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पोक्सो एक्ट: जमानत एवं सहमति पर न्यायिक निर्णय

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप तथा उनके अभिकल्पन एवं कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय)

संदर्भ

हाल के वर्षों में पोक्सो एक्ट के तहत जमानत और सहमति के मुद्दों पर बहस तेज हो गई है। विशेष रूप से किशोरों के बीच सहमति आधारित संबंधों के मामलों में, जहाँ कानून सहमति को मान्यता नहीं देता है और इसलिए जमानत के निर्णय जटिल हो गए हैं।

पोक्सो एक्ट के बारे में 

  • परिचय : प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस (POCSO) एक्ट, 2012 भारत में बच्चों (18 वर्ष से कम आयु) के खिलाफ यौन अपराधों से निपटने के लिए बनाया गया एक विशेष कानून है। 
  • उद्देश्य : इसका उद्देश्य नाबालिगों को यौन शोषण, यौन उत्पीड़न और अश्लीलता से बचाना है। यह कानून यौन अपराधों को परिभाषित करता है और सजा के साथ-साथ पीड़ितों की सुरक्षा एवं पुनर्वास के लिए प्रावधान करता है।
  • विशेषता : पोक्सो एक्ट सामान्य आपराधिक कानून से अलग है। सामान्य कानून में अभियोजन पक्ष को अभियुक्त की गलती साबित करनी पड़ती है किंतु पोक्सो में अभियुक्त को अपनी बेगुनाही साबित करनी होती है। यह कठोर प्रावधान बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता देता है।

हालिया घटनाएँ 

मुंबई मामला (2025)

  • जुलाई 2025 में मुंबई की एक विशेष पोक्सो अदालत ने 40 वर्षीय एक महिला शिक्षिका को एक किशोर लड़के के साथ कथित यौन संबंध के मामले में जमानत दी। 
  • न्यायालय ने पाया कि यह संबंध सहमति पर आधारित था और पीड़ित ने मजिस्ट्रेट के सामने इसकी पुष्टि की थी। इस निर्णय ने सहमति के आधार पर जमानत देने की प्रवृत्ति को रेखांकित किया।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (2024)

  • सर्वोच्च न्यायालय ने ‘देशनाथ मूसा बनाम राजस्थान राज्य’ मामले में 18 वर्षीय एक लड़के को जमानत दी, जो 16 वर्षीय लड़की के साथ सहमति आधारित संबंध के लिए 5 महीने से जेल में था। 
  • न्यायालय ने आयु में अंतर, हिरासत की अवधि और मुकदमे में देरी को ध्यान में रखते हुए जमानत दी।

चर्चा का मुद्दा 

  • ये मामले सहमति आधारित संबंधों में पोक्सो एक्ट के दुरुपयोग और किशोरों की स्वायत्तता पर सवाल उठाते हैं। 
  • वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने सहमति की आयु को 18 से 16 वर्ष करने की मांग उठाई है, जिसका केंद्र सरकार ने विरोध किया।

जमानत पर न्यायिक विवेकाधिकार का मुद्दा

  • जमानत की प्रकृति : पोक्सो एक्ट के तहत अपराध संज्ञेय एवं गैर-जमानती हैं अर्थात पुलिस बिना वारंट गिरफ्तारी कर सकती है और जमानत स्वतः नहीं मिलती है। हालांकि, कानून में जमानत के लिए विशिष्ट दिशानिर्देश नहीं हैं, जिसके कारण यह न्यायिक स्वविवेक पर निर्भर करता है।
  • जमानत के कारक : भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 483 (पूर्व में दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 439) के तहत जमानत के लिए निम्नलिखित कारकों पर विचार किया जाता है-
    • अपराध की प्रकृति एवं गंभीरता
    • संभावित सजा की कठोरता
    • अभियुक्त के भागने का जोखिम
    • साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ या गवाहों को प्रभावित करने की संभावना
  • दिल्ली उच्च न्यायालय (2020) : धर्मेंदर सिंह मामले में न्यायालय ने अतिरिक्त कारक को शामिल किया, जैसे-
    • पीड़ित एवं अभियुक्त की आयु और उनके बीच आयु अंतर
    • दोनों के बीच संबंध की प्रकृति (सहमति या जबरदस्ती)
    • अपराध के बाद अभियुक्त का व्यवहार
    • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह सूची अंतिम नहीं है बल्कि मार्गदर्शक है।
  • न्यायिक स्वविवेक : पोक्सो मामलों में जमानत संवैधानिक स्वतंत्रता (अभियुक्त का अधिकार) और पीड़ित की सुरक्षा के बीच संतुलन स्थापित करती है। न्यायालय यह सुनिश्चित करते हैं कि जमानत देने से पीड़ित को खतरा न हो।

पोक्सो एक्ट में सहमति का प्रावधान

  • कानूनी स्थिति : पोक्सो एक्ट 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों की सहमति को मान्यता नहीं देता है। भले ही संबंध स्वैच्छिक हो, इसे यौन अपराध माना जाता है। यह नियम किशोरों के बीच सहमति आधारित संबंधों में कानूनी जटिलता पैदा करता है।
  • न्यायिक दृष्टिकोण : हाल के वर्षों में न्यायालय ने सहमति आधारित मामलों में जमानत देने में लचीलापन दिखाया है। यदि पीड़ित मजिस्ट्रेट के सामने सहमति की पुष्टि करता है तो जमानत की संभावना बढ़ जाती है।
  • चुनौतियाँ : प्रारंभिक जाँच के दौरान जमानत मिलना मुश्किल होता है। न्यायालय प्राय: पीड़ित के बयान और मुख्य सबूतों के इकट्ठा होने तक इंतजार करते हैं, जिसके कारण अभियुक्त को लंबी प्री-ट्रायल हिरासत झेलनी पड़ सकती है।
  • इंदिरा जयसिंह की याचिका : वरिष्ठ अधिवक्ता ने सर्वोच्च न्यायालय में सहमति की आयु को 16 वर्ष करने की मांग की। उनका तर्क है कि किशोरों के सहमति आधारित संबंधों को अपराध मानना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। केंद्र सरकार ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इससे नाबालिगों की सुरक्षा कमजोर हो सकती है और बाल शोषण का खतरा बढ़ सकता है।

आगे की राह

  • कानूनी सुधार : सहमति की आयु पर चल रही बहस को सुलझाने के लिए विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं और समाज के साथ विचार-विमर्श जरूरी है। सहमति की आयु कम करने के फायदे और जोखिमों का विश्लेषण करना होगा।
  • जागरूकता अभियान : स्कूलों एवं समुदायों में यौन शिक्षा व पोक्सो एक्ट के प्रावधानों पर जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएँ। इससे किशोरों को अपने अधिकारों और कानूनी सीमाओं की जानकारी होगी।
  • न्यायिक प्रशिक्षण : न्यायाधीशों एवं कानूनी अधिकारियों को सहमति आधारित मामलों में संवेदनशीलता और संतुलित दृष्टिकोण के लिए प्रशिक्षित करने से जमानत के निर्णय अधिक निष्पक्ष होंगे।
  • तेज जांच एवं मुकदमा : पोक्सो मामलों में जाँच व सुनवाई की प्रक्रिया को तेज करना होगा ताकि अभियुक्त को लंबी हिरासत न झेलनी पड़े एवं पीड़ित को शीघ्र न्याय मिले।
  • संतुलित नीति निर्माण : सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जो किशोरों की स्वायत्तता और उनकी सुरक्षा दोनों को संतुलित करें। सहमति आधारित संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखने से पहले सामाजिक एवं सांस्कृतिक संदर्भ को ध्यान में रखना होगा।
  • सामाजिक सहायता : पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए परामर्श एवं पुनर्वास कार्यक्रमों को मजबूत करना चाहिए ताकि वे सामाजिक व मनोवैज्ञानिक समर्थन प्राप्त कर सकें।
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