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वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा और रोगाणुरोधी प्रतिरोधकता

(प्रारंभिक परीक्षा- सामान्य विज्ञान)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्यययन प्रश्नपत्र- 3: स्वास्थ्य, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव)

संदर्भ

कोविड-19 से विश्व स्तर पर तीन मिलियन से अधिक मौतें हो चुकी हैं। यह संक्रामक रोगों के प्रति स्वास्थ्य प्रणालियों की कमजोरियों को उजागर करता है। इसके प्रसार की गति ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निगरानी, नियंत्रण और रोग की अधिसूचना को लेकर सहयोग की आवश्यकता को रेखांकित किया है। इन सबके बीच रोगाणुरोधी प्रतिरोधकता की समस्या पर भी गहन विचार करने की आवश्यकता है।  

रोगाणुरोधी प्रतिरोधकता (Antimicrobial Resistance- AMR)

  • रोगाणुरोधी प्रतिरोधकता (ए.एम.आर.) एक ऐसी परिघटना है, जिसमें जीवाणु और कवक का विकास इस तरह से हो जाता है कि वर्तमान में उसके उपचार के लिये उपलब्ध चिकित्सा अप्रभावी हो जाती है। यह 21वीं सदी की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस अदनोम घेब्रेयसस के अनुसार ए.एम.आर. एक ऐसी धीमी सुनामी है जो विगत एक सदी की चिकित्सा प्रगति को पूर्ववत कर सकती है।ए.एम.आर. पहले से ही प्रतिवर्ष 7,00,000 तक मौतों  के लिये जिम्मेदार है।
  • यदि इस समस्या के समाधान के लिये तत्काल उपाय नहीं किये जाते है तो 10 मिलियन वार्षिक मौतों के साथ-साथ वर्ष 2050 तक 100 ट्रिलियन डॉलर तक के अभूतपूर्व आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है।

कारण

  • रोगाणुओं में दवा प्रतिरोध के विकास के कई कारण हैं।इन कारणों में चिकित्सा में रोगाणुरोधकों का दुरुपयोग, कृषि में इनका अनुचित उपयोग और दवा निर्माण स्थलों के आसपास संदूषण शामिल हैं, जहां अनुपचारित अपशिष्ट से अधिक मात्रा में सक्रिय रोगाणुरोधी वातावरण में मुक्त हो जाते है।
  • इन सभी कारणों से रोगाणुओं में प्रतिरोधकता का विकास होता है। यह चुनौती इसलिये और भी गंभीर हो जाती है क्योंकि विकास और उत्पादन के पर्याप्त प्रोत्साहन के अभाव में विगत तीन दशकों में एंटीबायोटिक दवाओं का कोई भी नया समूह बाजार में उपलब्ध नहीं हो पाया है।
  • गैर-लाभकारी ट्रस्टों की हालिया रिपोर्ट के अनुसार एंटीबायोटिक्स के विकास में छोटी कंपनियों का अधिक योगदान है और प्रमुख दवा कंपनियों ने इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर नवाचार का त्याग कर दिया है।

ए.एम.आर. और संबंधित चुनौतियाँ

  • ए.एम.आर. आधुनिक चिकित्सा के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न करता है।जीवाणुगत और कवकीय संक्रमण के उपचार के लिये कार्यात्मक रोगाणुरोधी के बिना सामान्य शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं के साथ-साथ कैंसर कीमोथेरेपी भी गैर-उपचारित संक्रमणों के जोखिम से युक्त हो जाएगी। इससे नवजात और मातृ मृत्यु दर में वृद्धि होगी।
  • इन सबका प्रभाव विश्व स्तर पर पड़ेगा परंतु एशिया और अफ्रीका के निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों (Low and Middle-Income Countries- LMICs) को अधिक गंभीर स्थिति का सामना करना पड़ेगा।एल.एम.आई.सी. ने सस्ते और आसानी से उपलब्ध रोगाणुरोधकों का उपयोग करके मृत्यु दर को काफी कम कर दिया है। नए उपचारों के विकास के अभाव में इन देशों की स्वास्थ्य प्रणालियों के गैर-उपचारित संक्रामक रोगों से ग्रस्त होने का गंभीर खतरा है।

उपाय

  • इन विविध चुनौतियों से निपटने के लिये नए रोगाणुरोधी को विकसित करने के अलावा कई अन्य क्षेत्रों में कार्रवाई की आवश्यकता है। संक्रमण-नियंत्रण उपायों के द्वारा एंटीबायोटिक के उपयोग को सीमित कर सकते हैं।
  • प्रोत्साहन और वित्तीय अनुमोदन जैसे उपाय उचित नैदानिक ​​उपयोग को (Clinical Use) प्रोत्साहित करेंगे। साथ ही, रोगाणुरोधी की आवश्यकता वाले लोगों तक इसकी पहुंच को सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उपचार योग्य संक्रमण के लिये दवाओं के अभाव में दुनिया भर में 7 मिलियन लोग प्रतिवर्ष मर जाते हैं।
  • इसके अलावा, रोगाणुओं में प्रतिरोध के प्रसार को ट्रैक करने व समझने के क्रम में इन जीवाणुओं की पहचान के लिये निगरानी उपायों को अस्पतालों से परे भी ले जाने की आवश्यकता है और इनमें पशुओं, अपशिष्ट जल एवं कृषि व खेत-खलिहान को भी शामिल करने की आवश्यकता है।
  • चूँकि रोगाणु नए रोगाणुरोधकों के प्रति भी प्रतिरोधी क्षमता का विकास करते रहेंगे, अत: नियमित आधार पर नए प्रतिरोधी उपभेदों (Strain) का पता लगाने और उनका मुकाबला करने के लिये निरंतर निवेश और वैश्विक समन्वय की आवश्यकता है।
  • फार्मास्युटिकल अवशिष्ट के माध्यम से ए.एम.आर. प्रसार में विनिर्माण और पर्यावरण संदूषण की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए हाल ही में फार्मास्युटिकल अवशिष्ट में जाने वाले सक्रिय एंटीबायोटिक की मात्रा पर अंकुश लगाने के लिये भारत द्वारा प्रस्तावित कानूनों पर भी गौर करने की आवश्यकता है।

आगे की राह

  • नई एंटीबायोटिक दवाओं के विकास का समर्थन करने के लिये एक बहु-क्षेत्रीय $1 बिलियन का ए.एम.आर. एक्शन फंड वर्ष 2020 में लॉन्च किया गया था।
  • एंटीबायोटिक दवाओं के उचित उपयोग पर केंद्रित अन्य पहलों में अनावश्यक एंटीबायोटिक के प्रयोग को कम करने के लिये रोगियों को शिक्षित करने का पेरू का प्रयास, प्रिस्क्राइबर के व्यवहार को प्रभावित करने के लिये ऑस्ट्रेलियाई विनियामक सुधार और यूरोपीय संघ समर्थित वैल्यू-डीएक्स (VALUE-Dx) जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से पॉइंट-ऑफ-केयर निदान के उपयोग को बढ़ाने की पहल सराहनीय है।
  • मानव प्रयोग से परे पशुधन में भी एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग को रोकने के लिये डेनमार्क के प्रयासों से न केवल पशुओं में प्रतिरोधी रोगाणुओं की व्यापकता में कमी आई है, बल्कि इससे खेती की दक्षता में भी सुधार हुआ है।
  • एंटीबायोटिक दवाओं के अनुचित प्रोत्साहन को कम करने के लिये उपभोक्ताओं को शिक्षित करने के साथ प्रदाताओं के लिये मानक उपचार दिशा-निर्देश जारी करने की भी आवश्यकता है।
  • अलग-अलग देशों में नीतियों की सफलता वैश्विक सफलता की गारंटी नहीं देता है।अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एकरूपता और समन्वय नीतियों के निर्धारण तथा इसके कार्यान्वयन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। 
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