New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 28th Sept, 11:30 AM Hindi Diwas Offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 15th Sept. 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 25th Sept., 11:00 AM Hindi Diwas Offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 15th Sept. 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 28th Sept, 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 25th Sept., 11:00 AM

चरम मौसमी परिघटनाओं की बढ़ती आवृत्ति

(प्रारंभिक परीक्षा : भारत एवं विश्व का प्राकृतिक भूगोल & जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 & 3 ; जलवायु विज्ञान & जलवायु परिवर्तन, आपदा और आपदा प्रबंधन)

संदर्भ

  • भारत के उत्तरी एवं दक्षिणी भागों से ‘दक्षिण-पश्चिम मानसून’ के निवर्तन (Retreat) के बावजूद केरल और उत्तराखंड में अक्तूबर में रिकॉर्ड बारिश दर्ज़ की गई है।
  • इन दोनों राज्यों सहित अन्य राज्यों में भी विगत कुछ वर्षों में वर्षा के प्रतिरूप और तीव्रता में परिवर्तन आया है। वर्ष 2018 में मूसलाधार वर्षा से केरल में व्यापक तबाही हुई थी, इस वर्ष भी केरल और उत्तराखंड में इसी प्रकार की वर्षा से व्यापक जन-धन की हानि हुई है।

वर्षा का परिमाण

  • भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, केरल और माहे क्षेत्र में 14 अक्तूबर से 20 अक्तूबर तक 124 प्रतिशत अधिक वर्षा रिकॉर्ड की गई है। वर्षा से संबंधित आँकड़ों की बात करें, तो इस अवधि में होने वाली सामान्य वर्षा 72.1 मिमी. के इतर इस वर्ष इस क्षेत्र में 161.2 मिमी. वर्षा रिकॉर्ड की गई है।
  • इसी प्रकार लक्षद्वीप में 15 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई है, जबकि अक्तूबर मध्य तक केरल में 121 प्रतिशत अधिक वर्षा दर्ज की गई।
  • आई.एम.डी. के नवीनतम पूर्वानुमान में कहा गया है कि आगामी सप्ताह में भी ‘सामान्य से अधिक’ वर्षा हो सकती है। उत्तराखंड में अक्तूबर के मध्य तक होने वाली सामान्य वर्षा 35.3 मिमी. के विपरीत 192.6 मिमी. वर्षा दर्ज की गई।

मूसलाधार वर्षा के अभिप्राय

  • केरल और उत्तराखंड में मूसलाधार वर्षा के अलग-अलग कारक हैं। अरब सागर के साथ-साथ बंगाल की खाड़ी में विगत कुछ सप्ताह से 'निम्न दाब प्रणाली' सक्रिय है।
  • केरल में भारी वर्षा अरब सागर में स्थित निम्न दाब प्रणाली के कारण होती है, जबकि उत्तरी भारत में पश्चिमी विक्षोभ (शीत ऋतु के दौरान भूमध्यसागर से नमीयुक्त बादलों के आवधिक प्रवाह) के कारण वर्षा होती है।
  • बंगाल की खाड़ी अभी भी उष्ण है और यहाँ से तेज़ हवाएँ उत्तराखंड तक पहुँच रही हैं, जिसके कारण उत्तर-पूर्वी भारत के कई हिस्सों में वर्षा में हो रही है।
  • सामान्यतः अक्तूबर के महीने में दक्षिण-पश्चिम मानसून (Southwest Monsoon) भारत से पूरी तरह निवर्तित हो जाता है तत्पश्चात् उत्तर-पूर्व मानसून (Northeast Monsoon) के सक्रिय होने से तमिलनाडु, पुददुचेरी, तटीय आंध्र प्रदेश तथा केरल में वर्षा होती है।
  • मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि ‘निम्न दाब’ के साथ-साथ ‘पश्चिमी विक्षोभ’ दोनों ही वैश्विक उष्मन के बृहद् प्रतिरूप से अंतर्संबंधित हैं। वस्तुतः बंगाल की खाड़ी ऐतिहासिक रूप से उष्ण जलनिकाय है, जो भारत में वर्षा से संबंधित निम्न दाब एवं चक्रवात को जन्म देती है।
  • हाल के वर्षों में अरब सागर भी सामान्य से अधिक उष्ण रहा है, जिसके कारण यहाँ कुछ महत्त्वपूर्ण चक्रवाती गतिविधियाँ हुई हैं। अत: इसके उच्च तापमान के कारण आर्कटिक महासागर पर प्रभाव पड़ रहा है और यह अधिक तीव्रता से ध्रुवों की शीत वायु को आकर्षित कर रहा है। इस कारण भी नमी में वृद्धि हो रही है, जिससे उत्तर भारत में अधिक तीव्र पश्चिमी विक्षोभ से जलवायविक परिघटनाएँ परिलक्षित हो रही हैं।

मानसून का निवर्तन

  • आई.एम.डी ने पूर्वानुमान व्यक्त किया था कि इस वर्ष मानसून का निवर्तन 6 अक्तूबर से आरंभ हो सकता है और अक्तूबर के मध्य तक पूरी तरह निवर्तित हो जाएगा। हालाँकि. मानसून का निवर्तन अभी तक नहीं हुआ है और इससे संबंधित बादल अभी भी बने हुए हैं।
  • आई.एम.डी. के नवीनतम आकलन के अनुसार, अक्तूबर के अंत तक दक्षिण-पश्चिम मानसून का निवर्तन हो जाएगा तथा उत्तर-पूर्व मानसून की शुरुआत हो जाएगी।
  • यदि वायुमंडल और महासागर का समग्र विश्लेषण किया जाए तो प्रत्येक स्थान पर नमी के द्वारा ही तापमान के अंतर को पूरा किया जाता है। इसी परिप्रेक्ष्य में यह अब स्थापित तथ्य है कि उष्ण महासागर कुछ पॉकेट्स में तीव्र वर्षा के कारक बनते जा रहें हैं। हालिया दिनों में केरल और उत्तराखंड में अभिलिखित परिघटनाओं को इस कारक से अंतर्संबंधित किया जा रहा है।
  • मानसून चक्र बड़े परिवर्तनों के प्रति ‘प्रवण’ होता है तथा प्रत्येक वर्ष इसके क्षेत्रीय कारकों पर ही ज़ोर दिया जाता है किंतु ऐसा कोई भी पूर्वानुमान लगाना मुश्किल होता है कि कौन-सा कारक अग्रिम रूप से ‘चरम जलवायु परिघटनाओं’ का कारण बन रहा है।

ज़िम्मेदार कारक

  • अगस्त 2021 तक यह पूर्वानुमान व्यक्त किया गया था कि भारत में इस वर्ष ‘सामान्य से कम वर्षा’ होगी लेकिन वैश्विक मौसम संबंधी कारकों में आए परिवर्तन के कारण सितंबर में मूसलाधार बारिश हुई, जिसने मानसून की कमी को काफी हद तक कम कर दिया।
  • उल्लेखनीय है कि जलवायु में उतार-चढ़ाव से होने वाले नुकसान उनके प्रभाव को प्रकट करते हैं, जो काफी हद तक समाज के पर्यावरणीय विकल्पों के कारण ही होते हैं।
  • केरल और उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के वृहद् भाग भूस्खलन के प्रति प्रवण हैं लेकिन मानव अधिवास के लिये इस प्रकार की अनुपयुक्त भूमि पर भी निर्माण निर्बाध रूप से जारी है।
  • कई पारिस्थितिकीविदों और पर्यावरणविदों ने वर्षों से इस प्रकार के ‘अनियोजित विकास’ के परिणामों की चेतावनी दी है। इसलिये तेज़ी से अनिश्चित होती जलवायु के संदर्भ में यह कहना तर्कसंगत होगा कि इन क्षेत्रों के निवासियों को अधिक से अधिक जलवायु जोख़िमों से अवगत कराया जाए ताकि किसी भी प्रकार की जन- धन हानि को रोका जा सके।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR
X