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घरेलू ईंधन पर जी.एस.टी. परिषद् का निर्णय

(प्रारंभिक परीक्षा: सामायिक घटनाओं से सबंधित महत्त्वपूर्ण प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र- 3; कर संग्रह, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर, सरकारी नीतियों  का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव से सबंधित विषय) 

संदर्भ

हाल ही में केरल उच्च न्यायालय की टिप्पणी के पश्चात् घरेलू ईंधन को जी.एस.टी. (Goods and Services Tax) के अंतर्गत शामिल करने हेतु जी.एस.टी. परिषद् द्वारा इस पर चर्चा की गई, हालाँकि यथास्थिति बनाये रखते हुए परिषद् ने फिलहाल इसे जी.एस.टी. के दायरे से बाहर रखने का निर्णय लिया है।

प्रमुख बिंदु

  • देश के कुछ प्रमुख शहरों में पेट्रोल की कीमतें 100 रुपए से अधिक हो गईं। पेट्रोल व डीज़ल की बढ़ती कीमतों ने सरकार पर ईँधन पर करों (Tax) को कम करने का दबाव बढ़ाया है।
  • भारत अपने घरेलू ईंधन का 80% से अधिक आयात करता है, अत: अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतों का घरेलू ईंधन की कीमतों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, हालाँकि ईंधन की कीमतों में वृद्धि का एक प्रमुख कारण उच्च कर की दर को भी माना जाता है।
  • उपभोक्ता द्वारा ईंधन पर किये गए अधिकांश व्यय को किसी न किसी कर के रूप में लिया जाता है।
  • विगत वर्ष अप्रैल माह में वैश्विक लॉकडाउन के दौरान माँग में भारी गिरावट के कारण अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की वायदा कीमतें 20 डॉलर प्रति बैरल कम होने के बावजूद भी घरेलू खुदरा कीमतें उच्च बनी रहीं। 
  • पेट्रोल व डीज़ल उच्च कर वाली वस्तुएँ हैं तथा यह राज्य एवं केंद्र सरकार दोनों के लिये ही अधिकतम राजस्व का स्रोत हैं।
  • एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2020-21 में ईंधन करों से संयुक्त रूप से केंद्र व राज्य सरकारों ने लगभग 6 लाख करोड़ रुपए राजस्व के रूप में प्राप्त किये थे।

सरकार का मत

  • सरकार ने घरेलू ईंधन की कीमतों में वृद्धि के लिये अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों को ज़िम्मेदार ठहराया है।
  •  साथ ही, सरकार ने यह भी तर्क दिया है कि लॉकडाउन के दौरान हुए राजस्व के नुकसान की भरपाई के लिये ईंधनों पर करों की दरें उच्च बनीं रहीं।
  • ी.एस.टी. के तहत उच्चतम कर की स्लैब 28% है, जबकि वर्तमान में पेट्रोल व डीज़ल पर 100% से अधिक कर लगता है, अत: ईंधनो के जी.एस.टी. में शामिल होने से करों में प्रभावी कमी होगी।
  • राज्य पेट्रोल व डीज़ल को जी.एस.टी. के दायरे में लाने की अनुमति देकर कर-राजस्व बढ़ाने की अपनी स्वतंत्र शक्ति को खोने से चिंतित है, क्योंकि इससे कर में अपने हिस्से के लिये केंद्र सरकार पर उनकी निर्भरता बढ़ेगी, जबकि वर्तमान में राज्य स्वतंत्र रूप से पेट्रोल व डीज़ल पर ‘मूल्य- वर्धित कर’ लगा सकते हैं।
  • केंद्र व राज्य सरकारों ने ईंधन पर कर की उच्च दर को इस आधार पर उचित ठहराया है कि इससे प्राप्त राजस्व सामाजिक कार्यक्रमों के वित्तपोषण में मदद करता है।

विपक्ष का तर्क

  • विपक्षी दलों, यहाँ तक कि रिज़र्व बैंक ने भी सरकार से न केवल उपभोक्ता ईंधन को अधिक किफायती बनाने बल्कि मुद्रास्फीति प्रभावों में कमी के लिये भी ईंधन पर करों की दर कम करने का आग्रह किया।
  • वस्तुत: डीज़ल परिवहन ऑपरेटरों द्वारा उपयोग किया जाने वाला मुख्य ईंधन है तथा इसकी उच्च कीमत परिवहन लागत को बढ़ा देती है फलत: वस्तुओं व सेवाओं की कीमतों में भी वृद्धि होती है।
  • यदि ईंधनो पर कर की दर को कम किया जाता है तो ईंधन की खपत में वृद्धि होगी तथा मोटर-चालकों की बचत में होने वाली वृद्धि को अन्य उपभोग व्यय में खर्च किया जा सकता है।
  • करों में कमी से होने वाले राजस्व नुकसान की भरपाई आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि द्वारा की जा सकती है।

    आगे की राह 

    • पेट्रोल व डीज़ल पर करों की कमी से केंद्र व राज्य दोनों को राजस्व का भारी नुकसान होगा ऐसे में निकट भविष्य में ईंधनों को जी.एस.टी. के दायरे में लाने की संभावना कम ही प्रतीत होती है। यदि ईंधनों को जी.एस.टी. के दायरे में लाया भी जाता है तो भी राजस्व क्षतिपूर्ति हेतु इन पर कर की उच्च दर होने की संभावना है।
    • ऐसे में उचित कदम यह हो सकता है कि सरकार ईंधनो पर कर की दर मध्यम स्थिति में बनाए रखे ताकि राजस्व की भरपाई के साथ–साथ मुद्रास्फीति पर भी नियंत्रण रखा जा सके। 

    निष्कर्ष 

    वास्तव में भारत में कर की उच्च दर आर्थिक विकास को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है, जिससे अर्थव्यवस्था की गति में मंदी आती है। कल्याणकारी राज्य होने के कारण  सरकार सामाजिक कार्यक्रमों पर भी भारी व्यय करती है, जिसकी पूर्ति कर-राजस्व से की जाती है। ऐसे में आर्थिक विकास तथा सामाजिक विकास के मध्य सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता है, ताकि विकसित भारत’ का निर्माण किया जा सके।

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