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वर्ष 2021 में भारत और विश्व

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 ; अंतर्राष्ट्रीय संबंध- भारत एवं इसके पड़ोसी-संबंध) 

संदर्भ

पिछले एक वर्ष से भारत समेत पूरा विश्व कोविड -19 महामारी का सामना कर रहा है, जो पूरे विश्व के समक्ष एक चुनौतीपूर्ण मुद्दा रहा। परंतु भारत को महामारी के साथ-साथ पड़ोसी देश, चीन की अक्रामकता का सामना भी करना पड़ा। भारत ने अमेरिका, यूरोपीय संघ, पश्चिमी देशों तथा अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करने और नए निर्माण की चुनौतियों के साथ वर्ष 2021 में प्रवेश किया है।

इतिहास से सीखने की आवश्यकता

  • अप्रैल 1963 में, चीन के साथ 1962 के युद्ध के लगभग 6 माह उपरांत तात्कालिक प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने ‘चेंजिंग इंडिया’ नाम से एक लेख लिखा, इसमें उन्होंने स्वीकार किया कि बदलते अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए भारत को अपने मित्र देशों के साथ संबंधों को समायोजित करने की आवश्यकता है।
  • चीन के संदर्भ में उन्होंने कहा कि चीन विश्वास करने योग्य राष्ट्र नहीं है, जैसा कि वह साबित कर चुका है, तो ऐसे में यह आवश्यक है कि भारत चीन पर अधिक ध्यान दे और अपने सशस्त्र बलों को मज़बूत करे। सशस्त्र बलों को मज़बूत करने के लिये उन्होंने ‘पर्याप्त बाह्य समर्थन’ की आवश्यकता बताई।
  • पिछले वर्ष भारत को राजनयिक और सैन्य, दोनों मोर्चों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ा और नया वर्ष भी भारत के समक्ष नई चुनौतियाँ लेकर आया है। वर्तमान में इन चुनौतियों का सामना सफलतापूर्वक करने के लिये नेहरू के कथन से सीख ली जा सकती है।

चुनौतीपूर्ण रहा वर्ष 2020

चीन से मिलने वाली चुनौती

  • वर्ष 2013 से राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा लगातार चीन के वैश्विक प्रभाव को मज़बूत किया जा रहा है, अतः चीन ने महामारी को भी एक अवसर के रूप में देखा
  • हालाँकि प्रारंभिक रूप से चीन को कोरोना वायरस के लिये ज़िम्मेदार माना गया, परंतु चीन ने इसे मानने से इनकार कर दिया।
  • चीन ने अपनी हरकतों से लगातार इंडो- पैसिफिक क्षेत्र में तनाव बनाए रखा और अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने का प्रयास किया। इसकी हरकतों में वियतनाम की मछुआरों की नाव को रोकना, फिलीपींस के नौसैनिक जहाज़ और एक मलेशियाई तेल ड्रिलिंग ऑपरेशन को प्रभावित करना शामिल हैं।
  • साथ ही, इसने व्यापार प्रतिबंधों के माध्यम से ऑस्ट्रेलिया को भी प्रभावित करने की कोशिश की।
  • मई 2020 के बाद चीनी सैनिकों ने भारत की सीमा (गलवान घाटी) में अवैध तरीके से प्रवेश किया और वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) की यथास्थिति बदलने का प्रयास किया। साथ ही, इस घटना में 20 भारतीय सैनिक भी शहीद हो गए।
  • इसके अतिरिक्त, चीन ने भारत के साथ हुए सभी शांति समझौतों का खुलकर उल्लंघन किया।

ट्रम्प के शासन में अमेरिका

  • पिछले 4 वर्षों में अमेरिका डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन के अंतर्गत वैश्विक स्तर पर अनेक नेतृत्वकारी समझौतों से बाहर हुआ।
  • अमेरिका ईरान समझौते से लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित लगभग एक दर्जन बहुपक्षीय निकायों तथा समझौतों से बाहर हुआ या उन्हें कमज़ोर किया।
  • चीन द्वारा अंतरिक्ष पर दावा करने पर, ट्रम्प प्रशासन ने वैश्विक व्यवस्था को बाधित करने के लिये चीन और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना को निशाना बनाया।
  • जो बाइडन के राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभालने से यह उम्मीद की जा सकती है कि अमेरिका पुनः ट्रम्प द्वारा रिक्त किये गए स्थानों को भरेगा।

तालिबान की स्वीकार्यता

  • 19 वर्ष पूर्व तालिबान को बाहर करने के लिये अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया था, चूँकि अब तालिबान धीरे –धीरे बाहर हो रहा है तो इसे देखते हुए आखिरकार फरवरी 2020 में अमेरिका ने उनके साथ शांति समझौता कर लिया।
  • भारत के लिये, इसका आशय तालिबान के साथ जुड़ने की प्रक्रिया की शुरुआत थी।
  • तालिबान या अन्य राजनीतिक ताकतों के अंतर्गत अफगानिस्तान के भविष्य के लिये दीर्घकालिक प्रतिबद्धता को दर्शाते हुए भारत ने इसे 80 मिलियन डॉलर की सहायता प्रदान की है। इसके साथ ही, भारत पिछले दो दशकों में अफगानिस्तान में 3 बिलियन डॉलर की अपनी सहायता प्रतिबद्धताओं को भी पूरा कर चुका है।
  • इसका आशय यह है कि भारत भी तालिबान को ही राजनीतिक शक्ति के रूप में देख रहा है। हालाँकि तालिबान मुख्यतः पाकिस्तानी सेना द्वारा नियंत्रित होता है।

पश्चिमी एशिया के समीकरण

  • अमेरिका की मध्यस्थता से इज़रायल और चार अरब देशों; यू.ए.ई, बहरीन, मोरक्को तथा सूडान के मध्य पुनः संबंध सामान्य होने से इस पूरे क्षेत्र के परिदृश्य में बदलाव आया है।
  • इस्लामी जगत के नेतृत्व को लेकर सऊदी अरब, ईरान तथा तुर्की के बीच प्रतिस्पर्धा जारी है, ऐसे में इज़रायल के साथ संबंधों को सुधारने की मांग बढ़ी है।
  • भारत इज़रायल के साथ-साथ सऊदी-यू.ए.ई. और ईरान के साथ संबंधों को मज़बूत करने के लिये दक्ष कूटनीति के साथ आगे बढ़ रहा है।
  • हालाँकि भारत को यह भी ध्यान रखना होगा कि देश में ध्रुवीकरण की राजनीति, जैसे- सी.ए.ए. तथा एन.आर.सी. या धार्मिक नीतियों के माध्यम से अपने हितों को प्रभावित न होने दे।

रूस-चीन तालमेल

  • पिछले तीन दशकों से रूस -चीन संबंधो में पर्याप्त सुधार देखा गया। वर्ष 2020 में दोनों देशों के संबंध और प्रगाढ़ हुए हैं।
  • इस संदर्भ में भारत का यह मानना है कि पश्चिमी देशों के दृष्टिकोण के कारण ही वर्ष 2014 में क्रीमिया के विलय के बाद रूस चीन के अधिक करीब आया।
  • अमेरिका की चीन विरोधी बयानबाजी, तेल की गिरती कीमतों तथा चीन के उपभोग पर रूस की बढ़ती निर्भरता के कारण भी दोनों देशों के संबंध मज़बूत हुए हैं।
  • भारत के रूस के साथ मज़बूत संबंध हैं, और सीमा गतिरोध पर भारत-चीन के सभी आधिकारिक तथा मंत्रिस्तरीय बैठकों का स्थान मॉस्को ही था।
  • हालाँकि, भारत ने क्वाड और इंडो-पैसिफिक पर रूस की स्थिति पर ध्यान दिया है, जो चीन के रवैया के अधिक निकट है।

मुखर पड़ोसी

  • भारत की वर्ष 2020 की शुरुआत बांग्लादेश के द्वारा सी.ए.ए तथा एन.आर.सी. का विरोध करने और फिर नेपाल द्वारा कालापानी के क्षेत्र पर दावा करने तथा एक नया नक्शा जारी करने के साथ हुई।
  • इसने इस विश्वास को झुठला दिया कि भारत के ये पड़ोसी देश बहुत सरल हैं और किसी भी मुद्दे पर इसका विरोध नहीं करेंगे।
  • वर्ष के अंत तक, चीन से सावधान होकर भारत ने दोनों देशों के साथ संबंध सुधारने का प्रयास किया। भारत ने सी.ए.ए. नियमों को अधिसूचित नहीं किया, जिससे बांग्लादेश का रवैया थोड़ा नरम हुआ।
  • भारत ने अमेरिका तथा चीन के साथ क्रमशः मालदीव एवं श्रीलंका की संलग्नता को करीब से देखा है। ऐसे में भारत अमेरिका की भागीदारी से मालदीव, श्रीलंका, जापान और मालदीव में शांति बनाए रखने के लिये प्रयासरत है।

आकांक्षी भारत

  • वर्ष 2020 में ‘आत्मनिर्भर भारत पहल’ और आर.सी.ई.पी. समझौते से बाहर होने के कारण भारत को व्यापक रूप से ‘अलगाववादी’ और ‘अंतर्मुखी’ माना जा रहा है।
  • यद्यपि भारत ने 150 से अधिक देशों में दवाओं और सुरक्षात्मक किटों की आपूर्ति के प्रयास किये, लेकिन यह दुनिया के लिये वैश्विक नेता के रूप में नहीं उभर सका।
  • संसाधनों की कमी, संकुचित होती अर्थव्यवस्था और लोक-लुभावन राजनीति ने भारत को एक आकांक्षी राष्ट्र बना दिया है।

2021: चुनौतियाँ और अवसर

चीन का सामने करने के लिये भारत की रणनीति

  • भारत की सीमा गतिरोध पर प्रतिक्रिया इस सोच पर आधारित है कि किसी के द्वारा चुनौती प्रस्तुत किये जाने पर भारत द्वारा भी जवाब दिया जाएगा, परंतु इसके लिये आवश्यक है कि भारत अपनी सेना को स्थल, वायु और समुद्र, तीनों क्षेत्रों में तैनात करे।
  • इस गतिरोध ने नेहरु के उस विश्वास को भी मज़बूत किया जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘भारत को बाह्य समर्थन की आवश्यकता है’। अतः वर्तमान में भारत को अपना पक्ष मज़बूत करने के लिये फ्रांस, जर्मनी और यू.के. जैसे यूरोपीय देशों के अतिरिक्त अमेरिका, जापान तथा ऑस्ट्रेलिया से निरंतर समर्थन की आवश्यकता होगी।

संयुक्त राष्ट्र में भारत की महत्वाकांक्षाएँ

  • इस वर्ष भारत आठवीं बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में गैर-स्थाई सदस्य के रूप में निर्वाचित हुआ है, ऐसे में भारत के समक्ष चीन और शेष विश्व के सामने नेतृत्व प्रदान करने संबंधी अनेक चुनौतियाँ भी विद्यमान हैं।
  • भारत को अब उन मुद्दों पर ध्यान देना होगा जिन्हें वह काफी लम्बे समय से टालता आया है, जैसे- तिब्बत-ताइवान मुद्दा, ईरान-सऊदी प्रतिद्वंद्विता तथा बांग्लादेश एवं म्यांमार के बीच शरणार्थी संकट।
  • सीमा पार आतंकवाद भारत की प्रमुख चिंता है, इसके लिये आवश्यक है कि भारत पाकिस्तान को विश्व समुदाय से अलग-थलग करने का प्रयास करे।
  • पश्चिमी देशों के प्रति भारत का लचीला रुख़ इसके वैश्विक नेता बनने की आकांक्षाओं से प्रभावित कर सकता है।

अमेरिका के साथ संबंध

  • भारत-अमेरिका संबंधों की प्रकृति काफी हद तक जो बाइडन प्रशासन से निर्धारित होगी। साथ ही, दोनों देशों के संबंध इस बात पर भी निर्भर करेंगे कि अमेरिका चीन के प्रति कैसा दृष्टिकोण अपनाता है, एक सीमा तक इसका निर्धारण संभावित अमेरिका-चीन व्यापार समझौते से हो जाएगा।
  • इसके अतिरिक्त, अमेरिका की क्वाड तथा इंडो-पैसिफिक पर आगामी रणनीति भी भारत-अमेरिका संबंधों को प्रभावित करेगी।
  • भारत अमेरिका के साथ रणनीतिक और सामरिक संबंधों को और मज़बूत करने का प्रयास करेगा और साथ ही, वीज़ा तथा व्यापार संबंधी मुद्दों को भी हल करने का प्रयास करेगा।

यूरोप के साथ संबंधों को मज़बूत करना

  • गौरतलब है कि यू.के. तथा यूरोपीय संघ के मध्य हाल ही में ट्रेड एंड को-ऑपरेशन एग्रीमेंट (ब्रेक्ज़िट के पश्चात आगे की रणनीति तय करने संबंधी) हुआ है। अतः भारत यू.के. के साथ नए समझौतों के संदर्भ में बातचीत को आगे बढ़ाएगा और यूरोपीय संघ के साथ लंबे समय से लंबित समझौते पर आगे की रणनीति तय करेगा।
  • ब्रिटिश पी.एम. बोरिस जॉनसन गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित थे, किंतु महामारी के कारण उनका आना टल गया है। इससे भारत- यू.के. समझौते के लिये अभी और इंतजार करना होगा।
  • इसके अतिरिक्त, मई में भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन होने की भी संभावना है।
  • फ्रांस तथा जर्मनी पहले से ही भारत-प्रशांत रणनीति में भारत के साथ हैं और इनके द्वारा भविष्य में भारत के साथ एक सशक्त यूरोपीय रणनीति निर्माण की संभावना है, लेकिन ‘यूरोपीय संघ-चीन व्यापार समझौता’ भारतीय रणनीति को प्रभावित कर सकता है।

पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करना

  • भारत के पड़ोस में चीन का बढ़ता आर्थिक प्रभाव चिंता का मुख्य विषय है, हालाँकि चीन का प्रभाव नेपाल पर अभी सीमित ही है। भारत को शेष उपमहाद्वीप में चीन के प्रभाव को सीमित करने की दिशा में प्रयास करने होंगे।
  • ईरान में भी चीन की नीतियों को बारीकी से देखा गया था और इस वर्ष ईरान में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं, ऐसे में भारत के समक्ष पर्याप्त अवसर है कि वह ईरान के साथ संबंधों को मज़बूत करने पर बल दे।
  • नेपाल की राजनीतिक स्थिति में लगातार उतार-चढ़ाव बना हुआ है, जो कि चिंता का विषय है।
  • पिछले कुछ वर्षों में लगभग हर दक्षिण एशियाई देश में चुनाव हुए हैं। इसका मतलब है कि इन देशों में सरकारें स्थिर हैं, जिससे भारत के सामने इन देशों के साथ बातचीत के पर्याप्त अवसर उपलब्ध हैं।
  • वर्ष 2021 में महामारी से उभरने में भारत पड़ोसी देशों में मुफ्त या कम कीमतों पर वैक्सीन की आपूर्ति करके ‘वैक्सीन कूटनीति’ से बहुत कुछ हासिल कर सकता है।

निष्कर्ष

  • भारत ने लंबे समय से एक वैश्विक शक्ति बनने की महत्वाकांक्षा के साथ एक उभरती हुई शक्ति के रूप में अपनी भूमिका निभाई है।
  • नए वर्ष में भारत के पास अवसर है कि वह एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभरे न कि एक आकांक्षी देश की तरह व्यव्हार करे।
  • वर्ष 2021 में, भारत ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा और वर्ष 2023 में G-20 शिखर सम्मेलन के लिये अपनी तैयारी शुरू करेगा।
  • भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन, जो 2020 में आयोजित नहीं हो सका था, इसके भी वर्ष 2021 या बाद में आयोजित होने कि संभावना है। ऐसे में भारत के पास विभिन्न मुद्दों पर मुखर होकर, अपने हितों को आगे बढ़ाने के पर्याप्त अवसर हैं।
  • इस प्रकार, नए वर्ष में भारत उपरोक्त अवसरों के अनुसार बेहतर रणनीति बनाकर आगे बढ़ सकता है।
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