New
The Biggest Summer Sale UPTO 75% Off, Offer Valid Till : 31 May 2025 New Batch for GS Foundation (P+M) - Delhi & Prayagraj, Starting from 2nd Week of June. UPSC PT 2025 (Paper 1 & 2) - Download Paper & Discussion Video The Biggest Summer Sale UPTO 75% Off, Offer Valid Till : 31 May 2025 New Batch for GS Foundation (P+M) - Delhi & Prayagraj, Starting from 2nd Week of June. UPSC PT 2025 (Paper 1 & 2) - Download Paper & Discussion Video

न्यायालयों पर बढ़ता दोहरा दबाव

(प्रारंभिक परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1: राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ तथा संवैधानिक संस्थाओं से संबंधित मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2: संविधान संशोधन, न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य तथा संवैधानिक संस्थाओं से संबंधित विषय)

संदर्भ

  • हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने लंबित मामलों की बढ़ती संख्या तथा न्यायाधीशों की बढ़ती कमी को देखते हुए तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति की बात कही है।
  • कॉलेजियम व्यवस्था का दोष हो या केंद्र सरकार की शिथिलता, हाल के दिनों में नियुक्ति प्रक्रिया में अस्वीकार्य देरी ने उच्च न्यायालयों में बड़ी संख्या में रिक्तियों को बढ़ाया है।

कॉलेजियम व्यवस्था(Collegium System)

  • कॉलेजियम व्यवस्था, न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण की एक ऐसी प्रणाली है, जो उच्चतम न्यायालय के निर्णयों से विकसित हुई है नकि संसद या संविधान सभा द्वारा।
  • उच्चतम न्यायालय के वर्ष 1993 के द्वितीय न्यायाधीश मामले (सुप्रीम कोर्ट एड्वोकेट्स ऑनरिकॉर्ड एशोसिएशन बनाम भारत संघ) में 9 जजों की संविधान पीठ द्वारा वर्ष 1981 के प्रथम न्यायाधीश मामले (एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ) के फैसले को रद्द कर 'कॉलेजियम व्यवस्था' को अस्तित्व में लाया गया।
  • इस व्यवस्था के अंतर्गत भारत के मुख्य न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय के 4 वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं, जो न्यायाधीशों की नियुक्ति तथा स्थानांतरण संबंधी सिफारिश करते हैं। हालाँकि भारतीय संविधान में इसका कोई उल्लेख नहीं है।
  • उच्च न्यायालय के कॉलेजियम का नेतृत्व उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा उस न्यायालय के 4 वरिष्ठतम न्यायाधीश करते हैं।
  • उच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा नियुक्ति के लिए सिफारिश किये गए नाम, भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम के अनुमोदन के बाद ही सरकार के पास पहुँचते हैं।
  • ध्यातव्य है कि 99वें संविधान संशोधन,2014 के तहत न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग' (National Judicial Appointments Commission - NJAC) की स्थापना की गई। किंतु,वर्ष 2015 में उच्चतम न्यायालय द्वारा न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए खतरा कहकर 99वें संविधान संशोधन एवं एन.जे.ए.सी. को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया। इस प्रकार वर्तमान में वर्ष 1993 की कॉलेजियम व्यवस्था ही लागू है।

तदर्थ न्यायाधीश (Ad-hoc Judges)

  • भारत के मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबड़े की अध्यक्षता वाली पीठ ने बढ़ रहे लंबित मामलों और मौजूदा रिक्तियों की चुनौती से निपटने के लिए अनुच्छेद 224(A) की पुनरावृत्ति की आवश्यकता को स्पष्ट किया है।
  • अनुच्छेद 224(A) उच्च न्यायालय में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की अस्थायी अवधि के लिए तदर्थ न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की बात करता है।
  • तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा, संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सिफारिश पर, राष्ट्रपति की पूर्व संस्तुति तथा संबंधित व्यक्ति की मंजूरी के बाद की जाती है।
  • ऐसे न्यायाधीश राष्ट्रपति द्वारा तय भत्तों के अधिकारी होते हैं तथा वह उस उच्च न्यायालय के सभी न्यायिक क्षेत्र की शक्ति एवं सुविधाओं और विशेषाधिकारों को भी प्राप्त करते हैं।

पीठ के सुझाव

  • पीठ ने तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में सुझाव देते हुए कहा कि ऐसे न्यायाधीशों की नियुक्ति तब करनी चाहिए जब रिक्तियों की संख्या20% से अधिक हों या 5 साल से अधिक समय से लंबित पड़े मामलों की संख्या 10% से अधिक हो।
  • पीठ ने अपने फैसलें में कहा कि तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति में वर्तमान मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर का भी पालन किया जाए।
  • इनकी नियुक्ति अवधि के लिए 2 से 3 वर्ष का सुझाव दिया गया। साथ ही,यह भी स्पष्ट किया गया कि यह एक क्षण भंगुर कार्य प्रणाली है। अतः इससे नियमित नियुक्ति प्रक्रिया में कोई बाधा नहीं उत्पन्न होगी।

निष्कर्ष

वर्तमान में न्यायालय दोहरे दबाव का सामना कर रहे हैं। अतः केंद्र सरकार को इसे कम करने के लिए कोई ठोस कदम उठाना चाहिए। साथ ही,न्यायपालिका को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अनुभव और विशेषज्ञता के साथ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को केवल अस्थायी अवधि के लिए ही पदों की पेशकश की जाए। अन्यथा दूसरे नियमित न्यायाधीशों के साथ भेदभाव की प्रवृत्ति में वृद्धि होने की संभावना को बल मिलेगा। 

अन्य तथ्य

  • उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों एवं रिक्तियों की संख्या काफ़ी अधिक है। सभी उच्च न्यायालयों में लगभग 57 लाख से भी अधिक मामले लंबित है साथ ही 40% पद रिक्त पड़े हैं।
  • लंबित पड़े प्रकरणों में से 54% मामले केवल 5 उच्च न्यायालयों में मौजूद है ।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR