्य शिक्षा (PME) ढांचे और रणनीतिक सोच के लिए बहु-विषयक दृष्टिकोण का अभाव है। 
  • सशस्त्र बलों के पास डिग्री पाठ्यक्रमों के लिए विश्वविद्यालयों के साथ संबद्धता है, लेकिन यह इष्टतम समाधान नहीं है। 
  • आई.डी.यू. सैन्य एवं सिविल सेवाओं के सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारियों के साथ-साथ शिक्षाविदों के मिश्रण के साथ एक योग्य संकाय के माध्यम से उच्च सैन्य शिक्षा का एक केंद्रीय संस्थान प्रदान करके भारत की पी.एम.ई. प्रणाली में ऐसी कमियों को दूर करेगा। 
  • प्रमुख शक्तियों के विपरीत, भारत में अपने नागरिक और सैन्य अधिकारियों को रणनीति, भू-राजनीति और युद्ध लड़ने के प्रशिक्षण के लिए एक समर्पित तंत्र का अभाव है।
  • पाकिस्तान ने अपने सशस्त्र बलों के लिए दो विश्वविद्यालय बनाए हैं, जबकि चीन ने तीन विश्वविद्यालय बनाए हैं।  
  • ऑस्ट्रेलियाई रणनीतिक नीति संस्थान की एक रिपोर्ट में सैन्य और सुरक्षा संबंधों वाले 60 से अधिक चीनी विश्वविद्यालयों की सूची दी गई है, जिससे भारत को अपनी रणनीतिक तैयारी में और अधिक सुधार करने की आवश्यकता है।

आगे की राह

  • भारतीय रक्षा विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा से संबंधित विज्ञान और मानविकी दोनों विधाओं में विभिन्न प्रकार के अतिरिक्त विषयों की पेशकश करने की आवश्यकता होगी।
  • सरकार को नौकरशाही बाधाओं को दूर करके और मौजूदा समस्याओं को हल करके वास्तव में विश्व स्तरीय आई.डी.यू. के निर्माण में तेजी लानी चाहिए। 
  • लंबित बिल का तेजी से संसद से पास कर क्रियान्वयन करना और बिना किसी देरी के भारतीय रक्षा विश्वविद्यालय का निर्माण शुरू करना महत्वपूर्ण है। 
  • जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए विश्वविद्यालय के पूरा होने और पाठ्यक्रम शुरू करने के लिए एक पारदर्शी समयरेखा आवश्यक है। 
  • हालांकि युद्ध की प्रकृति स्थिर रहती है, लेकिन इसका बदलता चरित्र वर्तमान और भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक सैन्य शिक्षा और शैक्षणिक तैयारी पर जोर देता है।
  • जटिल चुनौतियों का सामना करने के लिए, अधिकारियों को एक अच्छी तरह से निर्मित व्यावसायिक सैन्य शिक्षा (पीएमई) के माध्यम से सशक्त बनाया जाना चाहिए, जो लंबे करियर अवधि में बदलते कार्यों और बढ़ती जिम्मेदारियों के अनुरूप अपनी क्षमताओं को विकसित कर सके।

निष्कर्ष 

  • यदि भारत वैश्विक उच्च पटल पर एक महत्वपूर्ण भूमिका चाहता है, तो इसके लिए यह जरूरी है कि भारतीय रक्षा विश्वविद्यालय पर ध्यान केंद्रित किया जाए और जल्द से जल्द विश्वविद्यालय की स्थापना की जाए। जब तक मौजूदा सरकार द्वारा इस मुद्दे पर महत्व नहीं दिया जाता, रक्षा अनुसंधान और संबंधित नीति अध्ययन वांछित तरीके से आगे नहीं बढ़ पाएगा। भारतीय रक्षा विश्वविद्यालय राष्ट्रीय महत्व का एक ऐसा संस्थान होगा जो आने वाले वर्षों तक राष्ट्रीय रक्षा और बाहरी सुरक्षा हितों की सेवा करेगा।
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