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सेफ सिटी प्रोजेक्ट एवं फेसियल रिकग्निशन सिस्टम: एक विश्लेषण

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्यपरीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।)

संदर्भ

हाल ही में राज्यसभा में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने जानकारी दी कि दिल्ली में 'सेफ सिटी प्रोजेक्ट' के तहत सीसीटीवी कैमरों पर फेसियल रिकग्निशन सिस्टम (चेहरा पहचानने की प्रणाली) लगाया जाएगा। यह परियोजना दिल्ली पुलिस द्वारा लागू की जाएगी।  इसका उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा को सशक्त करना तथा अपराध पर नज़र रखना है।

सेफ सिटी प्रोजेक्ट के बारे में

  • 'सेफ सिटी प्रोजेक्ट' भारत सरकार द्वारा शहरी क्षेत्रों को सुरक्षित बनाने हेतु शुरू की गई एक योजना है। 
  • इसका संचालन केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत किया जाता है। 
  • यह प्रोजेक्ट खासकर महिलाओं, बच्चों और कमजोर वर्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तकनीकी उपायों के जरिये निगरानी और नियंत्रण प्रणाली को मजबूत करता है।

उद्देश्य

  • महिलाओं के खिलाफ अपराधों की रोकथाम
  • सार्वजनिक स्थानों को सुरक्षित बनाना
  • अपराधों की समय पर पहचान और रोकथाम
  • पुलिसिंग में तकनीक का उपयोग बढ़ाना
  • निगरानी प्रणाली को एकीकृत और सशक्त बनाना

मुख्य विशेषताएँ

  • दिल्ली में व्यापक स्तर पर सीसीटीवी कैमरों की तैनाती 
  • I4C सेंटर (Integrated Command, Control, Communication and Computer Centre) की स्थापना
  • कैमरों में फेसियल रिकग्निशन सिस्टम का एकीकरण
  • रीयल-टाइम निगरानी और आपातकालीन प्रतिक्रिया
  • डाटा विश्लेषण और अपराध पैटर्न की पहचान के लिए तकनीकी टूल्स

फेसियल रिकग्निशन सिस्टम क्या है

फेसियल रिकग्निशन सिस्टम एक बायोमेट्रिक तकनीक है जो किसी व्यक्ति के चेहरे की विशेषताओं को स्कैन करके उसकी पहचान करता है। इसे सीसीटीवी कैमरों से जोड़ने पर यह सिस्टम संदिग्ध लोगों और अपराधियों को भीड़ में पहचान सकता है और तुरंत अलर्ट जारी कर सकता है।

प्रणाली के लाभ

  • अपराधियों की पहचान में तेजी आएगी
  • लापता लोगों का पता लगाने में सहयोग
  • महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को मजबूत करना
  • संदिग्ध गतिविधियों पर रीयल-टाइम नजर
  • पुलिस की प्रतिक्रिया क्षमता में सुधार
  • पूर्व अपराधियों की ट्रैकिंग अधिक प्रभावी होगी

चुनौतियाँ

  • निजता का उल्लंघन: आम नागरिकों की निगरानी से निजता के अधिकार पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • कानूनी स्पष्टता की कमी: फेसियल रिकग्निशन जैसे निगरानी उपकरणों के लिए स्पष्ट नियमों व अनुमतियों की कमी है।
  • डाटा सुरक्षा का खतरा: चेहरों से जुड़े संवेदनशील डाटा के लीक या दुरुपयोग का खतरा बना रहता है।
  • गलत पहचान की संभावना: तकनीकी खामियों के कारण निर्दोष लोगों को संदिग्ध माना जा सकता है।
  • जवाबदेही की कमी: निगरानी प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव गंभीर विषय है।

आगे की राह 

  • स्पष्ट कानून और नीतियाँ बनानी होंगी ताकि फेसियल रिकग्निशन के प्रयोग में नागरिक अधिकारों की रक्षा हो।
  • डाटा सुरक्षा कानून को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
  • निगरानी तंत्र में पारदर्शिता और स्वतंत्र निगरानी संस्थाओं की भूमिका सुनिश्चित करनी होगी।
  • जन-जागरूकता अभियान चलाकर नागरिकों को नई तकनीकों की जानकारी दी जानी चाहिए।
  • तकनीकी सटीकता बढ़ाने हेतु नियमित परीक्षण और उन्नयन जरूरी है।
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