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दूरगामी कर उपाय

(प्रारम्भिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3 –आर्थिक विकास)

संदर्भ

  • अमेरिका ने अपने हालिया प्रस्ताव में अमेरिकी निगमों द्वारा अर्जित विदेशी आय पर वैश्विक न्यूनतम कर लगाने की माँग की है।
  • प्रस्ताव का उद्देश्य संभवतः अमेरिकी कंपनियों को अमेरिकी कॉर्पोरेट कर की दर में वृद्धि के कारण अपनी संरचनाओं में बदलाव हेतु हतोत्साहित करना है।
  • वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर के लिये अमेरिका का दबाव भारत की मदद कर सकता है, लेकिन यह अंतरअंतर्राष्ट्रीय असहमति का कारण भी बन सकता है।

प्रस्ताव

  • आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organisation for Economic Co-operation and Development - OECD) के पिलर टू योजना (Pillar Two Blueprint) का प्रस्ताव था कि शेष आधार क्षरण और लाभ स्थानातंरण (Base Erosion and Profit Shifting - BEPS) जैसे मुद्दों को नियंत्रित करना और क्षेत्राधिकारों को कर वापस का अधिकार प्रदान करना।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा सामने रखे गए नवीनतम प्रस्ताव को देखते हुए, इस कदम का उद्देश्य 10% से अधिक, संभवतः 15% तक न्यूनतम प्रभावी कराधान प्राप्त करना है।
  • इसका उद्देश्य कर प्रोत्साहनों को कम करना और यह सुनिश्चित करना है कि कंपनियाँ अन्य वाणिज्यिक लाभों के आधार पर किसी विशेष देश का चुनाव करें।
  • प्रभावी न्यूनतम कर की दर को छोड़कर, प्रस्ताव पिलर टू के समान है,जबकि ओ.ई.सी.डी. 10-12% की दर पर विचार कर रहा था, यू.एस. ने 21% की दर का प्रस्ताव रखा।

अमेरिकी रुख

  • अमेरिका अब न्यूनतम कर दर के लिये 15% की दर पर चर्चा कर रहा है, इस तथ्य के बावजूद कि अगर दर बहुत कम है तो उसे कॉन्ग्रेस (अमेरिकी संसद) का समर्थन हासिल करने में कठिनाई हो सकती है।
  • 15% की दर पर भी, यह स्पष्ट नहीं है कि आयरलैंड सहमत होगा या नहीं। इस की सीमांत दर5% दी गई है, जिससे यूरोपीय संघ में 15% की दर को व्यापक रूप से अपनाने पर प्रभाव पड़ रहा है।

भारत की स्थिति और पिलरटू

  • भारत पिलरटू चर्चा का हिस्सा रहा है और उसने इस प्रस्ताव पर सैद्धांतिक रूप से आपत्ति दर्ज नहीं की है।
  • यह प्रस्ताव, अमेरिकी कंपनियों के लिये बढ़े हुए कर बिल के साथ भारतीय राजस्व विभाग को लाभ प्रदान कर सकता है।
  • कर विभाग को 10% की दर से भी लाभ हो सकता है क्योंकि प्रस्ताव भारतीय कंपनियों द्वारा स्थापित अपतटीय संरचनाओं को कवर करेगा।
  • पिलरटू,नियंत्रित विदेशी निगम नियमों के एक समूह के रूप में कार्य करता है ।उदाहरण के लिये, यदि एक भारतीय मुख्यालय वाली बहुराष्ट्रीय निगम (MNC) की सिंगापुर या नीदरलैंड में एक इकाई है,जिसके माध्यम से वैश्विक संचालन किया जाता है, और यदि वैश्विक परिचालन से इस की आय पर 10% या 15% की प्रभावी दर से कर नहीं लगाया जाता है, तो इस पर भारत में कर लगाया जा सकता है।
  • 2020 की ‘स्टेट ऑफ टैक्स जस्टिस रिपोर्ट’ में कहा गया है कि भारत को अपतटीय संरचनाओं के उपयोग के कारण कर राजस्व में $ 10 बिलियन से अधिक का नुकसान होता है।विशेष रूप से मॉरीशस, सिंगापुर और नीदरलैंड के माध्यम से भारतीय निवासियों द्वारा किये गए निवेश से।
  • यह भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्रकाशित वर्ष 2000 से 2021 तक के विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (ODI) डेटा द्वारा समर्थित है ।जहाँ इस अवधि के लिये संचयी ओ.डी.आई.मुख्य रूप से सिंगापुर, मॉरीशस, यू.एस., नीदरलैंड और यूनाइटेड किंगडम के माध्यम से चला गया।
  • स्टार्ट-अप और बड़े भारतीय समूह आमतौर पर वैश्विक संचालन के लिये अपतटीय संरचनाओं का उपयोग करते हैं । इस तरह के संचालन से राजस्व अक्सर अपतटीय बनाए रखा जाता है और भारत को प्रत्यावर्तित नहीं किया जाता है।
  • कर लाभ ऐसी संरचनाओं को प्रोत्साहित करते हैं, जिसके कारण भारत में ऐसी आय पर करों का भुगतान नहीं किया जाता है।
  • एक बार इन प्रस्तावों के लागू हो जाने के बाद, भारतीय कंपनियों को अपने अपतटीय ढाँचे पर इस हद तक अतिरिक्त कर का भुगतान करना होगा कि कर की प्रभावी दर वैश्विक न्यूनतम कर दर से कम हो।

अन्य प्रमुख कारक

  • कर प्रोत्साहनों के निष्प्रभावी होने के साथ, देशों को अन्य कारकों पर प्रतिस्पर्धा करनी पड़ सकती है,जैसे बेहतर नियामक व्यवस्था, व्यापार करने में आसानी, वैश्विक प्रतिभा तक पहुँचआ दि।
  • अमेरिकी प्रस्ताव इंगित करता है कि देश वैश्विक न्यूनतम कर दर पर तेज़ी से आम सहमति हासिल करने के लिये ओ.ई.सी.डी.पर जोर दे रहा है, जिसके अभाव में अमेरिका अपने घरेलू कानून संस्करण को 21% की दर से पिलरटू (जो अब15% हो सकता है) को लागू करने का प्रस्ताव करता है।
  • कई देशों ने वैश्विक न्यूनतम कर की दर के लिये एक अलग दृष्टिकोण अपनाया है। जबकि फ्रांस और जर्मनी ने इसका समर्थन किया है।

चिंताएँ

  • यूरोपीय संघ ने संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा प्रस्तावित उच्चदर के संबंध में चिंता व्यक्त की है।
  • यूरोपीय देशों ने कहा है कि प्रस्तावित प्रस्ताव उनकी कर संप्रभुता का उल्लंघन करता है और अनुचित कर प्रतिस्पर्धा के खिलाफ लड़ाई, प्रतिस्पर्धी कर प्रणालियों के खिलाफ लड़ाई नहीं बननी चाहिये।
  • यह देखते हुए कि अमेरिका अब 15% की दर पर जोर दे रहा है, पिलरटू का भाग्य इस बात पर निर्भर करेगा कि यह प्रस्ताव अन्य देशों को स्वीकार्य है या नहीं।

निष्कर्ष

अमेरिका 15% दर के आस पास वार्ता को समाप्त करने के लिये उत्सुक है, जिससे भारत को भी फायदा होना चाहिये। संभवतः, सर्वसम्मति प्राप्त करने में शेष बाधाएँ पिलर वन के मुद्दे हैं। विदित है कि अर्थव्यवस्थाएँ कोविड-19 महामारी के बीच संघर्ष कर रही हैं, ऐसे में व्यापार और आर्थिक गति विधियों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता को कर आवंटन पर असहमति पर प्राथमिकता दी जानी चाहिये ।एक कर-संबंधी व्यापार युद्ध या एक तरफा करारोपण की खाई वैश्विक औरराष्ट्रीय दोनों अर्थव्यवस्थाओं को और नुकसान पहुंचा सकती है। 

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organisation for Economic Co-operation and Development - OECD)

  • स्थापना - 16 अप्रैल 1948 (OEEC)
  • संशोधन - सितंबर 1961 (OECD)
  • मुख्यालय - पेरिस, फ्रांस
  • प्रकार – अंतर सरकारी संगठन
  • सदस्य - 38 देश
  • आधिकारिक भाषा – अंग्रेजी एवं फ्रेंच
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