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भारत का जलवायु वित्त वर्गीकरण

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

भारत आर्थिक गतिविधियों को टिकाऊ या गैर-टिकाऊ के रूप में वर्गीकृत करने के लिए एक जलवायु वर्गीकरण ढाँचा विकसित कर रहा है।

क्या है जलवायु वित्त वर्गीकरण 

  • यह एक वर्गीकरण प्रणाली है जो परिभाषित करती है कि कौन सी गतिविधियाँ पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ हैं।
  • उद्देश्य: वर्ष 2070 तक नेट-ज़ीरो और पेरिस समझौते के तहत प्रतिबद्धताओं के साथ वित्तीय प्रवाह को संरेखित करना।
  • निवेशकों, नियामकों एवं कंपनियों को जलवायु लक्ष्यों में योगदान देने वाली परियोजनाओं की पहचान करने में मदद करता है।
  • यह यूरोपीय संघ वर्गीकरण (वैश्विक मानक) के अनुरूप है। 

भारत को जलवायु वित्त वर्गीकरण आवश्यकता 

  • हरित वित्त जुटाना : नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन, टिकाऊ कृषि आदि की ओर निवेश को निर्देशित करता है।
  • ग्रीनवाशिंग से बचना : प्रदूषणकारी परियोजनाओं को ‘हरित’ के रूप में गलत लेबल करने से रोकता है।
  • वैश्विक व्यापार और वित्त संरेखण : यह सुनिश्चित करता है कि भारतीय उद्योग विकसित हो रहे ई.एस.जी. (पर्यावरण, सामाजिक, शासन) मानदंडों के बीच प्रतिस्पर्धी बने रहें।
  • नियामकों को सहायता : जलवायु जोखिम मूल्यांकन में आर.बी.आई., सेबी एवं वित्तीय संस्थानों की सहायता करता है।

चुनौतियाँ

  • विश्वसनीय डाटा का अभाव : क्षेत्र-विशिष्ट उत्सर्जन और स्थिरता संबंधी आँकड़ों का अभाव
  • क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा : उदाहरण: कोयला परिवर्तन, उर्वरक उपयोग या जैव ईंधन के लिए स्थिरता को परिभाषित करना
  • उच्च कार्यान्वयन लागत : छोटी फर्मों को वर्गीकरण रिपोर्टिंग का अनुपालन करने में कठिनाई की संभावना 

आगे की राह

  • स्पष्ट क्षेत्रीय मानक (ऊर्जा, उद्योग, परिवहन, कृषि) बनाना
  • ग्रीनवाशिंग की जाँच के लिए नियमित निगरानी और सत्यापन सुनिश्चित करना
  • एम.एस.एम.ई. के लिए क्षमता निर्माण सहायता प्रदान करना
  • उन गतिविधियों को वर्गीकृत करना जो पूरी तरह से हरित नहीं हैं किंतु उत्सर्जन को धीरे-धीरे कम करने में मदद करती हैं।
  • भारत की विकासात्मक प्राथमिकताओं को संबोधित करते हुए उसे वैश्विक वर्गीकरण के साथ संरेखित करना
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