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शेख मुहम्मद गौस का मकबरा

(प्रारंभिक परीक्षा : मध्यकालीन भारत का इतिहास, कला एवं संस्कृति)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: भारतीय विरासत और संस्कृति, भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य व वास्तुकला के मुख्य पहलू)

संदर्भ 

  • मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने ग्वालियर में सूफी संत हजरत शेख मुहम्मद गौस के मकबरे पर धार्मिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों की अनुमति देने के लिए एक निजी व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी थी। 
  • इसी स्मारक परिसर में संगीतकार तानसेन का मकबरा भी स्थित है। सूफी परंपरा में तानसेन को शेख मुहम्मद गौस का शिष्य बताया गया है।  

हालिया निर्णय से संबंधित प्रमुख बिंदु 

  • न्यायमूर्ति आनंद पाठक एवं न्यायमूर्ति हृदेश की खंडपीठ के अनुसार स्मारक को ‘अत्यंत सावधानी व सतर्कता के साथ संरक्षित किया जाना चाहिए’ और अपीलकर्ता द्वारा मांगी गई ऐसी किसी भी गतिविधि की अनुमति नहीं दी जा सकती है। अन्यथा स्मारक अपनी मौलिकता, पवित्रता एवं जीवन शक्ति खो देगा और यह एक राष्ट्रीय क्षति जैसा होगा। 
  • न्यायालयी दस्तावेजों के अनुसार, स्मारक परिसर में 16वीं सदी के संगीतज्ञ तानसेन और सूफी संत हजरत शेख मुहम्मद गौस की कब्रें हैं।
  • हज़रत शेख मुहम्मद गौस के मकबरे को प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व स्थल व अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत वर्ष 1962 में राष्ट्रीय महत्व का संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था।
  • भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अनुसार याचिकाकर्ता के दावे असत्य हैं और स्मारक के रख-रखाव एवं संरक्षण में हस्तक्षेप कर रहे हैं।
    • ए.एस.आई. के अनुसार परिसर में गैरकानूनी गतिविधियाँ की जा रही हैं जिसमें बिजली के तार, रोशनी, टेंट के साथ-साथ भट्टियां लगाना भी शामिल है और ऐसी स्थिति उत्पन्न की जा रही है जिससे पर्यटन में बाधा उत्पन्न हो रही है तथा स्मारक की संरचनात्मक अखंडता, सांस्कृतिक व स्थापत्य गरिमा को नुकसान पहुंच रहा है।

शेख मुहम्मद गौस का मकबरा 

  • परिचय : इस मकबरे का निर्माण 1563 में शेख मुहम्मद गौस की मृत्यु के कुछ समय बाद करवाया गया था जो शुरुआती मुगल वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है।  
  • संबंधित मुगल शासक : इसे अकबर के शासनकाल (1556-1605) की सबसे उल्लेखनीय संरचनाओं में से एक माना जाता है।
  • संरक्षण एवं रखरखाव : यह मकबरा प्राचीन स्मारक एवं पुरातात्विक स्थल व अवशेष अधिनियम, 1958 के अंतर्गत केंद्रीय संरक्षित स्मारक के रूप में सूचीबद्ध है। 
    • वर्ष 1962 से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा इसका रखरखाव किया जा रहा है।

मकबरे की प्रमुख विशेषताएँ

  • यह एक चौकोर इमारत है जिसके ऊपर एक बड़ा एवं एक छोटा गुंबद है और इसके दोनों ओर छतरियाँ हैं जो इसे बहु-स्तरीय रूप देती हैं। 
  • इसमें बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है और दीवारों पर इसकी जटिल नक्काशी एवं छिद्रित पत्थर की स्क्रीन (जाली) इसके प्रमुख सजावटी तत्वों में से एक है। स्थापत्य के ये तत्व गुजरात के वास्तुकला से प्रेरित माने जाते हैं 
  • इसकी डिजाइन ने बाद की मुगल संरचनाओं, जैसे- फतेहपुर सीकरी में शेख सलीम चिश्ती के मकबरे को भी प्रभावित किया।

शेख मुहम्मद गौस (1500-1565) के बारे में

  • परिचय : यह एक प्रमुख सूफी संत, विद्वान एवं शत्तारी संप्रदाय के प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु थे, जिनका जीवन एवं शिक्षाएँ 16वीं सदी के भारत में सूफी परंपरा व सांस्कृतिक इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।
  • संबंधित सूफी संप्रदाय : वे शत्तारी सूफी संप्रदाय से संबंधित थे, जो भारत में सूफीवाद की एक महत्वपूर्ण शाखा थी। यह संप्रदाय मुख्यत: मध्य भारत में प्रभावशाली रहा। इस संप्रदाय की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- 
    • हिंदू एवं इस्लामी दर्शन का समन्वय
    • योग, ध्यान एवं आध्यात्मिक प्रक्रियाओं पर जोर
    • संगीत व कला के माध्यम से आध्यात्मिकता की अभिव्यक्ति

तानसेन के बारे में (लगभग 1500-1586)

  • परिचय : तानसेन भारतीय शास्त्रीय संगीत के इतिहास में एक महान संगीतकार और सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक थे। 
  • मूलनाम : उनका मूल नाम रामतनु पांडे था। 
  • अकबर के नवरत्न : तानसेन को सम्राट अकबर ने अपने दरबार में शामिल किया और ‘मियाँ’ की उपाधि प्रदान की। उनकी प्रतिभा के कारण अकबर ने उन्हें दरबार का प्रमुख संगीतकार नियुक्त किया। 
  • ग्वालियर घराना : तानसेन की परंपरा ने संगीत परंपरा के ग्वालियर घराने की नींव रखी, जो हिंदुस्तानी संगीत की एक प्रमुख शैली है।
  • किवदंती : ऐसा माना जाता था तानसेन के राग दीपक के गायन से दीपक जल उठते थे और राग मेघ मल्हार से वर्षा वर्षा होने लगती थी।
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