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ऑकस समझौता: हिंद प्रशांत क्षेत्र में शांति का अनूठा प्रयास

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र -2, विषय- द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

संदर्भ 

हाल ही में, संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने एक नए त्रिपक्षीय रक्षा समझौते ‘ऑकस’ (AUKUS) की घोषणा की है। इसके अंतर्गत अमेरिका और ब्रिटेन ऑस्ट्रेलिया को परमाणु ऊर्जा से संचालित पनडुब्बियों का बेड़ा तैयार करने में सहायता करेंगे। इस समझौते को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

 समझौते की विशेषता

  • क्वाड  की धारणा के विपरीत यह गठबंधन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्पष्ट रूप से घोषित सैन्य गठबंधन है।
  • इस समझौते का प्रमुख उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भागीदारों के रणनीतिक हितों की रक्षा करना है। उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती गतिविधियाँ वैश्विक समुदाय के लिये चिंता का विषय हैं।
  • अमेरिका द्वारा ऑस्ट्रेलिया को सैन्य परमाणु क्षमता हस्तांतरित करने का यह निर्णय सामरिक उद्देश्यों के लिये परमाणु सहयोग के विस्तार से कहीं अधिक है। इस समझौते से अमेरिका चीन को यह संदेश देना चाहता है कि यदि उसने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी आक्रामक गतिविधियों को नही रोका तो वह इस क्षेत्र के अन्य देशों के साथ भी ऐसे समझौते कर सकता है।
  • अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान से सैन्य वापसी के बाद उसकी वैश्विक नेता की छवि पर प्रश्नचिह्न लगा है। ऐसी स्थिति में अमेरिका इस समझौते के माध्यम से विश्व को यह संदेश देना चाहता है कि वह अभी भी विश्व-शक्ति है।
  • यह समझौता ऑस्ट्रेलिया एवं चीन के संबंधों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा, जो पहले से ही कठिन दौर से गुजर रहे हैं। ध्यातव्य है कि चीन ऑस्ट्रेलिया के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदारों में से एक है। वर्तमान में दोनों देशों के मध्य लगभग 200 बिलियन डॉलर का व्यापार होता है।

समझौते के प्रति चीन का दृष्टिकोण

  • चीन ने इस समझौते के प्रति चिंता व्यक्त की है। उसका मानना है कि इस प्रकार के समझौते उसे केंद्र में रखकर तथा उसके हितों को प्रभावित करने के लिये किये जा रहे हैं।
  • चीन ने ऐसे समझौतों को क्षेत्रीय शांति एवं स्थिरता के लिये खतरा तथा हथियारों की होड़ को बढ़ावा देने वाला माना है।
  • गौरतलब है कि चीन के पास परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियाँ हैं। इनमें परमाणु मिसाइलों को भी लॉन्च करने की क्षमता है। ‘ऑकस’ समझौते के अंतर्गत ऑस्ट्रेलिया को परमाणु ऊर्जा से संचालित पनडुब्बियाँ प्राप्त होने के बाद हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उसकी नौसैनिक क्षमता में वृद्धि होगी।

      समझौते से फ्रांस की नाराजगी

      • अमेरिका एवं ब्रिटेन के साथ ‘ऑकस’ समझौता होने के बाद ऑस्ट्रेलिया ने फ्रांस के साथ वर्ष 2016 में किये गए 12 पारंपरिक पनडुब्बियों के समझौते को रद्द कर दिया है। फ्रांस ने ऑस्ट्रेलिया के इस कदम को निराशाजनक बताते हुए इसे स्वयं के प्रति विश्वासघात कहा है।
      • फ्रांस ने समझौते के प्रति विरोध जताते हुए अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से अपने राजदूतों को वापस बुलाने का निर्णय लिया है।

        समझौते के प्रति भारत का दृष्टिकोण

        भारत के लिये फ्रांस एक सहयोगी मित्र तथा ऑस्ट्रेलिया एक महत्त्वपूर्ण भागीदार है। ऐसी स्थिति में भारत के लिये आवश्यक है कि वह संतुलित दृष्टिकोण अपनाए। संभवतः इसी कारण भारत ने समझौते के संदर्भ में अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है।

        भारत में परमाणु संचालित पनडुब्बी

        • भारत विश्व के उन छह देशों में शामिल है, जिनके पास परमाणु संचालित पनडुब्बियाँ हैं। इसके अतिरिक्त अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस तथा चीन के पास भी ऐसी पनडुब्बियाँ हैं।
        • भारत ने वर्ष 1987 में सोवियत संघ से k-43 चार्ली क्लास परमाणु स्वचालित पनडुब्बी प्राप्त की थी। भारतीय नौसेना में इसे आईएनएस चक्र नाम दिया गया। इसने वर्ष 1991 तक भारतीय नौसेना को अपनी सेवाएँ दी थी।
        • भारत ने रूस से वर्ष 2012 में एक और परमाणु संचालित पनडुब्बी को ली पर लिया था। इसे नौसेना में आईएनएस चक्र 2 नाम दिया गया।
        • आईएनएस अरिहंत परमाणु शक्ति चालित भारत की प्रथम पनडुब्बी है। इसका जलावतरण जुलाई 2009 में किया गया था। वर्ष 2018 में परमाणु हथियार लॉन्च करने की क्षमता का प्रदर्शन करने के बाद इसे रणनीतिक सहायक नयूक्लिर सबमरीन के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
        • आईएनएस अरिहंत भारत के परमाणु त्रय को पूरा करती है अर्थात देश को मीन, विमान और पनडुब्बी से परमाणु मिसाइलों को लॉन्च करने की क्षमता प्राप्त है।
        • आईएनएस अरिहंत श्रेणी की दूसरी पनडुब्बी आईएनएस अरिघात को भी जल्द ही नौसेना में शामिल किये जाने की संभावना है।

                  निष्कर्ष

                  हिंद-प्रशांत क्षेत्र व्यापारिक एवं रणनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। ऐसी स्थिति में आवश्यक है कि इस क्षेत्र में शांति बनी रहे। चूँकि चीन दक्षिण चीन सागर पर अपना अधिकार मानता है तथा इस क्षेत्र में अनावश्यक हस्तक्षेप करता है। अतः इस क्षेत्र में चीन के अनावश्यक हस्तक्षेप को रोकने की दिशा में यह समझौता महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है।

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