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विकास वित्तीय संस्थान

(प्रारंभिक परीक्षा : आर्थिक और सामाजिक विकास ; मुख्य परीक्षा. सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3 , विषय - सरकारी बजट, भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय) 

संदर्भ

  • हाल ही में, सरकार द्वारा बजट 2021-22 के तहत 20000 करोड़ रूपये की लागत से एक विकास वित्तीय संस्थान (Development Financial Institute - DFIs) स्थापित करने की बात की गई है।
  • दीर्घकालिक कर्ज देने वाला यह नया वित्तीय संस्थान राष्ट्रीय अवसंरचना विकास कार्यक्रम के तहत वर्ष 2025 तक अनुमानित 111 लाख करोड़ रूपये की वित्तीय ज़रूरतों को देखते हुए महत्वपूर्ण होगा। 

प्रमुख बिंदु

  • वर्ष 2021 - 22 का केंद्रीय बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री ने विशेषज्ञों और पेशेवरों द्वारा संचालित किये जाने वाले डी.एफ.आई. के गठन की बात की, जो अवसंरचना परियोजाओं के लिये कर्ज प्रदान करने के साथ ही दूसरी अन्य संस्थाओं को भी इसके लिये उत्प्रेरित करेगा।
  • ध्यातव्य है कि राष्ट्रीय अवसंरचना विकास कार्यक्रम (नेशनल इंफ्रास्टक्चर पाइपलाइन - NIP) के तहत लगभग 7000 परियोजनायें चिन्हित की गई हैं, जिनमें वर्ष 2020 से 2025 के बीच 111 लाख करोड़ रूपये निवेश की योजना है।
  • एन.आई.पी. के तहत देश भर में विश्व स्तरीय आधारभूत ढाँचा तैयार किया जायेगा, जिससे सभी नागरिकों की जीवनशैली में सुधार आने की संभावना है। यह वित्त वर्ष 2025 तक पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के भारत के लक्ष्य की दिशा में काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस कंपनी लिमिटेड (आई.आई.एफ.सी.एल.) को बुनियादी संरचना के त्वरित वित्तपोषण के लिये स्थापित किये जा रहे नये विकास वित्तीय संस्थान(डी.एफ.आई.) में मिलाया जा सकता है।
  • ध्यातव्य है कि आवश्यक पूँजी उपलब्ध कराने, परियोजनाओं की रेटिंग बढ़ाने के लिये एक विकास वित्तीय संस्थानकी आवश्यकता है और पिछले बजट भाषणा में ढांचागत परियोजनाओं के वित्त पोषण के लिये एक विकास वित्तीय संस्थानबनाने का प्रस्ताव किया गया था।
  • ध्यातव्य है कि भारतीय रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2017 में यह निर्दिष्ट किया था कि इस प्रकार के विशिष्ट बैंक न केवल तेज़ी से विकसित होती भारतीय अर्थव्यवस्था के दीर्घकालिक वित्तपोषण से जुड़ी आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं, बल्कि वर्तमान समय में दीर्घकालिक वित्तपोषण में विद्यमान अंतर को भी भर सकते हैं।
  • अतः यदि सरकार देश की सामाजिक, सांस्कृतिक, क्षेत्रीय, ग्रामीण एवं पर्यावरणीय समस्याओं को हल करना चाहती है तो डी.एफ.आई. की अवधारणा को पुनर्जीवित करना आवश्यक है।

क्या होते हैं डी.एफ़.आई?

  • विकासशील देशों में विकास परियोजनाओं के आवश्यक वित्तीयन के लिये विशेष रूप से स्थापित संस्थानों को ‘विकास वित्त संस्थान’ कहा जाता है।
  • राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय विकास निधि प्रमुखतः इन बैंकों की पूंजी का स्रोत होते हैं।
  • ये संस्थान वाणिज्यिक बैंकों के परिचालन मानदंडों के बीच एक संतुलन स्थापित करते हैं, जिसमें एक ओर वाणिज्यिक बैंक और दूसरी ओर विकास से जुड़ी ज़िम्मेदारियाँ होती हैं।
  • डी.एफ.आई. वाणिज्यिक बैंकों की तरह ऋणदाता होने के साथ ही अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के विकास में सहायक के रूप में भी कार्य करते हैं। 

डी.एफ़.आई का इतिहास

  • उदारीकरण से पहले के दौर में भारत में भी भारत में डी.एफ.आई. थे, जो मुख्य रूप से देश में उद्योगों के विकास में लगे हुए थे।
  • विकास वित्तीय संस्थानों (डी.एफ.आई.) को उनके नुकसान को कम करने के लिये सरकार के समर्थन के साथ स्थापित किया गया था, साथ ही कम लागत वाले ब्याज दर पर उधार देने के लिये कम जोखिम वाले संसाधन उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता भी थी, जो कि जोखिमपूर्ण परियोजनाओं के लिये बाजार द्वारा मांग की गई थी।
  • विकास के प्रारंभिक वर्षों में इन संस्थानों ने अच्छा काम किया। बुनियादी ढांचे के निर्माण और औद्योगीकरण की प्रक्रिया तेज हो गई। परियोजनाओं की जरूरतों के अनुसार वित्तीय प्रणाली में काफी सुधार किया गया था।
  • आई.सी.आई.सी.आई. और आई.डी.बी.आई. शुरूआती डी.एफ.आई. थे। यहाँ तक कि देश की सबसे पुरानी वित्तीय संस्था आई.एफ.सी.आई. लिमिटेड ने भी डी.एफ.आई. के रूप में काम किया है।
  • भारत में, पहला डी.एफ.आई. वर्ष 1948 में औद्योगिक वित्त निगम (आई.एफ.सी.आई.) की स्थापना के साथ चालू हुआ था।
  • इसके बाद, भारतीय औद्योगिक ऋण और निवेश निगम (आई.सी.आई.सी.आई.) की स्थापना वर्ष 1955 में विश्व बैंक के समर्थन से की गई थी।
  • भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (आई.डी.बी.आई.) वर्ष 1964 में बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं और उद्योग के दीर्घकालिक वित्तपोषण को बढ़ावा देने के लिये अस्तित्व में आया।
  • UTI, NABARD, EXIM बैंक, SIDBI, NHB, IIFCL आदि अन्य प्रमुख डी.एफ.आई. हैं। 

डी.एफ़.आई के प्रकार

डी.एफ.आई. को मुख्य रूप से अखिल भारतीय या राज्य / क्षेत्रीय स्तर के संस्थानों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, जो ऑपरेशन की भौगोलिक कवरेज पर निर्भर करते हैं।

कार्यात्मक रूप से, अखिल भारतीय संस्थानों को इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • दीर्घावधिक ऋण प्रदाता संस्थान (टर्म-लेंडिंग इंस्टीट्यूशंस) जैसे IFCI Ltd., IDBI, IDFC Ltd., IIBI Ltd. आदि विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों के लिये दीर्घावधिक वित्त प्रदान करते हैं।
  • पुनर्वित्त संस्थान जैसे NABARD, SIDBI, NHB आदि बैंकिंग के साथ-साथ कृषि, एस.एस.आई. और आवास क्षेत्रों के लिये गैर-बैंकिंग मध्यस्थों को पुनर्वित्त प्रदान करते हैं।
  • सेक्टर-विशिष्ट / विशिष्ट संस्थान जैसे EXIM Bank, TFCI Ltd., REC Ltd., HUDCO Ltd., IREDA Ltd., PFC Ltd., IRFC Ltd. आदि।
  • निवेश संस्थान जैसे LIC, UTI, GIC, IFCI वेंचर कैपिटल फंड लिमिटेड, ICICI वेंचर फंड्स मैनेजमेंट कंपनी लिमिटेड आदि। राज्य / क्षेत्रीय स्तर के संस्थान एक अलग समूह हैं और इसमें विभिन्न SFC, SIDCs और NEDFi लिमिटेड शामिल हैं।
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