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चार प्रमुख क्षेत्रों में बाध्यकारी उत्सर्जन-कटौती नियम

(प्रारंभिक परीक्षा: पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ

हाल ही में, भारत ने पेरिस समझौते के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन तीव्रता (GEI) लक्ष्य नियम, 2025 को अधिसूचित किया है। ये नियम औद्योगिक क्षेत्रों के लिए देश के प्रथम कानूनी रूप से बाध्यकारी उत्सर्जन न्यूनीकरण आदेश हैं।

विनियमन के अधीन क्षेत्र

  • ये नियम चार उच्च-उत्सर्जन वाले उद्योगों पर लागू होते हैं जिसमें ‘एल्यूमिनियम’, ‘सीमेंट’, ‘क्लोर-एल्कली (Chlor-alkali)’ तथा ‘लुगदी एवं कागज’ शामिल हैं।
  • कम-से-कम 282 औद्योगिक इकाइयों को 2025-26 तथा 2026-27 के लिए उत्सर्जन गहनता लक्ष्यों का अनुपालन करना अनिवार्य होगा, जिसमें उत्पादन की प्रति इकाई उत्सर्जन को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

भारत के कार्बन बाजार का संचालन

  • जी.ई.आई. लक्ष्य नियम कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (CCTS), 2023 को संचालित करने के लिए तैयार किए गए हैं जो भारत के घरेलू कार्बन बाजार का आधार स्तंभ है। लक्ष्यों को हासिल करने या उससे आगे निकलने वाली उद्योग इकाइयाँ कार्बन क्रेडिट अर्जित करेंगी।
  • अनुपालन न करने वाली इकाइयों को अपने उत्सर्जन लक्ष्य में कमी को ऑफसेट करने के लिए क्रेडिट खरीदने होंगे। यह व्यवस्था लचीललापन सुनिश्चित करते हुए संबंधित क्षेत्रों में समग्र उत्सर्जन गहनता में न्यूनीकरण को प्रोत्साहित करती है।

नीतिगत एकीकरण एवं प्रशासन

  • ये नियम ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 (2022 में संशोधित) के अंतर्गत आते हैं जिसके तहत ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) को अनुपालन की निगरानी एवं प्रवर्तन का अधिकार प्राप्त है।
  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के अनुसार, यह भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) से संरेखित है जो विशेष रूप से वर्ष 2030 तक जी.डी.पी. की उत्सर्जन गहनता को वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में 45% तक कम करने की प्रतिबद्धता से मेल खाती है।

क्षेत्रवार निहितार्थ

  • सीमेंट एवं एल्यूमिनियम: दोनों क्षेत्र बी.ई.ई. के अंतर्गत परफॉर्म, अचीव एंड ट्रेड (PAT) कार्यक्रम का हिस्सा हैं। ये नए नियम इस कार्यक्रम के औद्योगिक दक्षता की ट्रैकिंग एवं बेंचमार्किंग के अनुभव पर आधारित हैं।
  • लुगदी एवं कागज, क्लोर-एल्कली: इन क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता एवं प्रक्रिया अनुकूलन की चुनौतियाँ हैं तथा उत्सर्जन की सीमाएँ निम्न-कार्बन विनिर्माण की दिशा में तकनीकी परिवर्तनों को त्वरित करेंगी।

वैश्विक संदर्भ

यह अधिसूचना ब्राजील में आयोजित COP-30 से पूर्व जारी की गई है जहाँ भारत ने इसे अपनी सुदृढ़ घरेलू जलवायु नीति के भाग के रूप में प्रस्तुत किया है ताकि ‘स्वैच्छिक प्रतिज्ञाओं एवं प्रवर्तनीय उत्सर्जन जवाबदेही के बीच की खाई को पाटा जा सके’।

दृष्टिकोण

  • बाजार-आधारित जलवायु प्रशासन को सुदृढ़ करना
  • हरित प्रौद्योगिकियों में निवेश को प्रोत्साहित करना
  • भारत के वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के दृष्टिकोण का समर्थन करना
  • हालाँकि, उद्योग समूहों ने सुगम अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए स्पष्ट निगरानी दिशानिर्देशों तथा क्षमता निर्माण की मांग की है।
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