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सी.बी.आई. को सामान्य सहमति

(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान)

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान)

संदर्भ 

पश्चिम बंगाल सरकार ने 16 नवंबर, 2018 के बाद राज्य में अपराधों की जाँच करने के लिए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation : CBI) के अधिकार क्षेत्र को लेकर अनुच्छेद 131 के तहत सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। पश्चिम बंगाल सरकार ने उक्त तिथि के पश्चात केंद्रीय एजेंसी से सामान्य सहमति वापस ले ली थी।

डी.एस.पी.ई. अधिनियम और राज्य सरकार की सामान्य सहमति

  • सी.बी.आई. दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (Delhi Special Police Establishment : DSPE) अधिनियम, 1946 के द्वारा शासित है। 
    • इस अधिनियम के तहत जाँच एजेंसी को किसी राज्य विशेष में अपराध की जाँच करने से पहले राज्य सरकारों की सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता होती है।
  • राज्य सरकार की सहमति के बिना सी.बी.आई. उस राज्य की सीमाओं के भीतर अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकती है। 
    • इसके विपरीत राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (National Investigation Agency : NIA) का अधिकार क्षेत्र पूरे भारत में है।

क्या है सामान्य सहमति

  • किसी राज्य सरकार द्वारा सी.बी.आई. को दी गई सहमति दो रूपों में हो सकती है : 
    • मामला-विशिष्ट सहमति
    • सामान्य सहमति
  • सामान्य सहमति सी.बी.आई. को राज्यों के भीतर निर्बाध रूप से काम करने की अनुमति देती है।
    • एक बार राज्य के सहमति देने के बाद सी.बी.आई. को उस राज्य के पुलिस अधिकारी का दर्जा प्राप्त होता है। 
  • इसके विपरीत यदि सी.बी.आई. के पास राज्य सरकार की सामान्य सहमति नहीं है तो उसे मामले-दर-मामले के आधार पर सहमति के लिए आवेदन करना आवश्यक है।
    • ऐसे में सहमति दिए जाने से पहले सी.बी.आई. राज्य में कोई कार्रवाई नहीं कर सकती है।

सामान्य सहमति का वापस लिया जाना 

  • सामान्य सहमति वापस लेने की स्थिति में सी.बी.आई. उस राज्य सरकार की पूर्व अनुमति के बिना राज्य में केंद्र सरकार के अधिकारियों या निजी व्यक्तियों से जुड़ा कोई भी नया मामला दर्ज नहीं कर सकेगी।
    • हालाँकि सी.बी.आई. राज्य में सामान्य सहमति वापस लेने से पूर्व पंजीकृत मामलों की जाँच जारी रख सकती है।
    • राज्य की सहमति के बिना सी.बी.आई. द्वारा अपनी शक्ति का प्रयोग संघवाद के सिद्धांत के उल्लंघन के साथ ही राज्य पुलिस के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप भी है। 

सामान्य सहमति वापस लेने वाले राज्यों की सूची 

  • पंजाब
  • झारखंड
  • केरल
  • राजस्थान
  • छत्तीसगढ़
  • पश्चिम बंगाल
  • मिजोरम
  • तेलंगाना
  • मेघालय 
  • तमिलनाडु

सामान्य सहमति पर कलकत्ता उच्च न्यायालय का निर्णय 

  • राज्य द्वारा सामान्य सहमति वापस लेने से सी.बी.आई अनिवार्य रूप से एक राज्य के भीतर शक्तिहीन हो जाती है।  
  • इस संबंध में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने अवैध कोयला खनन और मवेशी तस्करी के एक मामले में निर्णय दिया कि केंद्रीय एजेंसी को दूसरे राज्य में केंद्र सरकार के कर्मचारी की जाँच करने से नहीं रोका जा सकता है।
  • उच्च न्यायालय  के अनुसार देश भर में भ्रष्टाचार के मामलों को समान रूप से माना जाना चाहिए। 
    • केंद्र सरकार के कर्मचारियों को इस आधार पर  जाँच से छूट नहीं दी जा सकती है  कि उनके कार्यालय उन राज्यों में स्थित हैं जिन्होंने सामान्य सहमति वापस ले ली है। 
  • न्यायालय ने टिपण्णी की कि सामान्य सहमति को वापस लेना और इसके प्रभाव उन मामलों में लागू होंगे जहाँ विशेष रूप से राज्य सरकार के कर्मचारी शामिल थे।

निष्कर्ष 

कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुरक्षित रख लिया है। ऐसे में वर्तमान स्थिति में सी.बी.आई. कुछ  मामलों में जाँच जारी रखने के लिए कलकत्ता उच्च न्यायालय के निर्णय का उपयोग कर सकती है।

सी.बी.आई. : प्रमुख तथ्य

  • भारत सरकार ने 1 अप्रैल, 1963 को एक संकल्प पारित कर निम्नलिखित प्रभागों के साथ केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो का गठन किया :
    • अन्वेषण तथा भ्रष्टाचार निरोधक प्रभाग
    • तकनीकी प्रभाग
    • अपराध अभिलेख और सांख्यिकी प्रभाग
    • अनुसंधान प्रभाग
    • विधि तथा सामान्य प्रभाग
    • प्रशासन प्रभाग
  • सी.बी.आई. सांविधिक निकाय नहीं है क्योंकि इसे संसद के किसी अधिनियम द्वारा स्थापित नहीं किया गया है। सी.बी.आई. आर्थिक अपराधों, विशेष अपराधों, भ्रष्टाचार के मामलों और अन्य मामलों की जाँच करती है। सी.बी.आई. कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आता है।
  • राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) और राष्ट्रीय आसूचना ग्रिड (नैटग्रिड) आदि की तरह सी.बी.आई. को भी सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम से छूट प्राप्त है। यह इंटरपोल सदस्य देशों की ओर से जाँच का समन्वय करने वाली भारत की नोडल पुलिस एजेंसी भी है।
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