New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 20th Nov., 11:30 AM Diwali Special Offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 22nd Oct., 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 03rd Nov., 11:00 AM Diwali Special Offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 22nd Oct. 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 20th Nov., 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 03rd Nov., 11:00 AM

भारत-चीन के बदलते संबंध

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध)

संदर्भ 

इस साल भारत एवं चीन के कूटनीतिक साझेदारी के 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इस अवसर पर दोनों देशों ने कूटनीतिक संबंधों में मज़बूती के संकेत दिए हैं। 

भारत-चीन संबंधों के सकारात्मक बदलाव 

  • इसी वर्ष जनवरी में शंघाई सहयोग संगठन के रक्षा मंत्रियों की बैठक के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उनके चीनी समकक्ष एडमिरल डोंग जून के बीच मुलाक़ात हुई। 
  • जून में कैलाश मानसरोवर यात्रा की बहाली का निर्णय लिया गया। 
  • हाल ही में चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भारत की दो दिवसीय यात्रा संपन्न की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शंघाई सहयोग संगठन में भाग लेने के लिए चीन की यात्रा करने की योजना है।

भारत-चीन संबंधों की पृष्ठभूमि 

  • आधुनिक कूटनीति के आकार लेने और सीमाओं के निर्धारण व पुनर्निर्धारण से बहुत पहले भारत व चीन के बीच संबंधों को ज्ञान की साझा खोज ने पोषित किया था। 
  • पहली सहस्राब्दी ईस्वी की शुरुआत में ही फ़ैक्सियन, ह्वेनसांग एवं यिजिंग जैसे चीनी भिक्षुओं ने भारतीय शिक्षा केंद्रों तक पहुँचने के लिए दुर्गम भूभागों को पार किया।
    • इस आदान-प्रदान के केंद्र में नालंदा था, जहाँ वस्तुओं की तुलना में विचारों का प्रवाह अधिक स्वतंत्र था और धार्मिक विश्वास एवं धर्मनिरपेक्ष अन्वेषण सामंजस्य के साथ सह-अस्तित्व में थे। 
  • एक संस्था और एक दर्शन दोनों के रूप में नालंदा लंबे समय से शांति, संवाद एवं बौद्धिक कूटनीति के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक रहा है। 
  • इसकी स्थायी भावना इसके आदर्श वाक्य में जीवित है ‘आ नो भद्रा क्रतवो यंतु विश्वत:’ अर्थात सभी दिशाओं से श्रेष्ठ विचार हमारे पास आएँ।
    • यही भावना वसुधैव कुटुम्बकम (विश्व एक परिवार) के विचार में भी जीवित है। सदियों से इसी सोच ने भारत और चीन के बीच आदान-प्रदान के सूत्र बाँधे रखे हैं।

वर्तमान में संबंधों की स्थिति 

व्यापार में रुकावट, बार-बार होने वाले सैन्य टकराव और नौकरशाही की मंज़ूरी की प्रतीक्षा में सैकड़ों शैक्षणिक या लोगों के बीच संबंधों ने एक प्रकार की जड़ता उत्पन्न कर दी है जो उस स्वाभाविक आदान-प्रदान प्रवाह से बहुत दूर लगती है जो कभी इनके संबंधों को परिभाषित करता था। 

भारत-चीन संबंधों के प्रमुख मुद्दे

  • सीमा विवाद : वर्ष 2020 से पूर्वी लद्दाख में लंबे समय से गतिरोध; वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) का अनसुलझा सीमांकन
  • रणनीतिक प्रतिस्पर्धा : चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI), दक्षिण एशिया और हिंद महासागर में चीन का बढ़ता प्रभाव
  • व्यापार असंतुलन: भारत की चीन पर भारी आयात निर्भरता (इलेक्ट्रॉनिक्स, API, सौर)
  • वैश्विक संरेखण: पाकिस्तान व रूस के साथ चीन की निकटता; भारत का अमेरिका और क्वाड की ओर झुकाव

संबंधों में चीन की दीवार के रूपक का उपयोग 

  • संबंधों को बेहतर बनाने में संरचनात्मक बाधाओं, जैसे- अविश्वास, पारदर्शिता की कमी और परस्पर विरोधी रणनीतिक लक्ष्य आदि के उल्लेख के लिए।
  • आर्थिक परस्पर निर्भरता के बावजूद राजनीतिक और सुरक्षा चुनौतियाँ संबंधों पर हावी हैं।

परस्पर सहयोग के क्षेत्र 

  • दोनों देशों में पारस्परिक शिक्षा की अपार संभावनाएँ हैं।
  • भारत खाद्य सुरक्षा, स्थानीय बुनियादी ढाँचे के विकास या ज़मीनी स्तर पर उद्यमिता जैसे क्षेत्रों में चीन की पहलों की ओर देख सकता है। 
  • चीन का शैक्षणिक और नीतिगत समुदाय भारत के लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण, खुले नागरिक समाज जुड़ाव या डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं के ढाँचे का अध्ययन करने में लाभान्वित हो सकता है।
  •  ये बिंदु सहयोगात्मक शिक्षा के संभावित मार्ग हैं।

नालंदा दृष्टिकोण की आवश्यकता

  • जिस तरह नालंदा ने कभी दोनों सभ्यताओं के बीच संवाद और सीखने के लिए जगह बनाई थी, शायद आज भी उसी भावना से प्रेरणा लेकर चीन के साथ संबंधों को आकार दिया जा सकता है।
  • ऐसे क्षेत्र हमेशा रहेंगे जहाँ हमारे विचारों में मतभेद होंगे किंतु नालंदा हमें याद दिलाता है कि असहमति का मतलब अलगाव नहीं है। 
    • जहाँ ज़रूरी हो, वहाँ दृढ़ रहना संभव है और जहाँ ज़रूरी हो, वहाँ संवाद के लिए तैयार रहना भी।
  • यह दृष्टिकोण इस बात पर भी विचार करने का आह्वान करता है कि हम स्वयं को कैसे तैयार करते हैं। हमें अपने सिद्धांतों को बदलने की ज़रूरत नहीं है किंतु हमें उनके अनुपालन के तरीके में बदलाव करने की ज़रूरत हो सकती है। 
  • चीन पर मज़बूत अकादमिक एवं नीतिगत शोध में निवेश करना, पर्यावरण, स्वास्थ्य और संस्कृति जैसे क्षेत्रों में सहज अकादमिक आदान-प्रदान की अनुमति देना तथा लोगों के बीच दीर्घकालिक संबंध बनाना महत्वपूर्ण कदम हैं। 
  • नालंदा की परंपरा को अगर भारत और चीन इस साझा विरासत से सच्चे इरादे से प्रेरणा ले सकें, तो वे एक-दूसरे के साथ और भी सोच-समझकर जुड़ने का रास्ता खोज सकते हैं। 
  • इससे बिना किसी डर के जिज्ञासा, बिना किसी संदेह के संवाद और बिना किसी आक्रामकता के स्पष्टता, समझ व आपसी सम्मान पर आधारित एक स्थिर मार्ग की शुरुआत हो सकती है। 

आगे की राह 

  • रणनीतिक संतुलन : क्वाड, हिंद-प्रशांत साझेदारी एवं आसियान के साथ संबंधों को मज़बूत करना
  • आर्थिक लचीलापन : आत्मनिर्भर भारत के तहत आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाना, घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना
  • सीमा प्रबंधन : संचार माध्यमों को खुला रखते हुए मज़बूत सुरक्षा रुख़ बनाए रखना
  • विशिष्ट जुड़ाव : राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा करते हुए बहुपक्षीय मंचों (ब्रिक्स, एस.सी.ओ., जी 20) में सहयोग करना
  • सार्वजनिक कूटनीति : विकास साझेदारी और संपर्क पहलों के माध्यम से पड़ोस में चीन के प्रभाव का मुकाबला करना
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR
X