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भारत-दक्षिण कोरिया साझेदारी

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)

संदर्भ

दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती आक्रमकता का सामना करने तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये वर्तमान में भारत-दक्षिण कोरिया के मध्य संबंधों के नए आयाम स्थापित हो रहे हैं। 

पृष्ठभूमि

  • विगत पांच वर्षों के दौरान भारत और दक्षिण कोरिया ने अपने-अपने राष्ट्रीय उद्देश्यों में अत्यधिक भिन्नता (अंतर,विचलन, विस्तार) का अनुभव किया है। दक्षिण कोरिया ने संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में बहुपक्षीय सुरक्षा पहलों, जैसे कि क्वाड (यू.एस., ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान) से स्पष्ट दूरी बनाए रखी जबकि इस दौरान भारत इसमें सक्रिय रूप से भाग ले रहा है।
  • नवनिर्वाचित कोरियाई राष्ट्रपति यूं सुक योल ने दक्षिण कोरिया की विदेश और सुरक्षा नीतियों में एक आदर्श बदलाव प्रस्तुत किया है। 
  • इनके अनुसार दक्षिण कोरिया को एक वैश्विक निर्णायक राज्य बनाने, उदार मूल्यों और नियम-आधारित व्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिये कदम उठाना चाहिये जो उदार लोकतांत्रिक मूल्यों तथा पर्याप्त सहयोग के माध्यम से स्वतंत्रता, शांति एवं समृद्धि को आगे बढ़ाता है। 
  • वैश्विक स्तर पर निर्णायक बनने और क्षेत्रीय मामलों में सक्रिय भूमिका निभाने की दक्षिण कोरिया की इच्छा भारत-कोरिया बहु-आयामी साझेदारी के लिये कई अवसर उपलब्ध कराती है।
  • विगत कुछ वर्षों में भारत और दक्षिण कोरिया ने अपने आर्थिक संबंधों में कई गंभीर बाधाओं का सामना किया है। दोनों देशों के मध्य व्यापार में सुस्ती देखी गई और भारत में निवेश का कोई बड़ा प्रवाह नहीं हुआ। 
  • दोनों देश अपने व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) को उन्नत करने की कोशिश कर रहे थे किंतु इसका कोई लाभ नहीं हुआ।

चीन के प्रति झुकाव 

  • चीन के प्रति अपने भारी झुकाव को संतुलित करने के लिये दक्षिण कोरिया की रणनीतिक नीति में बदलाव दोनों देशों के लिये नए आर्थिक अवसर उत्पन्न करता है। 
  • दोनों देशों के मध्य वर्ष 2030 तक 50 अरब डॉलर का व्यापार लक्ष्य प्राप्त करने की अनुकूल स्थितियाँ निर्मित हो रही है।
  • उभरती हुई रणनीति आर्थिक सहयोग के नए क्षेत्रों, जैसे- सार्वजनिक स्वास्थ्य, हरित विकास, डिजिटल कनेक्टिविटी और व्यापार आदि के क्षेत्र में क्षमताओं का विकास एवं समन्वय स्थापित करने में सहायक होगी।
  • वर्ष 2020 में भारत और दक्षिण कोरिया ने रक्षा उद्योग सहयोग के लिये एक रोडमैप पर हस्ताक्षर किये। हालाँकि, राजनीतिक और रणनीतिक संरेखण की कमी के कारण इस पर कोई विशेष प्रगति नहीं हो पाई है। 
  • दक्षिण कोरिया के रक्षा अभिविन्यास में रणनीतिक बदलाव के साथ रक्षा और सुरक्षा सहयोग के नए मार्ग उभरे हैं। दोनों देशों के मध्य रक्षा सहयोग के नए क्षेत्र उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियां और आधुनिक युद्ध प्रणालियां हैं।

हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण

  • हिंद महासागर में अतिरिक्त समुद्री सुरक्षा गतिविधियों में दक्षिण कोरिया की भागीदारी (वार्षिक मालाबार और क्वाड देशों के साथ अन्य अभ्यास) हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की नौसैनिक उपस्थिति को और मजबूत करेगा। 
  • दक्षिण कोरिया की नीतियों में बदलाव एक मजबूत भारत, दक्षिण कोरिया और जापान रक्षा नीति समन्वय को सक्षम करेगा जो नई संयुक्त क्षेत्रीय सुरक्षा नीतियों को प्रभावी रूप से निर्मित करने में सहायक होगा।
  • भारत ने जापान, वियतनाम और ऑस्ट्रेलिया के साथ उत्कृष्ट रणनीतिक साझेदारी विकसित की है। दक्षिण कोरिया इसमें शामिल होकर भारत की हिंद-प्रशांत रणनीति में चौथा स्तंभ हो सकता है, जो भारत की स्थिति एवं प्रभाव में एक आदर्श बदलाव ला सकता है।
  • महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों, साइबर सुरक्षा और साइबर क्षमता निर्माण, बाह्य अंतरिक्ष तथा अंतरिक्ष जागरूकता क्षमताओं में दक्षिण कोरिया हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की मूलभूत क्षमता को बढ़ाने में योगदान दे सकता है।

अमेरिका तथा उत्तर कोरिया कारक

  • आगामी समय में यदि अमेरिका में सत्ता-परिवर्तन होता है तो यह अमेरिका-दक्षिण कोरिया संबंधों के लिये सकारात्मक संकेत नहीं है क्योंकि पूर्व रिपब्लिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दक्षिण कोरिया से अमेरिकी सेना को वापस बुला लिया था।
  • वर्तमान में उत्तर कोरिया तथा दक्षिण कोरिया के मध्य शांति स्थापना की प्रक्रिया पूरी तरह ध्वस्त हो गई है। 
  • आने वाले दिनों में उत्तर कोरिया द्वारा अधिक मिसाइल और परमाणु परीक्षण करने से क्षेत्रीय तनाव बढ़ सकता है। इस प्रकार की कोई भी घटना दक्षिण कोरिया की हिंद-प्रशांत परियोजना को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकती है।
  • पूर्व कोरियाई राष्ट्रपति जे मून के कार्यकाल के दौरान दक्षिण कोरिया ने चीन के साथ तीन समझौते किये :
    • टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस (THAAD) की कोई अतिरिक्त तैनाती नहीं।
    • अमेरिका के मिसाइल रक्षा नेटवर्क में कोई भागीदारी नहीं। 
    • अमेरिका और जापान के साथ किसी त्रिपक्षीय सैन्य गठबंधन की स्थापना नहीं।

निष्कर्ष

भारत, दक्षिण कोरिया को चीन के दबाव और उत्तर कोरिया से खतरों का सामना करने में मदद कर सकता है। एक स्वतंत्र, मजबूत और लोकतांत्रिक दक्षिण कोरिया, भारत के साथ दीर्घकालिक साझेदार हो सकता है। यह भारत के हिंद-प्रशांत रणनीति में महत्वपूर्ण योगदान देगा। इस नई साझेदारी का दोनों देशों और भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिये दीर्घकालिक सकारात्मक प्रभाव हो सकता है।

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