New
The Biggest Summer Sale UPTO 75% Off, Offer Valid Till : 31 May 2025 New Batch for GS Foundation (P+M) - Delhi & Prayagraj, Starting from 2nd Week of June. The Biggest Summer Sale UPTO 75% Off, Offer Valid Till : 31 May 2025 New Batch for GS Foundation (P+M) - Delhi & Prayagraj, Starting from 2nd Week of June.

चुनौतियों के भँवर में फँसा टीकाकरण अभियान

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाओं से संबंधित मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र - 2 : स्वास्थ्य से संबंधित सामाजिक क्षेत्र या सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे; सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र - 3 : आपदा प्रबंधन से संबंधित विषय)

संदर्भ

कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान भारत टीकाकरण से जुड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है तथा भारत में टीकाकरण कार्यक्रम अपेक्षित गति से संचालित नहीं हो पा रहा है।

पृष्ठभूमि

  • कोविड-19 महामारी के विरुद्ध टीकों का निर्माण अन्य बीमारियों के लिये विकसित टीकों से कहीं कम समयांतराल में किया गया। इस महामारी के लिये विश्वभर में लगभग 250 प्रकार के टीकों का निर्माण किया जा रहा है। जिनमें से वैश्विक स्तर पर लगभग 10 टीकों को ही आपातकालीन प्रयोग के लिये मंजूरी प्रदान की गई है।
  • दुनियाभर में इतनी संख्या में टीके विकसित होने के आधार पर कहा जा सकता है कि कोविड-19 महामारी के लिये उत्तरदायी विषाणु ‘एस.ए.आर.एस.–सी.ओ.वी.–2’ (SARS-COV-2) के विरुद्ध प्रभावी टीके का निर्माण करना बहुत मुश्किल नहीं है। जबकि सामान्यतः किसी टीके का निर्माण करने में 12-15 वर्षों का समय लग जाता है।
  • ध्यातव्य है कि स्वीकृति प्राप्त टीकों का निर्माण ऐसी दो प्रौद्योगिकियों के आधार पर किया जा रहा है, जिनका प्रयोग मनुष्यों पर पहले कभी नहीं किया गया। इनमें फाइज़र-बायोटेक (Pfizer-Biotech) तथा मोडर्ना (Moderna) की वैक्सीन 'mRNA तकनीक' पर तथा एस्ट्राजेनेका/ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, स्पूतनिक-v, जॉनसन एंड जॉनसन तथा चीन की कैनसिनो बायोलोजिक्स (CanSino Biologics) का कोरोनावैक टीका 'वायरल वेक्टर' तकनीक पर आधारित है।
  • एक प्रौद्योगिकी पर आधारित टीके में निष्क्रिय विषाणु को डाला जाता है। इसी पर भारत का स्वदेशी टीका ‘को-वैक्सीन’ आधारित है। इसे ‘भारत बायोटेक’ तथा ‘आई.सी.एम.आर.’ ने मिलकर बनाया। चीन की सिनोवेक और सिनोपार्म भी इसी प्रौद्योगिकी पर आधारित हैं। ये टीके लोगों को इस बीमारी व मौत से बचाने में प्रभावी हैं।
  • इन टीकों की दो खुराक दी जाती है, परंतु जॉनसन इसका अपवाद है क्योंकि इसकी सिर्फ एक ही खुराक दी जाती है। अतः ‘जॉनसन’ भावी टीकों के विकास में सहायक हो सकता है।
  • दुनियाभर में लगभग 3-4 अन्य टीके भी स्वीकृति के अंतिम चरण में हैं। इनमें भारत द्वारा डी.एन.ए. तकनीक के आधार पर विकसित किया जा रहा ‘जाइडस कैडिला’ भी शामिल है।

टीकों की कमी के कारण

  • दुनिया भर में लगभग 7 अरब की आबादी को टीके की दो खुराक दी जानी है, अतः टीकों के उत्पादन व माँग के बीच अंतर अत्यधिक है।
  • अमीर देश, जिनकी आबादी वैश्विक जनसंख्या का महज़ 20% ही है, उपलब्ध टीकों के करीब 80% हिस्से पर अपना नियंत्रण रखते हैं।
  • डब्ल्यू.एच.ओ. प्रयास के बावजूद अभी तक सिर्फ 1% अफ्रीकी आबादी की ही टीके तक पहुँच सुनिश्चित हो पाई है।
  • यू.एस.ए. के एफ.डी.ए. ने अब तक केवल 3 टीकों – फाइज़र, मॉडर्ना और जॉनसन – को ही अनुमोदित किया गया है, जबकि सबसे सस्ता ‘एस्ट्राजेनेका’ टीका अभी भी अनुमोदन की प्रतीक्षा में है।
  • 12 से 16 आयु वर्ग के बच्चों के लिये ‘फाइज़र’ टीके को तो मंजूरी प्रदान कर दी गई है, जबकि ‘मॉडर्ना’ व ‘जॉनसन’ अभी भी परीक्षण के दौर में हैं। अतः अपनी वयस्क आबादी को टीकाकृत कर चुके पश्चिमी देश अब अपने बच्चों का टीकाकरण करेंगे। ऐसे में, अभी वे इन तीनों टीकों को विश्व बाज़ार में सुलभ नहीं कराएँगे।
  • हाल ही में, ब्राजील ने रूस के टीके ‘स्पूतनिक–V’ को मंजूरी दी है, परंतु पश्चिमी देशों में अभी तक चीन के ‘सिनोवक’ तथा ‘सिनोपार्म’ टीकों को मंजूरी नहीं मिली है।

भारत के समक्ष चुनौती

  • अन्य देशों की अपेक्षा भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर का प्रभाव अधिक है तथा इस विषाणु में उत्परिवर्तन हो रहा है।
  • भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली अत्यंत सक्षम नहीं है तथा चिकित्सा ऑक्सीजन की भारी कमी के चलते इसकी संवेदनशीलता और बढ़ गई है। इसके अलावा, टीकों की भारी कमी के कारण अपनी आबादी को टीकाकृत करना अत्यंत कठिन हो गया है।
  • यद्यपि संख्यात्मक दृष्टि से अपनी आबादी का टीकाकरण करने में ‘भारत’ अमेरिका व चीन के बाद तीसरे स्थान पर है, लेकिन भारत में अभी तक सिर्फ 13% आबादी को एक खुराक तथा 2% आबादी को दोनों खुराक प्रदान की जा सकी है
  • अत्यधिक जनसंख्या होने के साथ टीकों के लिये लोगों में जागरूकता का अभाव है।
  • टीकों के उत्पादन में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो पा रही है।

वैक्सीन उत्पादन में कमी का कारण

  • टीकों के निर्माण के लिये कच्चे माल की पर्याप्त आपूर्ति न हो पाना, जो आयात पर निर्भर है।
  • भारी संख्या में टीकों के उत्पादन से लेकर उनकी पैकेजिंग करना, अत्यंत जटिल और समयसाध्य प्रक्रिया है।
  • पर्याप्त धनराशि उपलब्ध होने के बावजूद भी मौजूदा उत्पादन क्षमता में सुधार करने में न्यूनतम 2-3 माह का समय लगेगा।

आगे की राह

भारत में टीकाकरण कार्यक्रम को गति देने के लिये टीकों का आयात बढ़ाना होगा। इसके अलावा, भारत और दक्षिण अफ्रीका द्वारा विश्व व्यापार संगठन में एक संयुक्त प्रस्ताव लाया जाएगा। इस पर यू.एस.ए. ने सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की है। इसके तहत कोविड टीकों का उत्पादन करने वाली कंपनियों को एक निश्चित अवधि के लिये अपना आई.पी.आर. साझा करना होगा। इस बीच उनके हितों का पर्याप्त ख्याल रखा जाएगा। यह कदम पूरी दुनिया के लिये उच्च गुणवत्तापरक और सस्ते टीकों के निर्माण में सहायता प्रदान करेगा।

निष्कर्ष

भारत वर्ष 2021 के अंत तक स्वदेशी रूप से विकसित टीकों के अतिरिक्त कुछ विदेशी टीकों, यथा– स्पुतनिक-V, जॉनसन, नोवावैक्स आदि का उत्पादन भी करने लगेगा। इससे भारत भी इस महामारी से लड़ने में प्रभावकारी सिद्ध हो सकेगा।

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR