संदर्भ
एक नए आनुवंशिक अध्ययन ने यूरोप एवं एशिया में विगत 37,000 वर्षों में 214 मानव रोगों के उदय व प्रसार का नक्शा तैयार किया है।
हालिया शोध के बारे में
- शोध : कोपेनहेगन विश्वविद्यालय के आनुवंशिक वैज्ञानिकों डॉ. एस. के. विलर्सलेव एवं मार्टिन सिकोरा के नेतृत्व में
- स्रोत : 1,313 प्राचीन मानव अवशेषों (अस्थियों व दांतों) के अध्ययन द्वारा
- खोज : इन अवशेषों से प्राप्त डी.एन.ए. (आनुवंशिक सामग्री) के आधार पर, वैज्ञानिकों ने हजारों वर्ष पूर्व मानवों को प्रभावित करने वाले रोगों की पहचान की।
- उद्देश्य : यह अध्ययन न केवल बीमारियों की उत्पत्ति को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि समय के साथ महामारियों ने कैसे समाजों को प्रभावित किया।
शोध के निष्कर्ष
- प्राचीन शिकारी-संग्रहकर्ताओं में रोग
- सबसे पुराने अवशेष ‘शिकारी-संग्रहकर्ताओं’ (हंटर-गैदरर्स) के थे।
- इनके अस्थियों एवं दांतों में हेपेटाइटिस बी (यकृत में सूजन पैदा करने वाला वायरस), हर्पीस वायरस और हेलिकोबैक्टर पाइलोरी (पेट में रहने वाला जीवाणु) जैसे रोगजनकों के निशान मिले।
- इससे पता चलता है कि मानवों को प्राचीन काल से ही संक्रामक रोगों का सामना करना पड़ रहा था।
- ऐतिहासिक प्रभाव : यह शोध बताता है कि लगभग 4,500 साल पहले खानाबदोशों ने एशिया से यूरोप की ओर विस्तार किया। उनके साथ आए रोग (जैसे- प्लेग) ने यूरोपीय किसानों एवं शिकारी-संग्रहकर्ताओं को प्रभावित किया, जिनमें इन रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता नहीं थी। इससे उनकी आबादी में कमी आई और खानाबदोशों को यूरोप में फैलने में मदद मिली।
- प्लेग का उदय
- प्लेग (ब्लैक डेथ) का कारण बनने वाला यर्सिनिया पेस्टिस (Yersinia pestis) लगभग 5,000 वर्ष पूर्व मानवों में तेजी से फैला।
- शुरुआत में वैज्ञानिकों को उम्मीद थी कि यह रोग 11,000 वर्ष पूर्व लोगों द्वारा पशुपालन की शुरूआत के समय फैला होगा।
- हालाँकि, शोध में पाया गया कि यह रोग बाद में लगभग 6,000 वर्ष पहले रूस एवं एशिया के खानाबदोश (नोमैड्स) जनजातियों में फैला।
- खानाबदोशों और पशुपालन का प्रभाव
- खानाबदोश जनजातियाँ बड़े पैमाने पर पशुओं का पालन करती थीं और इन रोगों के लिए अधिक संवेदनशील थीं।
- वैज्ञानिकों का मानना है कि उनके पशु चूहों एवं अन्य जंगली जानवरों से रोगजनकों को ग्रहण करते थे।
- इन खानाबदोशों के विस्तार के साथ रोगजनक भी एशिया एवं पूर्वी यूरोप के घास के मैदानों में फैल गए। एक ही कब्र में कई व्यक्तियों के डी.एन.ए. में प्लेग जैसे रोगों के निशान मिले हैं जो उस समय की महामारियों की तीव्रता को दर्शाता है।
- रोगों का आनुवंशिक प्रभाव
- महामारियों ने इन खानाबदोशों के आनुवंशिक प्रोफाइल को भी बदल दिया।
- शोधकर्ताओं ने पाया कि इन रोगों ने लोगों में प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत किया।
- रिलैप्सिंग फीवर का चक्र : शोध में रिलैप्सिंग फीवर (जूँ से फैलने वाला एक जीवाणुजन्य रोग) का भी पता चला है जो 5,000 वर्ष पहले तेजी से फैला। यह रोग समय के साथ उतार-चढ़ाव के चक्रों में रहा।
शोध का महत्व
- यह शोध भविष्य की महामारियों की तैयारी के लिए महत्वपूर्ण है।
- प्राचीन रोगों के पैटर्न को समझकर वैज्ञानिक उन रोगजनकों की पहचान कर सकते हैं जो भविष्य में फिर से उभर सकते हैं।
- उदाहरण के लिए, प्लेग जैसे रोग आज भी मौजूद हैं और अनुकूल परिस्थितियों में फिर से खतरनाक हो सकते हैं।
- यह अध्ययन हमें मानव इतिहास में रोगों की भूमिका एवं उनके सामाजिक प्रभावों को समझने में मदद करता है।
मानव इतिहास में रोगों की भूमिका
- इतिहास में रोगों ने मानव सभ्यताओं को गहराई से प्रभावित किया है।
- प्राचीन काल में, जैसे कि 430 ईसा पूर्व में प्लेग ने एथेंस के शहर को तबाह कर दिया था, रोगों ने समाजों को कमजोर किया और सभ्यताओं के पतन का भी कारण बना।
- इस शोध से पता चलता है कि रोगों ने न केवल आबादी को प्रभावित किया, बल्कि आनुवंशिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों को भी बढ़ावा दिया।
- उदाहरण के लिए, खानाबदोशों के रोगों ने यूरोप में उनकी बसावट को आसान बनाया।