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समुद्री संचार मार्गों से जुड़ी चिंताएँ

(प्रारम्भिक परीक्षा : राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामायिक घटनाएँ; मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र – 2 : भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)

पृष्ठभूमि

प्राचीनकाल से ही विभिन्न सभ्यताओं और देशों के मध्य वाणिज्यिक आदान-प्रदान की प्रक्रिया ने वैश्विक सम्बंधों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है, जिसने राष्ट्रों के निर्वाह और समुद्री राजनीति पर उल्लेखनीय प्रभाव डाला है।

पूर्वी गलियारा तथा समुद्री संचार मार्ग (Sea Lanes of Communication -SLOCs)

  • पूर्वी गलियारा वैश्विक व्यापार के लिये समुद्री मार्ग का लम्बा और व्यस्त नेटवर्क है जो उत्तरी अमेरिका, पश्चिमी यूरोप और एशिया के प्रमुख औद्योगिक केंद्रों को जोड़ता है।   
  • इस गलियारे में किसी भी प्रकार का व्यवधान वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिरता को गम्भीर रूप से प्रभावित कर सकता है। इस मार्ग में दुनिया के कुछ सबसे संवेदनशील समुद्री संचार मार्ग शामिल हैं, जिनमें दक्षिण चीन सागर जैसे सम्भावित महत्त्वपूर्ण फ्लैश प्वाइंट भी हैं। वर्षों से, इन एस.एल.ओ.सी पर दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में तनाव की स्थिति बनी हुई है।
  • एस.एल.ओ.सी. बंदरगाहों के मध्य प्राथमिक समुद्री मार्गों को संदर्भित करता है, जिनका उपयोग व्यापार के लिये तथा रसद सामग्री को पहुँचाने के लिये किया जाता है। इनका उपयोग विशेष रूप से नौसेना के संचालन के लिये भी किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि युद्ध के समय ये मार्ग खुले हैं या बंद।
  • दक्षिण पूर्व एशिया में तीन प्रमुख एस.एल.ओ.सी. मलक्का, लोम्बोक और सुंडा जलडमरूमध्य हैं।

समुद्री मार्गों से सम्बंधित चिंताएँ

  • पिछले 50 वर्षों में शिपिंग लागत में लगातार गिरावट आई है, जिसने विनिर्माण तथा खुदरा क्षेत्र के प्रसार को व्यापक स्तर पर प्रोत्साहित किया है। वर्तमान में राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के मध्य सस्ते और कुशल समुद्री मार्गों ने समुद्री परिवहन को प्रतिस्पर्धा का केंद्र बिंदु बना दिया है।
  • प्रमुख राज्य अभिकर्ता (स्टेट एक्टर्स) मुख्य रूप से वाणिज्यक गतिविधियों के लिये इन एस.एल.ओ.सी. पर निर्भर होते हैं। साथ ही, इन मार्गों के रणनीतिक महत्त्व के कारण प्रतिस्पर्धा की स्थिति बनी रहती है।
  • भविष्य में इन समुद्री मार्गों के संसाधनों पर हितधारकों के रूप में महाशक्तियों की लगातार बढ़ती संख्या तथा उनके मध्य टकराव प्रतिस्पर्धा से आगे बढ़कर एक युद्ध का रूप ले सकती है।
  • समुद्री मार्ग के सम्बंध में राष्ट्रों द्वारा कथित भूस्थैतिक खतरों से निपटने के लिये समुद्री कानून अस्पष्ट हैं। इसलिये समुद्री रणनीतिक खतरों से निपटने के लिये राष्ट्रों को अपनी नौसैनिक क्षमताओं को विकसित करने या एक मज़बूत सुरक्षा गठजोड़ का निर्माण करना पड़ता है।

आगे की राह

  • हाल के वर्षों में, जानबूझकर समुद्री स्थिरता के उल्लंघन के मामलों में वृद्धि देखी गई है। इसलिये समुद्री सुरक्षा को नियंत्रित करने वाले कानूनी ढाँचे में कमियों का पता लगाकर उन्हें पूरा करना चाहिये। साथ ही, नियम आधारित वैश्विक व्यवस्था में व्यवधान के सम्भावित जोखिमों का आकलन करना भी आवश्यक है।
  • समुद्री कानून सार्वजानिक अंतर्राष्ट्रीय कानून का हिस्सा होते हैं, जिनका उद्देश्य तटीय देशों तथा उनके प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग एवं संरक्षण के लिये भौगोलिक अधिकार क्षेत्र और कर्तव्यों को सुनिश्चित करना है।

निष्कर्ष

समुद्री मार्गों की सुरक्षा से सम्बंधित कई समस्याएँ हैं, जैसे कि जहाजों पर हमले, नौवहन तक पहुँच में बाधा, दुर्घटना के जोखिम और पर्यावरण सम्बंधी चिंताएँ। व्यापार और कनेक्टिविटी में वृद्धि तथा वैश्वीकरण पर बढ़ती निर्भरता के कारण समुद्री मार्गों की समग्र सुरक्षा के लिये वैश्विक सहयोग आवश्यक है।

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